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प्रेम कविता : बात मुद्दत से जो थी आंखों में....

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राकेशधर द्विवेदी

बात मुद्दत से जो थी आंखों में
आज लबों पे उतर आई है
तू मेरे इश्क की इबारत है
तू इसे पढ़ न पाई है
रात रो रो कर हमने काटी है
दुःख में कोई अब न साथी है
चांद आज रात भर रोया है
ओस की बूंदों ने गवाही दी है
सजल नैनों और बंद होंठों से 
किसी गीत की आवाजाही है
जिसके पीड़ा के स्वर को सुन 
सुबह-सुबह गुलाब मुस्कराया है।
दर्द का स्वर सीप में पड़कर 
मोती बनकर खिलखिलाया है। 
बात मुद्दत से जो थी आंखों में
आज लबों पे उतर आई है
तू मेरे इश्क की इबारत है
तू इसे पढ़ न पाई है।

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