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सूर्य के ताप और चकाचौंध को पार करता एक वैज्ञानिक महाप्रयोग

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शरद सिंगी

हम सब जानते हैं कि पृथ्वी पर जीवन का मुख्य कारण सूर्य से मिलने वाली ऊर्जा है। सूर्य, पृथ्वी के लिए प्रकाश और उष्णता का एकमात्र स्रोत है, साथ ही सूर्य हमारे सौरमंडल का गृह तारा भी है जिसके गर्भ से पृथ्वी एवं अन्य ग्रहों ने जन्म लिया था।
 
वैज्ञानिकों के अनुसार जब सूर्य अपनी ऊर्जा खो देगा तो पृथ्वी का सूर्य में विलय हो जायेगा। याने जहाँ से हम आए थे उसी में विलीन हो जायेंगे। इसलिए सूर्य के बारे में अधिक से अधिक जानने की उत्कंठा सभी वैज्ञानिकों को रहती है किन्तु उसके तेज के सामने नतमस्तक होना पड़ता है।
 
एक पौराणिक कथा के अनुसार तो बाल हनुमान उगते सूर्य की लालिमा को देखकर उसे फल समझ बैठे और लपक लिए उसे पकड़ने के लिए। वे तो पवन पुत्र थे, शक्तिशाली थे और देव थे जो सूरज के ताप को आसानी से सहन कर गए। किन्तु वैज्ञानिक तो ऐसा नहीं कर सकते इसलिए उन्होंने बनाया है एक ऐसा तापरोधी यान जो सूर्य के नज़दीक जाने का प्रयास करेगा और वहां से सूचनाएं एकत्रित कर वैज्ञानिकों को देगा। 
 
नासा के इस यान, जिस का नाम प्रसिद्ध वैज्ञानिक पारकर के नाम पर रखा गया है, ने 12 अगस्त को "टच द सन" मिशन के अन्तर्गत सूर्य की ओर उड़ान भर दी। इस यान का कवच बनाने में दो कार्बन प्लेटों के बीच सैंडविच की तरह कार्बन मिश्रित फोम का उपयोग किया गया है जो करीब 1400 डिग्री तापमान को सहन कर सकेगा।
 
सूर्य के करीब तक पहुंचने का नासा का यह पहला मिशन है जो सात साल तक चलेगा। यान का आकार एक छोटी कार के बराबर है। चौदह करोड़ किमी से अधिक की दूरी तय करके यह जाँच यान  सूर्य के निकट पहुंचेगा। इसमें चार वैज्ञानिक उपकरण लगाए गए हैं जो सूरज के बाहरी वातावरण, जिसे करोना कहा जाता है,  के बारे में काफी जानकारी एकत्र करेंगे।
 
पारकर यान, तीव्र गर्मी और सौर विकिरण के खतरनाक क्षेत्र में अपनी वैज्ञानिक जांच करेगा। मिशन का प्राथमिक लक्ष्य यह पता लगाना है कि सूर्य के करोना क्षेत्र में ऊर्जा और गर्मी का संचलन कैसे होता है और यह भी पता लगाया जायेगा कि सौर हवाओं और सौर ऊर्जावान कणों को गति कैसे मिलती है।
 
यान को सूर्य की ओर भेजने में तापमान के आलावा वैज्ञानिकों के सामने कुछ और भी मुश्किलें थीं। सूर्य पृथ्वी से करीब पंद्रह करोड़ किमी दूरी पर है। यदि कार के बराबर किसी यान को करोड़ों किलो मीटर तक उड़ाना है तो उसके पीछे ईंधन ढोने वाली रेलगाड़ी भी कम पड़ेगी। यदि इतना ईंधन इस यान के पीछे टंकियों में भर दें तो इतने वजन को उड़ाने और ढोने में कितना और ईंधन लगेगा इसकी कल्पना भी मुश्किल है? अर्थात इतने ईंधन के साथ यान को प्रक्षेपित करना तो संभव ही नहीं होता है।
 
दूसरी मुश्किल थी सूर्य की ओर प्रक्षेपण। पूरे सौर मंडल में सूर्य के शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव महसूस होता है।  यदि मनुष्य अपना वज़न सूर्य पर करे तो लगभग तीस गुना बढ़ा हुआ पायेगा। इतने शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण के बावजूद, सूर्य की ओर उड़ना वाकई में मुश्किल है।
 
इसको समझने के लिए किसी मेले में लगे चकरी झूले का उदाहरण लेते हैं जो अपने केंद्र के आस पास तेजी से वृत्ताकार घूम रहा है। यदि किसी झूले की रस्सी टूट जाय तो वह वृत्त से बाहर जाकर गिरेगा केंद्र की ओर नहीं। वैसे ही पृथ्वी अपने केंद्र, सूर्य की परिक्रमा बहुत तेज गति से करती है। यदि किसी वस्तु को इस चलती गति में से बाहर निकलना है तो वह वृत्त के बाहर की ओर निकलेगी, केंद्र की ओर नहीं। जबकि सूर्य तो केंद्र में है। अतः यदि वृत्त में तेजी से घूमती किसी वस्तु को केंद्र की ओर फेंकना है तो उसे बहुत शक्ति चाहिए।
 
नासा के अनुसार, 'मंगल ग्रह पर जाने की अपेक्षा सूरज पर जाने के लिए 55 गुना ऊर्जा अधिक खर्च होती है।' 
अब उस चमत्कार की बात करें जिसकी वजह से इतने अवरोधों के बावजूद इस यान को सूर्य की ओर भेजना संभव हुआ।
 
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वैज्ञानिक बड़ी चतुराई से मार्ग में आने वाले ग्रहों से ऊर्जा की चोरी करते हैं। सूर्य के मार्ग में शुक्र ग्रह रास्ते में पड़ता है। हमारे लिए यह अचम्भा है किन्तु वैज्ञानिक और गणितज्ञ बड़ी बुद्धिमानी से ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण से खेलते हैं और उनसे गुरुत्वीय मदद लेकर यान को अगले पड़ाव पर ले कर जाते हैं।
 
पारकर यान सात वर्षों में सात बार शुक्र की गुरत्वीय मदद का लाभ लेते हुए सूर्य के वातावरण में प्रवेश करेगा। यद्यपि वह सूर्य से फिर भी साठ लाख किमी दूरी पर रहेगा किन्तु उसके करोना के बीच में होगा और वहाँ से वो सभी जानकारी उपलब्ध करा देगा। अंत में इस यान को स्वयं अपने ही हवाले कर दिया जायेगा जो बाद में सूर्य में कहीं विलुप्त हो जायेगा और हमें सूर्य के वो सब राज बता जाएगा जो आज तक वैज्ञानिकों के लिए रहस्य है। हम सबकी शुभकामना इस महावैज्ञानिक प्रयोग के साथ। अभी तक वैज्ञानिको को मिली सफलताओं से उत्साहित यह वैज्ञानिक महाप्रयोग सफल होगा ऐसी आशा भी है और कामना भी। 
 
 

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