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इंडोनेशिया अपनी राजधानी को दूसरी जगह ले जाने में सफल हो पाएगा?

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BBC Hindi

, रविवार, 4 फ़रवरी 2024 (12:48 IST)
जनवरी 2022 में विश्व के सबसे बड़े द्वीप देश इंडोनेशिया ने अपनी राजधानी को जकार्ता से हटा कर दूसरी जगह ले जाने के लिए एक क़ानून पारित कर दिया। राष्ट्रपति जोको विडोडो की इस महत्वाकांक्षी योजना को अंजाम देने के लिए अगस्त 2024 की समयसीमा तय की गई थी।
 
दुनिया में केवल आठ ऐसे देश हैं जिन्होंने अपनी राजधानी को स्थानांतरित किया है। इंडोनेशिया में राजधानी के स्थानांतरण के लिए कानून पारित होने के बाद कंस्ट्रक्शन का काम ज़ोर-शोर से शुरू हो गया। मगर क़ानून पारित होने के दो साल बाद अब राष्ट्रपति चुनाव सिर पर हैं और अभी काफ़ी काम अधूरा पड़ा है।
 
इस सप्ताह दुनिया जहान में हम यही समझने की कोशिश करेंगे कि क्या इंडोनेशिया अपनी राजधानी को स्थानांतरित करने में सफल हो पाएगा?
 
जकार्ता का बोझ
इंडोनेशिया की नेशनल रिसर्च सेंटर के राजनीति शास्त्र विभाग की प्रमुख डॉक्टर अतीका नूर अलामी का कहना है कि 1945 में इंडोनेशिया की आज़ादी के समय से ही जकार्ता देश की राजधानी रही है मगर राजधानी को वहां से कहीं और ले जाने के मुद्दे पर लगभग अस्सी साल से बात हो रही है।
 
वो कहती हैं, ''इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर सुकर्णो के प्रशासन के समय से ही राजधानी के स्थानांतरण पर चर्चा चलती रही है। वो राजधानी को पलंगकराया शहर में बसाने की संभावना पर विचार कर रहे थे। उनके बाद राष्ट्रपति सुहार्तो राजधानी के लिए जकार्ता के नज़दीक एक नया शहर बसाने के बारे में विचार कर रहे थे।''
 
2019 में इंडोनेशिया की सरकार ने इस पर अमल करने का फ़ैसला कर लिया। सभी सरकारी कार्यालयों को नई राजधानी में ले जाने की योजना की घोषणा कर दी गयी। डॉक्टर अतीका नूर अलामी के अनुसार यह सही कदम है क्योंकि अब जकार्ता पर बोझ काफ़ी बढ़ गया है। जकार्ता में एक करोड़ दस लाख से ज़्यादा लोग रहते हैं। यह दुनिया का एक सबसे घनी आबादी वाला शहर है।
 
डॉक्टर अतीका नूर अलामी का कहना है कि जकार्ता के सामने कई चुनौतियां हैं। मिसाल के तौर पर ट्रैफ़िक जाम, वायु और जल प्रदूषण जैसी पर्यावरणीय समस्याएं बढ़ गयी हैं। लोगों को सांस लेने में दिक्कत आ रही है और बीमारियां बढ़ रही हैं। नदी का पानी प्रदूषित है। इसका लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। वहीं समुद्र के बढ़ते जल स्तर से बाढ़ की समस्या भी बढ़ गई है।
 
समुद्र के जल स्तर बढ़ने से जकार्ता प्रतिवर्ष सत्रह सेंटीमीटर नीचे डूबता जा रहा है जो अत्यंत चिंताजनक है। जकार्ता के बोझ को हल्का करने के लिए राजधानी को एक वर्षावन वाले द्वीप पर बसाने का फ़ैसला किया गया है।
 
डॉक्टर अतीका नूर अलामी ने बताया कि नई राजधानी का नाम नूसंतारा है जिसका मतलब है प्रायद्वीप। यह ईस्ट कलिमंतान क्षेत्र के बोर्नियो द्वीप पर स्थित है। नूसंतारा का कुल इलाका लगभग ढाई लाख हेक्टेयर है। यह इंडोनेशिया के मध्य में है और जकार्ता से लगभग दो सौ मील दूर है।
 
