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आसिया बीबी मामला: क्या जिहादियों के आगे घुटने टेक चुका है पाकिस्तान?

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, सोमवार, 12 नवंबर 2018 (12:02 IST)
आसिया बीबी या तो पाकिस्तान छोड़ दे या उसे दुनिया छोड़ने पर ही मजबूर कर दिया जाएगा. कट्टरपंथी जिस तरह से बीबी की जान के पीछे पड़े हैं, उससे पता चलता है कि पाकिस्तान की हुकूमत किसके हाथ में है।
 
 
पाकिस्तान ने आसिया बीबी की जिंदगी से दस साल छीन लिए। 1971 में पैदा हुई बीबी ने अपने जीवन के सबसे अहम साल जेल में बिताए हैं। पांच बच्चों की मां आसिया बीबी। 2009 में उस पर ईशनिंदा का आरोप लगा और 2010 में उसे फांसी की सजा सुनाई गई।
 
 
पाकिस्तान में किसी को जेल भिजवाने के लिए ईशनिंदा का आरोप लगा देना काफी है। आसिया बीबी के मामले में लगभग एक दशक बाद 31 अक्टूबर 2018 को देश के सुप्रीम कोर्ट ने उसके हक में फैसला सुनाया। दुनिया भर में उदारवादियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इस फैसले को सराहा।
 
 
अदालत के फैसले का तार्किक नतीजा तो यही होना चाहिए था कि बीबी की फौरन रिहाई हो जाती। लेकिन अधिकारियों को मजबूरन हफ्ता भर बीबी को जेल में ही रखना पड़ा। इस्लामी कट्टरपंथी उसकी फांसी की मांग करते रहे और अदालत के खिलाफ सड़कों पर उतर आए।
 
 
कई शहरों में उन्होंने दुकानों और गाड़ियों को आग लगा दी। वे चिल्लाते रहे कि ईशनिंदा करने वाले को जीने का कोई हक नहीं है। तहरीक ए लब्बैक नाम के संगठन ने तो यहां तक ऐलान कर दिया कि बीबी की रिहाई का फैसला लेने वाले जजों की जान ले लेनी चाहिए। वे तो फौजियों से भी अपील करने लगे कि सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के खिलाफ विद्रोह कर दें।
 
 
इन संजीदा धमकियों के बावजूद पाकिस्तान सरकार कट्टरपंथियों को कड़ा जवाब नहीं दे सकी। प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार ने डर के मारे आसिया बीबी के देश से बाहर जाने पर रोक लगाने की बात भी मान ली।
 
 
सरकार ने तहरीक ए लब्बैक के साथ अपने समझौते को यह कहते हुए सुरक्षित रखा कि वह सड़कों पर और हिंसा नहीं चाहती। ऐसा भी मुमकिन है कि सरकार सिर्फ स्थिति से निपटने के लिए थोड़ा और वक्त हासिल कर रही थी। बुधवार को खबर आई कि आसिया बीबी को जेल से रिहा कर दिया गया है और शायद उसे जल्द ही देश से बाहर भी भेज दिया जाए ताकि उसकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
 
 
बीबी का यह मामला दिखाता है कि ईशनिंदा आज भी पाकिस्तान में एक संवेदनशील मुद्दा है। और भी अहम यह है कि 1980 के दशक में बने ईशनिंदा कानून को बदला ही नहीं जा सकता। इसका विरोध करना या फिर इसमें बदलाव की मांग करने को भी ईशनिंदा ही माना जाता है। 2011 में दो नेताओं की इसी कारण जान भी गई। दोनों बीबी का समर्थन कर रहे थे और कानून बदलने की पैरवी भी कर रहे थे।
 
 
सुप्रीम कोर्ट द्वारा बीबी की रिहाई का फैसला सकारात्मक जरूर है लेकिन जिस कानूनी बुनियाद पर जजों ने फैसला सुनाया है, वह समस्याओं से भरी है। जजों ने कहा कि बीबी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं मिले। इस तरह का फैसला कोई मिसाल कायम नहीं करता। सब जानते हैं कि पाकिस्तान में झूठे सबूत खड़े करना कितना आसान है।
 
 
इस वक्त जरूरत यह है कि पाकिस्तान के नेता साथ बैठ कर देश की विवादित इस्लामी कानून व्यवस्था को बदलने पर चर्चा करें। मुझे उम्मीद तो नहीं है कि वो सरकार, जिसका सबसे अहम अंग उसकी सेना है, वो कट्टरपंथी इस्लाम पर अपना रुख बदल सकेगी। क्योंकि देश चलाने वालों के पास भारत के खिलाफ नफरत फैलाने का और सेना के लिए देश के बजट का बड़ा हिस्सा ऐंठने का यही एक तरीका है।
 
 
लेकिन फिर भी हालिया घटनाएं पाकिस्तानी नेताओं, सेनाध्यक्षों और न्याय पालिका के लिए एक खतरे की घंटी जैसी हैं। उन्हें यह समझना होगा कि कानून व्यवस्था में बदलाव अब जरूरी हो गए हैं। अगर सरकार और अदालत ने ऐसा नहीं किया, तो आने वाले सालों में देश पर उनका कोई नियंत्रण नहीं रह जाएगा और पाकिस्तान को सड़कों पर बैठे धर्म के ठेकेदार चला रहे होंगे।
 
 
वैसे, लगता है कि पाकिस्तान पहले ही बेकाबू हो चुका है। देश की सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद भी आसिया बीबी इसलिए जेल से नहीं निकल पाई कि कट्टरपंथी उसे मार डालेंगे। इससे पता चलता है कि पाकिस्तान एक विफल राष्ट्र बनने के रास्ते पर निकल चुका है।
 
 
फिलहाल अटकलें लग रही हैं कि बीबी को जल्द ही देश से बाहर ले जाया जाएगा या फिर शायद वह बाहर जा चुकी है। लेकिन सवाल यह उठता है कि अदालत के फैसले के बाद बीबी अपने देश में ही एक स्वतंत्र नागरिक के रूप में क्यों नहीं जी सकती। ऐसा क्यों जरूरी है कि जान बचाने के लिए उसे किसी पश्चिमी देश में शरण लेनी पड़े? क्या पाकिस्तान एक सामान्य देश की तरह काम नहीं कर सकता?
 
 
अब वक्त आ गया है कि पाकिस्तान 1980 के दशक में अपनाए गए खतरनाक रास्ते को छोड़ दे। अपने दुश्मन भारत से लड़ने की सनक ने पाकिस्तान को अफगानिस्तान में रणनीतियां बनाने पर मजबूर कर दिया है और इससे वह इतना कमजोर हो गया है कि देश की शक्तिशाली सेना को भी जिहादियों के आगे घुटने टेकने पड़ रहे हैं।

 
रिपोर्ट शामिल शम्स
 
 

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