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विज्ञान ने भी माना, डॉक्टर छोड़ें योगी ढूंढें

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राम यादव

, बुधवार, 21 जून 2023 (07:02 IST)
Scientific research on yoga : योग और ध्यान को, भारत की ही तरह, यूरोप में भी मूल रूप से एक धार्मिक-आध्यात्मिक विषय ही माना जाता था। किंतु यूरोपीय वैज्ञानिक अब योग पर जितना अधिक शोध करते हैं, उतना ही अधिक मुग्ध होते हैं।
 
लंबे समय तक यूरोप वालों के लिए भी योग का अर्थ शरीर को खींचने-तानने और ऐंठने-मरोड़ने की एक कठिन भारतीय 'हिंदू' कला से अधिक नहीं था। 'हिंदू' शब्द उसकी व्यापक स्वीकृति और वैज्ञानिक अनुमति में मनोवैज्ञानिक बाधा डालने के लिए कभी-कभार अब भी उसके साथ जोड़ा जाता है। विज्ञान के लिए वह सब प्रायः अवैज्ञानिक रहा है, जिसका आत्मा-परमात्मा जैसी अलौकिक, अभौतिक अवधारणाओं से कुछ भी संबंध हो। जो कुछ अभौतिक है, नापा-तौला नहीं जा सकता,  विज्ञान की दृष्टि से उसका अस्तित्व भी नहीं हो सकता। हालांकि महान भौतिकशास्त्री अलबर्ट आइनश्टाइन भी मानते थे कि भौतिकता से परे भी कोई वास्तविकता है। 
 
पिछले 25-30 वर्षों से यूरोप में योग की, विशेषकर हठयोग, की जब से धूम मची है, चिकित्सा, स्वास्थ्य और मनोविज्ञान में उस पर शोधकार्यों की भी बाढ़ आ गई है। उसकी उपयोगिता और कारगरता के बारे में नित नए सामाचार आने लगे हैं। नियमित रूप से हठयोग लगभग सभी बीमारियों को दूर रखने की रामबाण दवा सिद्ध हो रहा है। लोगों को सलाह दी जाने लगी है कि डॉक्टर छोड़ें, योगी को ढूंढें। एंटिबायॉटिक गोलियां निगलने के बदले एक घंटा योगाभ्यास करें। उच्च रक्तचाप की दशा में 'बीटा-ब्लॉकर' लेने के बदले ध्यान लगाएं (मेडिटेशन करें)।
 
यह सलाह 2016 में ब्रिटेन में एक्सेटर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक दे रहे थे। धमनी-काठिन्य (आर्टेरियोस्क्लेरॉसिस) जैसे हृदयरोगों पर विभिन्न देशों में हुए अध्ययनों का निचोड़ निकालते हुए उनका कहना था कि योगाभ्यास और ध्यान करने से रक्तवसा (कोलोस्ट्रॉल) की मात्रा और मोटापे को घटाया जा सकता है। हृदयशूल (ऐंजाइना पेक्टरिस) और रक्तवाहिकाएं तंग हो जाने पर सही क़िस्म के नियमित योगासनों से बहुत लाभ मिलता है।
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हठयोग के अनगिनत लाभ यूरोप में हुए अध्ययनों से पता चलता है कि हठयोग बीमारियों की रोकथाम तो करता ही है, पर यदि कोई व्यक्ति योग नहीं भी करता रहा हो और बीमार पड़ जाए, तो उसकी उपचार-योजना में हठयोग को शामिल करने पर रक्त के विभिन्न घटकों की मात्राओं में अनुकूल सुधार लाया जा सकता है। हठयोग से विभिन्न हार्मोनों के स्राव सामान्य स्तर पर आने लगते हैं। जोड़ों में मानो चिकनाहट बढ़ जाती है। बैक्टीरिया और वायरस से लड़ने की शरीर की रोग-प्रतिरक्षण प्रणाली और भी शक्तिशाली बनती है। नियमित रूप से हठयोग करने पर रक्त में 'इंटरल्यूकीन-6' (आईएल-6) नाम के प्रोटीन का संकेंद्रण घटता है। यह एक ऐसा प्रोटीन है, जिस की मात्रा रक्त में बढ़ने से हृदयरोग, मस्तिष्काघात (लकवा), मधुमेह2 (डायबेटीज़2) या जोड़ों में दर्द जैसी बीमारियां होती हैं। शरीर के भीतरी अंगों में जलन या सूजन पैदा करने में भी इस प्रोटीन की भूमिका होती है।
 
