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शुभ कार्य को आरंभ करने का महोत्सव है वसंत पंचमी

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आचार्य राजेश कुमार

काशी पंचांग के अनुसार वसंत पंचमी का दिन माघ मास के पंचमी तिथि को दिनांक 22 जनवरी 2018 को सुबह 7.17 से दोपहर 12.32 बजे के मध्य मनाया जाएगा। वसंत पंचमी के दिन किसी भी समय मां सरस्वती की पूजा की जा सकती है लेकिन प्रात: से दोपहर तक का समय पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। 
 
पर्व का महत्व- 
वसंत पंचमी या श्रीपंचमी एक हिन्दू त्योहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजन-पंचमी पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनाई जाती है। इस दिन स्त्रियां पीले, नारंगी, श्वेत और वासंती परिधान धारण करती हैं।
 
ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
 
अर्थात् यह परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में यह हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से ख़ुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और इस तरह भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो आज तक जारी है।
 
पौराणिक महत्व
इसके साथ ही यह पर्व हमें अतीत की अनेक प्रेरक घटनाओं की भी याद दिलाता है। सर्वप्रथम तो यह हमें त्रेता युग से जोड़ती है। रावण द्वारा सीता के हरण के बाद श्रीराम उसकी खोज में दक्षिण की ओर बढ़े। इसमें जिन स्थानों पर वे गए, उनमें दंडकारण्य भी था। यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी। जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध-बुध खो बैठी और चख-चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी। प्रेम में पगे झूठे बेरों वाली इस घटना को रामकथा के सभी गायकों ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया। दंडकारण्य का वह क्षेत्र इन दिनों गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है। गुजरात के डांग जिले में वह स्थान है जहां शबरी मां का आश्रम था। वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहां आए थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रद्धा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है। 
 
ऋतुओं का राजा 
भारतीय पंचांग में छह ऋतुएं होती हैं. इनमें से वसंत को ऋतुओं का राजा कहा जाता है। वसंत फूलों के खिलने और नई फसल के आने का त्योहार है। ठंड के बाद प्रकति की छटा देखते ही बनती है। इस मौसम में खेतों में सरसों की फसल पीले फूलों के साथ, आमों के पेड़ों पर आए फूल, चारों तरफ हरियाली और गुलाबी ठंड मौसम को और भी खुशनुमा बना देती है। सेहत की दृष्टि से यह मौसम बहुत अच्छा होता है। इंसानों के साथ पशु-पक्षियों में नई चेतना का संचार होता है। इस ऋतु को काम के लिए भी अनुकूल माना जाता है। इस दिन देवी सरस्वती का जन्म हुआ था यही कारण है कि यह हिन्दुओं के लिए बहुत खास है। पवित्र नदियों में लोग स्नान आदि करते हैं इसके साथ ही वसंत मेला का भी आयोजन किया जाता है।  

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