Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

प्रवासी कविता : पर्वत

हमें फॉलो करें प्रवासी कविता : पर्वत
- हर नारायण शुक्ला
मिनियापोलिस, मिनिसोटा, USA.
 
अनंतकाल से अटल खड़ा है,
पर्वत एक विशाल,
उत्तुंग शिखर उसका चमके,
जैसे कोई मशाल।
 
अचल खड़ा है पर्वत,
जैसे हो अनुशासित प्रहरी,
देश का वह रक्षक है,
पाषाण शिला से रचित गिरि।
 
अडिग खड़ा है पर्वत,
हिमपात हो या झंझावात,
मेघपुंज टकराते गिरि से,
टूट कर होती है बरसात।
 
पर्वत शिखर की दूरदृष्टि है,
यात्रा की कोई चाह नहीं,
पर्वत पुत्री नदी घुम्मकड़,
यात्रा सिवा कोई काम नहीं।   
 
वृक्ष लताओं से आच्छादित,
गिरि पर्वत सज जाते हैं,
बनकर वन्य पशुओं का निवास,
पर्वत प्राणवान हो जाते हैं।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Navratri 2021 : नवरात्रि में कन्या पूजन के बाद दे सकते हैं ये उपहार