नियमित योगाभ्यास है सबसे कारगर दवा योगाभ्यास उन बीमारियों के विरुद्ध सबसे कारगर और उपप्रभाव (साइड इफ़ेक्ट) रहित सुरक्षित दवा के समान है, जो हमारी आधुनिक रहन-सहन की देन हैं – जैसे हाथ-पैर और कमर में दर्द, मधुमेह जैसी चयापचय (मेटबॉलिज़्म) में गड़बड़ी की बीमारियां, सांस, हृदय और रक्तंचार की बीमारियां, यहां तक कि मानसिक बीमारियां भी। महिलाओं के बीच योगाभ्यास की सबसे अधिक लोकप्रियता का एक प्रमुख कारण यह है कि मासिकधर्म के कष्टों, गर्भधारण होने या नहीं होने की समस्याओं या रजोविराम जैसी अवस्थाओं की शारीरिक ही नहीं, मानसिक परेशानियां कम करने में भी योगाभ्यास से सहायता मिलती है। 
  
जर्मनी में लापज़िग के डॉक्टर डीट्रिश एबर्ट 1980 वाले दशक से ही एक उपचारविधि के तौर पर हठयोग की उपयोगिता का अध्ययन करते रहे हैं। वे इस विषय पर लाइपज़िग विश्वविद्याल के मेडिकल छात्रों की क्लास भी लेते हैं। उनका कहना है कि ऐसे वैज्ञानिक अवलोकनों की कमी नहीं है, जो शरीरक्रिया (फ़िजियोलॉजी) पर योग के बहुत अनुकूल प्रभावों की पुष्टि करते हैं। पूर्वी जर्मनी के ग्राइफ्सवाल्ड विश्वविद्यलय के छात्रों के बीच इसी प्रकार के एक अध्ययन में देखा गया कि उन्हें 10 सप्ताह तक हठयोग कराने के बाद हृदय की धड़कन और रक्तचाप के बीच तालमेल रखने वाली तथाकथित ''बैरो-रिफ्लेक्स'' प्रणाली में स्पष्ट सुधार आ गया था। 'बैरोरिसेप्टर' कहलाने वली विशेष प्रकार की तंत्रिका-कोशिकाओं (न्यूरॉन) की बनी यह प्रणाली महाधमनी (एओर्टा) के हृदय के पास वाले घुमाव में काम करती है। वहां वह रक्तप्रवाह की मात्रा को नियंत्रित करते हुए उच्च या निम्न रक्तचाप के अनुपात में हृदय के धडकने की गति घटाने या बढ़ाने की क्रिया में सहभागी बनती है।
 
रोगप्रतिरक्षण प्रणाली बने और भी प्रभावशाली नॉर्वे के वैज्ञानिकों ने पाया कि हठयोग बहुत थोड़े ही समय में शरीर की रोगप्रतिरक्षण प्रणाली (इम्यून सिस्टम) पर अनुकूल प्रभाव डालने लगता है। नियमित हठयोग न केवल तनाव घटाता है, हड्डियों को भी मज़बूत करता है, अवसाद (डिप्रेशन) और कमर या पीठ के दर्द को कम करता है और गंभीर क़िस्म के हृदयरोगों का ख़तरा भी टालता है। नॉर्वे की विज्ञान पत्रिका 'प्लोस वन' में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, वहां के वैज्ञानिकों ने इन प्रभावों को रोगप्रतिरक्षण प्रणाली की तथाकथित 'टी' (T) कोशिकाओं के जीनों में आए परिवर्तनों के द्वारा प्रमाणित किया है। 
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इस अध्ययन के लिए नॉर्वे में दस लोगों को एक सप्ताह तक हठयोग के तीनों अंगों–यानी आसनों, प्राणायाम और ध्यानधारण का अभ्यास कराया गया। चार-चार घंटे चलने वाले अभ्यास-सत्रों से पहले और बाद में प्रतिभागियों के रक्त-नमूने लिये गए और प्रयोगशाला में उनकी तुरंत जांच की गई। दस दिन बाद पाया गया कि रोगप्रतिरक्षण प्रणाली की 'टी' कोशिकाओं के 111 जीन पहले की अपेक्षा बदले हुए थे। तुलना के लिए, जो लोग दौड़ लगाते या कोई पश्चिमी नृत्य करते हैं, उनके प्रसंग में मुश्किल से 38 जीन ही बदले हुए मिलते हैं। 
 
