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वृष संक्रांति क्या है? क्यों है महत्व? किसकी पूजा जरूरी है? कैसे चढ़ाएं जल?

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, बुधवार, 10 मई 2023 (11:46 IST)
Vrishabha sankranti 2023 : 15 मई 2023 सोमवार को सुबह करीब 11 बजकर 32 मिनट पर वृषभ संक्रांति होगी। वृषभ संक्रांति का दक्षिण भारत में ज्यादा महत्व माना जाता है। वर्ष में 12 संक्रांतियां होती हैं, जिसमें मकर संक्रांति, कर्क संक्रांति, मेष संक्रांति, मिथुन संक्रांति और धनु संक्रांति का ही खास महत्व मानया गया है। आओ जानते हैं कि वृष संक्रांति क्या है, क्या है इसका महत्व, किसकी करें इस दिन पूजा।
 
क्या है वृषभ संक्रांति | What is Vrishabh Sankranti : सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने को संक्रांति कहते हैं। वृषभ में प्रवेश करने को वृषभ संक्रांति कहेंगे। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार सूर्य वृषभ राशि में 15 मई 2023 को 11:32 बजे प्रवेश करेंगे, जहां वे 15 जून 2023 की शाम 18:07 बजे तक रहने के बाद मिथुन राशि में प्रवेश कर जाएंगे।
 
वृषभ संक्रांति का महत्व | Significance of Vrishabh Sankranti:
  • शास्त्रों में वृषभ संक्रांति को मकर संक्रांति के समान ही माना गया है।
  • संस्कृत में 'वृषभ' शब्द का अर्थ 'बैल' है। बैल को नंदी भी कहते हैं जो कि शिवजी का वाहन है।
  • शास्त्रों के अनुसार, वृषभ संक्रांति के दिन पूजा, जप, तप और दान करने से अमोघ फल की प्राप्ति होती है।
  • इस महीने में प्यासे को पानी पिलाने अथवा घर के बाहर प्याऊ लगाने से व्यक्ति को यज्ञ कराने के समतुल्य पुण्यफल मिलता है।
  • वृषभ संक्रांति के दौरान सूर्य देव रोहिणी नक्षत्र में आते हैं और 15 दिनों तक रहते हैं इसमें शुरुआती 9 दिनों तक प्रचंड गर्मी पड़ती है।
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वृषभ संक्रांति पर किसकी करें पूजा | Whom to worship on Vrishabh Sankranti:
वृषभ संक्रांति के दिन भगवान शिव के ऋषभ रूद्र स्वरूप और भगवान सूर्य की पूजा किए जाने की परंपरा है।
वृषभ संक्रांति के दिन सूर्य पूजा करने से कुंडली में सूर्य मजबूत होता है। इसलिए सूर्य को अर्घ्‍य भी देना चाहिए।
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से सुख और समृद्ध जीवन के साथ ही जातक पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति होकर मोक्ष प्राप्त करता है।
 
कैसे चढ़ाएं सूर्यदेव और शिवजी को जल | How to offer water to Sun God and Lord Shiva:
 
- एक तांबे के लोटे में जल में थोड़ा सा दूध मिलाकर शिवलिंग पर अर्पित करें, शिवजी का मंत्र बोलते हुए।
 
- सूर्य देव को जल अर्पित करने के लिए प्रात: काल तांबे के लोटे में जल लेकर उसी जल में मिश्री मिलाकर जल अर्पित करें।
 
- सूर्य को जल धीमे-धीमे इस तरह चढ़ाएं कि जलधारा पैर के पास या आसन पर ना गिरे भूमि पर गिरे। 
 
- जमीन पर जलधारा गिरने से जल में समाहित सूर्य-ऊर्जा धरती में चली जाएगी और सूर्य अर्घ्य का संपूर्ण लाभ आप नहीं पा सकेंगे। 
 
- अर्घ्य देते समय निम्न मंत्र का पाठ करें-
 
'ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते। 
अनुकंपये माम भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर:।।' (11 बार) 
 
' ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय। 
मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा: ।।' (3 बार) 
 
- तत्पश्चात सीधे हाथ की अंजूरी में जल लेकर अपने चारों ओर छिड़कें। अपने स्थान पर ही तीन बार घुम कर परिक्रमा करें।

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