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लद्दाख सेक्टर में भारत-चीन सीमा के 8 स्थानों पर टकराव की स्थिति

चीनी सेना के टालमटोल के रवैये के Indian Army ने बीच सर्दियों के लिए मोर्चाबंदी आरंभ की

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सुरेश एस डुग्गर

जम्मू। लद्दाख सेक्टर में करीब 8 स्थानों पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच बनी हुई टकराव की स्थिति के चलते भारतीय सेना (Indian Army) ने अपनी मोर्चाबंदी में तेजी लाई है। दरअसल चीनी सेना इन स्थानों से पीछे हटने पर हुए समझौतों के बावजूद टालमटोल की रणनीति अपनाए हुए है।
 
पैंगांग झील (Pangong Lake) के पीछे के किनारों पर 8 फिंगर अर्थात हाथों की 8 अंगुंलियों की तरह वाली पहाड़ी श्रृंखला पर चीनी सेना काबिज है। इन्हें भारतीय सेना पीपी के नाम से पुकारती है अर्थात पैट्रोलिंग प्वाइंट और चीनी सेना फिंगर 1 से 8 के नाम से।
 
रक्षा सूत्रों के बकौल, सबसे अधिक तनावपूर्ण स्थिति पीपी-17 ए पर बनी हुई है जहां दोनों सेनाएं अभी भी 1 किलोमीटर की दूरी पर हैं और चीनी सैनिक लगातार चीनी दावे वाली एलएसी तक गश्त करते हुए भारतीय सैनिकों को उकसा रहे हैं। भारतीय सेना ने फिलहाल इस इलाके में भी गश्त को रोका हुआ है।
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सेनाधिकारी कहते थे कि कोर कमांडर स्तर की वार्ता के बाद चीनी सेना पीपी-15 के हाट स्प्रिंग इलाके से हटने को राजी तो दिखती है पर वह समझौते का पालन करने में अभी भी आनाकानी कर रही है। इसकी खातिर अगले सप्ताह फिर से कोर कमांडर स्तर की वार्ता होने जा रही है।
 
ठीक इसी प्रकार पीपी-14 के विवादित क्षेत्र में, जिसे गलवान वैली का इलाका भी कहा जाता है, दोनों सेनाएं करीब 4 किमी की दूरी पर हैं। बीच का इलाका बफर जोन बना दिया गया है। यहां पर भारतीय सेना को अपने ही इलाके से न सिर्फ पीछे हटना पड़ा, बल्कि उसे भारतीय क्षेत्र में ही बफर जोन बनाने का समझौता भी करना पड़ा है।

इस इलाके में भारतीय सेना के कुछ बख्तरबंद वाहन गलवान वैली झड़पों के बाद फंसे हुए थे, जिन्हें आज सुबह ही पूरी तरह से निकाला गया है। दौलत बेग ओल्डी की ओर जाने वाली सड़क के किनारों पर भी चीनी सेना लगातार गश्त करते हुए भारतीय इलाकों के लिए खतरा पैदा कर रही है जबकि देपसांग तथा कुछ और इलाकों में वह पूरी तरह से मोर्चाबंदी किए हुए है। 
 
रक्षाधिकारी मानते थे कि चीनी रवैये से यही लगता है कि लद्दाख सीमा का विवाद लंबा चलेगा और ऐसे में यही कारण था भारतीय सेना ने बंकर बनाने, खंदकें खोदने तथा बैरकों के निर्माण के कार्य में तेजी लाई है। हालांकि उनकी सबसे बड़ी चिंता टैंकों और तोपखानों की है जिन्हें भयानक ठंड से बचाने की खातिर उनकी लगातार फायरिंग प्रैक्टिस कैसे की जाए, यह सवाल उनके लिए यक्ष प्रश्न बन गया था।


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