जीन तक में नवजीवन का संचार : इस अध्ययन की रिपोर्ट में कहा गया है कि ''हठयोग करने के दो घंटों के भीतर ही 'टी' कोशिकाओं के जीनों में परिवर्तन होने लगा था... इसका अर्थ यही है कि योगाभ्यास जैव-आणविक स्तर पर तुरंत और दीर्घकालिक प्रभाव डालने लगता है।'' इस परिणाम का एक दूसरा अर्थ यह भी निकलता है कि आजकल योग के कुछेक हल्के-फुल्के आसन कर लेने का जो फ़ैशन चल पड़ा है, उससे योगाभ्यास का पूरा लाभ नहीं मिल सकता। आसनों के बाद प्राणायाम और ध्यानधारण नहीं करने पर सारा लाभ अधूरा और अस्थायी ही सिद्ध होगा। भारतीय ऋषियों-मुनियों ने प्राणायाम और ध्यानधारण को व्यर्थ ही हठयोग का अंग नहीं बनाया था। 
 
हठयोग संबंधी अन्य प्रयोगों एवं अध्ययनों से भी यही सिद्ध होता है कि वह जैव-आणविक स्तर पर काम करता है। जैव-आणविक स्तर और प्रमात्रा-भौतिकी (क्वांटम फ़िजिक्स) के बीच सीमारेखा खींचना बहुत कठिन है। प्रमात्रा भौतिकी की दुनिया इतनी गूढ़ और रहस्यमय है कि उसे पदार्थ का आध्यात्मिक स्तर कहा जा सकता है। इस स्तर पर पदार्थ और ऊर्जा के बीच अंतर नहीं रह जाता। उदाहरण के लिए, प्रकाशकण 'फ़ोटोन' पदार्थ भी हैं और ऊर्जा भी। 
 
संभवतः इसी कारण ध्यानमग्नता या समाधि की अवस्था में व्यक्ति को कई बार रंगीन या सफ़ेद प्रकाश दिखाई पड़ता है, जो उसकी अपनी जैव-ऊर्जा का ही एक रूप होना चाहिये। योगियों का कहना है कि कुंडलिनी जागृत होने पर भी ऐसा ही प्रकाश मूलाधार चक्र से निकल कर ऊपर की ओर जाता है। वैज्ञानिक अपने अध्ययनों में फ़िलहाल जैव-आणविक स्तर से आगे नहीं गए हैं। वे यह भी नहीं मानते कि हमारे शरीर में कुंडलिनी या मूलाधार चक्र नाम की की कोई संरचना है। 25-30 साल पहले यही वैज्ञानिक यह भी नहीं मानते थे कि योगाभ्यास करने से आदमी निरोग बन सकता है या किसी गंभीर बीमारी के बाद तेज़ी से स्वास्थालाभ कर सकता है। 
 
बर्लिन में अध्ययन : जर्मनी की राजधानी बर्लिन के सबसे बड़े अस्पताल 'शारिते' की देखरेख में, 1993 में, यह देखने के लिए एक अध्ययन शुरू किया गया कि नींद नहीं आने के अनिद्रारोग, चिरकालिक सिरदर्द, उच्च रक्तचाप और चिरकालिक पीठ एवं कमरदर्द के मामले में हठयोग से क्या अपेक्षा की जा सकती है।  इस अध्ययन में बर्लिन की फ्री यूनिवर्सिटी और जर्मनी की एक सरकारी स्वास्थ्य बीमा कंपनी भी शामिल थी। 18 महींने चले इस अध्ययन में भारत से आए डॉक्टरों और मनोवैज्ञानिकों के सहयोग से 253 लोगों को हठयोग सिखाया गया। जो लोग कमर और पीठ के दर्द से लंबे समय से पीड़ित थे, उनकी स्थिति में चार ही सप्ताहों में उल्लेखनीय सुधार देखा गया। 
 
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उच्च रक्तचाप से पीड़ित योगाभ्यास करने वालों की हालत भी – अध्यन में भाग ले रहे योगाभ्यास नहीं करने वालों की अपेक्षा –चार ही सप्ताह में सुधरने लगी थी। उनका सिस्टोलिक रक्तचाप औसतन 9 प्रतिशत और डायस्टोलिक औसतन 6 प्रतिशत घट गया था। डेढ़ साल साल तक चले पूरे अध्ययनकाल के बाद उन लोगों के उच्च रक्तचाप में सबसे अधिक गिरावट आई थी, जिनका आंकड़ा अध्ययन के आरंभ में 150 एमएम से भी अधिक था। इस अध्ययन के आधार पर जर्मनी की स्वास्थ्य बीमा कंपनियों को सलाह दी गई कि कमर और पीठ के दर्द तथा उच्च रक्तचाप के रोगियों के औषधि-रहित उपचार के लिए हठयोग सीखने को वे प्रोत्साहन दे सकती हैं। जर्मनी की कई स्वास्थ्य बीमा कंपनियां इस बीच डॉक्टर की सलाह पर योग-ध्यान सीखने पर आया ख़र्च अदा  करने लगी हैं। 
 