नए राजधानी शहर का निर्माण सरकार की उस महत्वकांक्षी योजना का हिस्सा है जिसे ‘गोल्डन इंडोनेशिया 2045’ कहा जाता है। राष्ट्रपति विडोडो ने 2019 में इसकी घोषणा की थी। इसका उद्देश्य 2045 तक इंडोनेशिया को विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाना है।
 
देश की वर्तमान राजधानी जावा द्वीप पर स्थित जकार्ता में है और पूरे देश की आधे से भी अधिक आबादी यहां बसती है। सरकार चाहती है कि जकार्ता की आर्थिक गतिविधियों को दूसरे द्वीपों में समान तौर पर वितरित किया जाए ताकि वहां भी विकास के अवसर बढ़ें।
 
ऐसा माना जा रहा है कि राजधानी को जकार्ता से हटाकर ईस्ट कालिमंतान ले जाने से एक नया आर्थिक केंद्र बनेगा और इससे जावा केंद्रित सोच और नीतियों में बदलाव आएगा।
 
योजना पर अमल
नई राजधानी के निर्माण में 35 अरब डॉलर का खर्च आएगा जिसमें इंडोनेशिया सरकार का निवेश 19 प्रतिशत होगा।  शेष धन घरेलू और विदेशी निवेशकों से आएगा। यह परियोजना पांच चरणों में पूरी की जाएगी।
 
पहला चरण इस वर्ष समाप्त होगा। इसमें पूरे इंडोनेशिया से लगभग दो लाख श्रमिकों को कंस्ट्रक्शन के काम में शामिल किया गया था।
 
इंडोनेशिया की ब्राविजया यूनिवर्सिटी के शहरी और क्षेत्रीय योजना विभाग के सहायक प्रोफ़ेसर दिमास विष्णु अद्रियांतों कहते हैं कि राजधानी का स्थानांतरण इंडोनेशिया में अब तक की सबसे बड़ी और महत्वाकांक्षी परियोजना है।
 
''2024 में पूरा होने वाला पहला चरण शहर निर्माण पर केंद्रित है जिसमें राष्ट्रपति आवास, प्रमुख सरकारी इमारतें, प्रशासनिक कार्यालय, अस्पतालों और राजधानी में काम करने वाले लोगों के लिए आवासीय इमारतों को बनाया जा रहा है। लगभग चालीस प्रतिशत काम पूरा हो चुका है।  फ़िलहाल हवाईअड्डे, हाइवे और ढांचागत सुविधाएं बनाई जा रही हैं।  मुझे उम्मीद है कि नूसंतारा में पहले चरण का बाकी बचा काम भी अगले साल के अंत तक पर पूरा हो जाएगा।''
 
अगले तीन चरणों के दौरान, ढांचागत सुविधाएं, यातायात के नेटवर्क, स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़ी परियोजनाओं को पूरा किया जाएगा। अंतिम चरण को 2040 से 2045 के दौरान पूरा किया जाएगा जिसके तहत आवासीय क्षेत्रों का विस्तार किया जाएगा।
 
दिमास विष्णु अद्रियांतों का मानना है कि 2045 तक शहर में बीस लाख लोगों के रहने की व्यवस्था हो जाएगी। लोगों का यहां आकर बसना कई चरणों में होगा। पहले मंत्रालयों में काम करने वाले अधिकारी आएंगे। 2030 से 2035 के दौरान लोगों के स्थानांतरण का दूसरा चरण शुरू होगा जिसमें सरकारी कर्मचारियों के अलावा दूसरे क्षेत्र में काम करने वाले लोग बाहर से यहां आकर बसना शुरू करेंगे।
 
यानि जकार्ता की जगह, नूसंतारा केवल प्रशासन ही नहीं बल्कि आर्थिक गतिविधियों का भी नया केंद्र बन जाएगा।  दिमास विष्णु अद्रियांतों ने बताया कि राजधानी को नए शहर में ले जाने से पहले नए कानून बनाए जा रहे हैं जिसके तहत जकार्ता को विशेष क्षेत्र का दर्जा दिया जाएगा और वह व्यापार और आर्थिक गतिविधियों का केंद्र बना रहेगा। मगर जकार्ता की तरह इंडोनेशिया के इस नये शहर के सामने भी समुद्री जलस्तर के बढ़ते स्तर की वजह से डूबने की समस्या है।
 
