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'अयोध्या की वो राजकुमारी जो बनी कोरिया की महारानी'

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, शुक्रवार, 2 नवंबर 2018 (11:37 IST)
दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन की पत्नी किम जोंग-सूक अकेले भारत दौरे पर आ रही हैं। दक्षिण कोरिया की समाचार एजेंसी योनहाप ने इस ख़बर की पुष्टि की है।
 
 
एजेंसी के अनुसार किम जोंग-सूक 6 नवंबर को अयोध्या में दीपावली से पहले हर साल आयोजित होने वाले दीपोत्सव में शामिल होंगी। 16 सालों में ऐसा पहली बार होगा जब किम जोंग-सूक दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति के बिना कोई विदेश यात्रा करेंगी।
 
 
चार दिन के भारत दौरे पर किम जोंग-सूक 4 नवंबर को दिल्ली पहुँचेंगी और सोमवार को वो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात करेंगी। लेकिन इस यात्रा के दौरान किम जोंग-सूक प्राचीन कोरियाई राज्य कारक के संस्थापक राजा किम सू-रो की भारतीय पत्नी, महारानी हौ के स्मारक पर भी जाएंगी। महारानी हौ का स्मारक अयोध्या में सरयू नदी के किनारे पर स्थित है।
 
 
कौन हैं महारानी हौ?
राजकुमार राम और अयोध्या से उनके 14 साल के वनवास की कथा हज़ारों साल से भारतीय किंवदंतियों का हिस्सा रही हैं। लेकिन बीते दो दशकों में अयोध्या से एक और शाही व्यक्ति के बाहरी दुनिया में जाने की बात लोगों की ज़बान पर चढ़ी हुई है।
 
 
कोरिया के इतिहास में कहा गया है कि भारत के अयोध्या (उस वक़्त साकेत) से 2000 साल पहले 'अयोध्या की राजकुमारी' सुरीरत्ना नी हु ह्वांग ओक-अयुता भारत से दक्षिण कोरिया के ग्योंगसांग प्रांत के किमहये शहर गई थीं। लेकिन राजकुमार राम की तरह ये राजकुमारी कभी अयोध्या वापस नहीं लौटीं।
 
 
चीनी भाषा में दर्ज दस्तावेज़ सामगुक युसा में कहा गया है कि ईश्वर ने अयोध्या की राजकुमारी के पिता को स्वप्न में आकर ये निर्देश दिया था कि वो अपनी बेटी को उनके भाई के साथ राजा किम सू-रो से विवाह करने के लिए किमहये शहर भेजें।
 
 
कारक वंश
आज कोरिया में कारक गोत्र के तक़रीबन 60 लाख लोग ख़ुद को राजा किम सू-रो और अयोध्या की राजकुमारी के वंश का बताते हैं। इस पर यक़ीन रखने वाले लोगों की संख्या दक्षिण कोरिया की आबादी के दसवें हिस्से से भी ज़्यादा है। दक्षिण कोरिया के पूर्व राष्ट्रपति किम डेई जंग और पूर्व प्रधानमंत्री हियो जियोंग और जोंग पिल-किम इसी वंश से आते थे। 
 
 
इस वंश के लोगों ने उन पत्थरों को संभाल कर रखा है जिनके बारे में माना जाता है कि अयोध्या की राजकुमारी अपनी समुद्र यात्रा के दौरान नाव को संतुलित रखने के लिए साथ लाई थीं। किमहये शहर में इस राजकुमारी की एक बड़ी प्रतिमा भी है।
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दक्षिण कोरिया में राजकुमारी की जो कब्र है, उसके बारे में कहा जाता है कि इस पर लगा पत्थर अयोध्या से ही गया था। अयोध्या और किमहये शहर का संबंध साल 2001 से ही शुरू हुआ है। कारक वंश के लोगों का एक समूह हर साल फ़रवरी-मार्च के दौरान इस राजकुमारी की मातृभूमि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने अयोध्या आता रहा है।
 
 
कोरिया के मेहमान
इन कोरियाई मेहमानों ने सरयू नदी के किनारे पर संत तुलसीघाट के क़रीब अपनी राजकुमारी की याद में एक छोटा पार्क भी बनवाया था। वक़्त-वक़्त पर अयोध्या के कुछ प्रमुख लोग किमहये शहर की यात्रा भी करने लगे हैं।
 
 
अयोध्या के पूर्व राजपरिवार के सदस्य बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र यहाँ आने वाले कारक वंश के लोगों की मेहमाननवाज़ी करते रहे हैं और वे पिछले कुछ सालों में कई बार दक्षिण कोरिया भी जाते रहे हैं। ये और बात है कि उनके परिवार का इतिहास कुछ 100 साल पुराना ही है। बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र साल 1999-2000 के बीच कोरिया सरकार के मेहमान रह चुके हैं।
 
 
अयोध्या से उम्मीदें
कुछ साल पहले बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र ने अपने दक्षिण कोरियाई दौरे के बारे में बीबीसी को बताया था कि "मुझे शुरुआत में इस कहानी पर कुछ शक़ था। मैंने उनसे कहा भी कि ये थाईलैंड का अयुता हो सकता है। थाईलैंड में भी एक अयोध्या है। लेकिन वे इस बात को लेकर आश्वस्त थे और पूरी रिसर्च करके आए थे।"
 
 
मिश्र के अनुसार कोरियाई लोगों की अयोध्या को लेकर बड़ी योजनाएं थीं, लेकिन भारत के शासकों ने इसमें बहुत ज़्यादा दिलचस्पी नहीं ली। इसी वजह से महारानी की याद में एक छोटा सा स्मारक बनवाने के बाद कोरियाई लोग भी पीछे हट गये थे।
 
 
बीते कुछ सालों में जो हुआ
*2015-16 में भारत और दक्षिण कोरिया की सरकार के बीच एक सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर हुए थे। इसके बाद रानी हौ के पार्क को भव्य रूप देने की योजना बनाई गई थी।
*उस वक़्त कहा गया था कि दक्षिण कोरिया की सरकार भी इस योजना के लिए 8.60 लाख डॉलर की धनराशि का योगदान देगी।
*अखिलेश यादव जब मुख्यमंत्री थे उस वक़्त उन्होंने कहा था कि कोरियन आर्किटेक्ट के अनुसार अयोध्या में महारानी हौ का स्मारक बनाया जायेगा।
*अप्रैल, 2018 में कोरियाई महारानी के पार्क के विस्तारीकरण पर एनजीटी ने रोक लगा दी।
*इसके बाद ख़बर आई कि अयोध्या में रामकथा संग्रहालय के पीछे पर्यटन विभाग की ढाई एकड़ ज़मीन महारानी हौ के पार्क के लिए सुरक्षित कर ली गई है।
 

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