बुद्धि भी बलवती होती है : बर्लिन के 'शारिते' अस्पताल, जर्मनी के गीसन विश्वविद्यलय और कई अमेरिकी विश्वविद्यलयों की एक मिलीजुली टीम ने 2014 में पाया कि शिक्षा और स्वास्थ्य का एक ही जैसा स्तर होने पर भी  ध्यानसाधना करने वालों और अनुभवी योगाभ्यासियों की बौद्धिक क्षमता उन लोगों की तुलना में कहीं अधिक समय तक बनी रहती है, जो योग-ध्यान नहीं करते। इस अध्ययन के लिए 16 योग करने वाले और 16 ध्यान साधने वाले प्रतिभागियों की तुलना 15 ऐसे लोगों से की गई, जो दोनों में से कुछ भी नहीं करते थे। एक 'एमआरटी' (मैग्नेटिक रेज़ोनैंस टोमोग्राफ़) की सहता से पहले उनकी दिमागी गतिविधियों को मापा गया और इसके बाद हर एक के मस्तिष्क के 116 क्षेत्रों के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान का विश्लेषण किया गया। विश्लेषण से पता चला कि जो लोग योग और ध्यान किया करते हैं, उनके मस्तिष्क में सूचनाओं का प्रवाह, ऐसा नहीं करने वालों की अपेक्षा, कहीं अधिक और कारगर ढंग से होता है।
 
यह भी देखा गया कि योग-ध्यान करने वालों के मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाओं (न्यूरॉन) का संजाल क्षतिग्रस्त होने से अपना कहीं बेहतर ढंग से बचाव करता है – यानी उनकी बुद्धि अधिक समय तक सक्षम बनी रहती है। दूसरे शब्दों में, योग और ध्यान बढ़ती हुई आयु के साथ बुद्धि और स्मरणशक्ति में आने वाली गिरावट से मस्तिष्क को लंबे समय तक बचाए रख सकते हैं। इसी तरह के एक दूसरे प्रयोग में प्रतिभागियों के एक ग्रुप से 20 मिनट तक योगाभ्यास कराया गया और दूसरे ग्रुप को 20 मिनट तक एक मेहनती खेल खेलना पड़ा। बाद में दोनों ग्रुपों की दिमागी़ परीक्षा ली गई। यह परीक्षा योगाभ्यासी ग्रुप ने, खिलाड़ी ग्रुप की अपेक्षा, कम समय में और बेहतर ढंग से पास करली। 
 
फ्री-रैडिकल्स को करे निष्क्रिय : हमारे स्वास्थ्य के लिए आजकल सबसे बड़ी चुनौती है कैंसर से बचे रहना। कैंसर के अनेक प्रकार हैं और अनेक कारक भी। एक ख़तरनाक कारक हैं हमारे शरीर के भीतर बनने वाले वे 'फ्री-रैडिकल', जो सूर्य प्रकाश की पराबैंगनी (अल्ट्रावायोलेट) किरणों, प्रदूषित गैसों, पर्यावरण प्रदूषण और डॉक्टरी दवाओं के प्रभाव से बनते हैं। फ्री-रैडिकल ऑक्सीजन-धारी ऐसे अणुओं को कहते हैं, जिनकी रासायनिक संरचना में एक इलेक्ट्रॉन की कमी रह गई है। इस के कारण वे बेहद अस्थिर होते हैं। जिस इलेक्ट्रॉन की कमी होती है, उस की जगह भरने के लिए वे कहीं किसी दूसरे अणु से – उदाहरण के लिए किसी कोशिका की दीवार से, किसी प्रोटीन के अणु से या डीनए से – कोई नया इलेक्ट्रॉन झपट लेने की भयंकर उतावली में रहते हैं।
 