दिमास विष्णु अद्रियांतों कहते हैं कि इस जगह भी बाढ़ का ख़तरा है इसलिए शहर निर्माण के समय ही सबसे पहले बांध बनाए जा रहे हैं ताकि जल प्रबंधन सुचारू तरीके से हो सके। इंडोनेशिया से पहले आठ देश अपनी राजधानी को स्थानांतरित कर चुके हैं।
 
सबसे पहले रूस ने 1918 में यह काम किया था। उसके बाद पाकिस्तान, ब्राज़ील, आइवरी कोस्ट, नाइजीरिया, तंज़ानिया, कज़ाकिस्तान और 2005 में म्यांमार ने अपनी राजधानी को दूसरे शहर में स्थानांतरित किया था। इंडोनेशिया उनके अनुभव से काफ़ी कुछ सीख सकता है।
 
दिमास विष्णु अद्रियांतों ने कहा, ''हमने इस प्रक्रिया के तुलनात्मक अध्ययन किए हैं ताकि हमें पता हो कि इस परियोजना को बनाते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। ब्राज़ीलिया का उदाहरण हमारे लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि रियो और ब्राज़ीलिया के बीच उतना ही फ़ासला है जितना जकार्ता और नूसंतारा के बीच है। लेकिन नूसंतारा अधिक चुनौतीपूर्ण है क्योंकि उसके और जकार्ता के बीच समुद्र है। ''
 
''इसलिए लोगों को यहां लाकर बसाने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। फिर जकार्ता की संस्कृति को नूसंतारा कैसे लाया जाए? नूसंतारा की तुलना में जकार्ता की संस्कृति अधिक आधुनिक है। ऐसे में नूसंतारा के लोगों को इस संस्कृति और शहर में लाए जा रहे बदलाव के लिए राज़ी करना भी भविष्य में एक बड़ी चुनौती होगी।''
 
स्थानांतरण और आपत्तियां
सिंगापुर की नयांग यूनिवर्सिटी में समाज विज्ञान के प्रोफ़ेसर सुल्फ़िकर अमीर का मानना है कि विभिन्न क्षेत्रों के बीच आर्थिक विकास में असमानता की समस्या को सुलझाए बिना केवल राजधानी के स्थानांतरण से कोइ समस्या हल नहीं होगी। 
 
''मैं दो महीने पहले वहां गया था जहां राजधानी को बसाया जाएगा। नई राजधानी के लिए चल रहे कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट को लेकर कुछ स्थानीय समुदायों में उत्साह था। लेकिन किसान इस बात से चिंतित थे कि नये निर्माणकार्यों का उनके जीवन और उपजीविका पर असर पड़ सकता है।''
 
सुल्फ़िकार अमीर इस साल होने वाले राष्ट्रपति चुनावों के एक प्रत्याशी, अनीस बसवाडेन के प्रवक्ता भी हैं। उनके उम्मीदवार की राय है कि राजधानी नूसंतारा ले जाने से ना क्षेत्रीय असमानता की समस्या हल होगी और ना ही पूर्वी जकार्ता का पर्यावरणीय बोझ कम होगा और इस वजह से वो इस कदम का विरोध कर रहे हैं। मगर इस परियोजना से जुड़ी कई पर्यावरणीय चिंताएं भी हैं। 
 
सुल्फ़िकार अमीर ने इस बारे में कहा, ''कालिमंतान दुनिया का एक ऐसा द्वीप है जहां कोयला खदानों और जंगलों की कटाई और पाम ऑइल परियोजनाओं से काफ़ी नुकसान हुआ है। नई राजधानी के फ़ायदे के लिए इस क्षेत्र के संसाधनों का और अधिक दोहन शुरू होगा।  इसलिए कालिमंतान में कई लोग नई राजधानी के वहां आने से उनके जीवन पर होने वाले संभावित प्रभाव को लेकर चिंतित हैं।''
 
राजधानी को कालिमंतान क्षेत्र में ले जाने के लिए पेश किए गए बिल पर 42 दिनों तक हुई बहस के बाद उसे पास करके क़ानून का स्वरूप दे दिया गया। लेकिन लोगों के साथ पर्याप्त सलाह-मशविरा और बहस का ना हो पाना भी असंतोष का एक कारण है। 
 
इसके साथ ही क्षेत्र में पहले से रह रहे लोगों को जो फ़ायदे होने का आश्वासन दिया जा रहा है, उस पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।  सुल्फ़िकार अमीर कहते हैं कि कालिमंतान क्षेत्र में रहने वाले कई रूढ़िवादी लोग इसका विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें चिंता है कि नई राजधानी के निर्माण से उनके जंगलों को अधिक नुकसान पहुंचेगा और वनों पर निर्भर उनकी उपजीविका प्रभावित होगी। 
 
वहीं नई राजधानी में आधुनिक टेक्नोलॉजी और डिजिटल कार्यप्रणाली पर आधारित उद्योगों में इस क्षेत्र के कम शिक्षित लोगों को शायद रोज़गार भी नहीं मिलेगा। 
 
अगर राजधानी को नूसंतारा ना ले जाया जाए तो जकार्ता की समस्या सुलझाने का दूसरा विकल्प क्या है?
 
सुल्फ़िकार अमीर ने कहा कि उनके पास विकल्प है, ''हमारी योजना के अनुसार चौदह अन्य शहरों को विकसित किया जाए जिसमें से चार सुमात्रा में होंगे, तीन कालिमंतान, तीन सुलावेसी में और एक एक शहर ईस्ट नूसंतारा, वेस्ट नूसंतारा, मोलोक्को और पापुआ में होगा। अगर हमारे राष्ट्रपति प्रत्याशी चुनाव जीत जाते हैं तो वो इस योजना पर अमल करेंगे।  जो धन नूसंतारा में राजधानी बनाने के लिए आवंटित किया गया है हम उसी का इस्तेमाल करके इन शहरों को विकसित करेंगे और जकार्ता राजधानी बना रहेगा।''
 
सुल्फ़िकार अमीर का मानना है कि राजधानी के स्थानांतरण से ईस्ट नूसंतारा के लोगों को सीमित लाभ होगा लेकिन देश को कोई ख़ास लाभ नहीं होगा। 
 
राष्ट्रपति की प्राथमिकताएं
नूसंतारा को 17 अगस्त 2024 के दिन यानि इंडोनेशिया के स्वतंत्रता दिवस पर आधाकारिक तौर पर राजधानी घोषित किया जाना है। सिंगापुर की यूसुफ़ इशाक इंस्टिट्यूट की वरिष्ठ शोधकर्ता और इंडोनेशियन सट्डीज़ प्रोग्राम की सह समन्वयकर्ता जूलिया लाऊ मानती हैं कि अगले राष्ट्रपति के लिए नई राजधानी परियोजना एक चुनौती साबित होगी।  अब नई राजधानी बनाने के लिए क़ानून पारित हो गया है तो जो भी राष्ट्रपति बनेगा उसे इस पर अमल करना पड़ेगा। 
 
राष्ट्रपति चुनाव फ़रवरी में होने वाले हैं। वर्तमान राष्ट्रपति विडोडो पांच साल के दो कार्यकाल पूरे कर चुके हैं इसलिए वो यह चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। चुनाव में तीन उम्मीदवारों में एक उम्मीदवार वर्तमान प्रतिरक्षा मंत्री हैं। 
 
''प्रतिरक्षा मंत्री प्रबोवो सुबियांतो राष्ट्रपति चुनाव में एक प्रबल उम्मीदवार हैं, मगर उनकी ख़ास बात यह है कि वो तीन बार राष्ट्रपति चुनाव लड़ चुके हैं। इस बार प्रशासनिक निरंतरता के मुद्दे पर चुनाव लड़ रहे हैं। उनके साथ वर्तमान राष्ट्रपति विडोडो के बेटे उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होंगे। सर्वेक्षणों से पता चलता है कि चुनावी रेस में वो सबसे आगे चल रहे हैं।''
 
जावा प्रांत के पूर्व गवर्नर गांजर प्रोनोवो भी चुनावी मैदान में हैं। वो भी राष्ट्रपति विडोडो की पार्टी के हैं। जूलिया लाऊ कहती हैं कि वो विडोडो की नीतियों से कुछ अंतर बनाकर चल रहे हैं। मगर नूसंतारा में राजधानी बसाने के बारे में उनका क्या रुख़ होगा?
 
जूलिया लाऊ ने कहा, ''मुझे लगता है तीनों उम्मीदवारों में प्रबोवो सबसे तेज़ी से कदम उठाएंगे और विदेशी निवेश लाने में भी अधिक सक्रिय रहेंगे। लेकिन अगर गांजर या बसवाडेन राष्ट्रपति बनते हैं तो नूसंतारा परियोजना कुछ धीमी हो जाएगी लेकिन उसे त्यागा नहीं जाएगा। यह दोनों उम्मीदवार यह आश्वासन दे रहे हैं कि वो लोगों की चिंताओं को ध्यान में रखकर ही नई राजधानी परियोजना को अंजाम देंगे।''
 
जूलिया लाऊ के अनुसार तीनों उम्मीदवारों में केवल अनीस बेसवेडन ही राजधानी के स्थानांतरण का अधिक विरोध कर रहे हैं। मगर आम लोगों में राजधानी को जकार्ता से नूसंतारा ले जाने के बारे में क्या राय है? जूलिया लाऊ का कहना है कि जकार्ता में कुछ लोग जो शहर नहीं छोड़ना चाहते वो इसके ख़िलाफ़ हैं और कालिमंतान में कुछ गुटों को इसे लेकर चिंता है। 
 
इंडोनेशिया दक्षिण पूर्व एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। राजधानी के स्थानांतरण से इंडोनेशिया के क्षेत्रीय सबंधों पर क्या असर पड़ेगा?
 
जूलिया लाऊ के अनुसार फिलीपींस, मलेशिया और ब्रुनेई इंडोनेशिया की नई राजधानी के सबसे नज़दीकी पड़ोसी हैं।  उनके साथ संबंध बेहतर बनाने में आसानी होगी। लेकिन सिंगापुर, थाईलैंड और अन्य देशों के साथ भी इंडोनेशिया के संबंध अच्छे हैं। वो क्षेत्र का एक प्रभावशाली देश है। इसलिए राजधानी के स्थानांतरण से कूटनीति पर ख़ास असर नहीं पड़ेगा।
 
राजधानी के स्थानांतरण का पहला चरण लगभग पूरा हो गया है। चार चरण बाकी हैं। जूलिया लाऊ का कहना है कि अभी तक इस काम के लिए कोई बड़ा विदेशी निवेश नहीं हुआ है। इस काम को पूरा करने के लिए अस्सी प्रतिशत निवेश विदेशों से आना है, लेकिन सभी इस बात का इंतज़ार कर रहे हैं कि इंडोनेशिया का अगला राष्ट्रपति कौन बनेगा।
 
अगर विदेशी निवेश नहीं आया तो अगले चरण के काम धीमे पड़ जाएंगे। तो अब लौटते हैं अपने मुख्य प्रश्न की ओर- क्या इंडोनेशिया अपनी राजधानी को स्थानांतरित करने में सफल हो पाएगा?
 
यह विश्वास व्यक्त किया जा रहा है कि पहले चरण का काम निर्धारित समय तक पूरा हो जाएगा लेकिन अगर शेष चरणों के लिए विदेशी निवेश नहीं आया तो काम रुक जाएगा। दूसरी समस्या होगी लोगों को अन्य जगहों से नई राजधानी में आकर बसने के लिए राज़ी करना।
 
वहीं राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार वर्तमान राष्ट्रपति की परियोजना का पूरी तरह समर्थन करते नज़र नहीं आते। नई राजधानी के निर्माण को पूरा होने में अभी 21 साल और लगेंगे।
 
जकार्ता बढ़ती आबादी के बोझ तले धंस रहा है, भारी प्रदूषण और समुद्र के बढ़ते जल स्तर की वजह से ख़तरे में है।  ऐसे में सबकुछ इस बात पर निर्भर करेगा के इंडोनेशिया के नए राष्ट्रपति क्या करते हैं। 

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