वैज्ञानिकों ने हिसाब लगाया है कि हमारे शरीर में जैसे ही कहीं कोई फ्री-रैडिकल अणु बनता है, वह एक सेकंड के 10 अरबवें हिस्से के बराबर समय में किसी दूसरे अणु पर डाका डाल कर उसका एक इलेक्ट्रॉन छीन लेता है। अपना एक इलेक्ट्रॉन छिन जाने से अब यह दूसरा अणु फ्री-रैडिकल बन जाता है और किसी तीसरे अणु से उसका एक इलेक्ट्रॉन छीनता है। इस तरह शरीर में फ्री-रैडिकल बनने की एक अविराम श्रृखला शुरू हो सकती है। इन फ्री-रैडिकल्स की सघनता बढ़ने से शरीर की बहुत-सी कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होने और शारीरिक क्रियाएं बाधित होने लगती हैं। इससे कैंसर या मधुमेह जैसी कई बीमारियां हो सकती हैं। योग और ध्यान की एक बड़ी विशेषता यह भी है कि वे ऑक्सीजन-धारी फ्री-रैडिकलों को बांधने वाले 'एन्टी-ऑक्सिडंट' का काम करते हैं। दूसरे शब्दों में, योग और ध्यान कैंसर और मधुमेह की रोकथाम करने और उनसे लड़ने में सहायक होते हैं।  
  
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अध्ययनों की बाढ़ : यूरोपीय देशों के विभिन्न अस्पतालों और विश्वविद्यालयों में इन दिनों मन और मस्तिष्क पर विशेषकर ध्यानसाधना के प्रभावों के अध्ययनों की बाढ़-सी आई हुई है। डॉक्टर और मनोचिकित्सक हिंदू और बौद्ध ध्यानसाधना विधियों को आधुनिक चिकित्सा पद्धति के साथ जोड़ने में व्यस्त हैं। अब तक के अनेक प्रयोग और अध्ययन इस बात की पुष्टि करते हैं कि ध्यानसाधना से भय, क्रोध, चिंता, तनाव, अवसाद-विषाद या मूड ख़राब रहने जैसी शिकायतें न केवल घटती हैं, लंबे और नियमित अभ्यास द्वारा उनसे छुटकारा भी पाया जा सकता है।
 
जर्मनी में गीसन विश्वविद्याल के मनोवैज्ञानिक प्रोफ़ेसर उलरिश ओट योग-ध्यान की सहायता से मानसिक बीमारियों को दूर करने के एक नामी विशेषज्ञ हैं। अपनी बहुचर्चित पुस्तक ''संदेहियों के लिए योग'' में उन्होंने 50 ऐसे अभ्यासों का वर्णन किया है, जिनसे व्यावहारिक अनुभव प्राप्त कर कोई भी योग और ध्यान के प्रति अपना संदेह दूर कर सकता है। उनका कहना है, ''योगाभ्यास के समय दिल की धड़कनें और सांस की गति भले ही बढ़ जाती है...उसके बाद की अवस्थाओं में अभ्यास का अनुकूल प्रभाव महसूस होने लगता है। शरीर के स्वतः नियमन एवं संतुलन का संपूर्ण तंत्र गतिशील एवं सटीक बन जाता है।'' दूसरे शब्दों में, योगाभ्यास बिना, किसी दवा या गोली के, अपना उपचार स्वयं करने की शरीर की क्षमता को जागृत करता है। उल्लेखनीय है कि होम्योपैथी की दवाएं भी – जिनमें रासायनिक दृष्टि से शुद्ध पानी, अल्कोहल या दुग्ध-शर्करा के सिवाय कुछ नहीं होता – शरीर की स्वयं-उपचारक क्षमता को जागृत करने के ही सिद्धांत के अनुसार काम करती हैं।      
 
योग-ध्यान कैंसर को भी करे कैंसल : कैंसर की रोकथाम या उपचार को लेकर योग-ध्यान की इस क्षमता पर ढेर सारे अध्ययन एवं परीक्षण हुए हैं और अब भी हो रहे हैं। प्रो. उलरिश ओट का इस बारे में कहना है, ''महिलाओं में स्तन कैंसर के बारे में बहुत सारे अध्ययन प्रकाशित हुए हैं। उनसे संकेत मिलता है कि योगाभ्यास इस प्रसंग में महिलाओं में एक नया आत्मविश्वास पैदा करनें में सहायक बन सकता है। योग और ध्यानसाधना से वे स्वयं को और अपने शरीर को स्वीकार करने की एक ऐसी सकारात्मक भावना अपने भीतर जगा सकती हैं, जो शारीरिक वेदना और मानसिक विषाद के आगे हार नहीं माने। इससे कैंसर जैसी भीमारियों पर भी विजय पायी जा सकती है। वेदना और विषाद ही अंततः शारीरिक बीमारियों का रूप लेते है।''   
 
योग और ध्यान की इसी क्षमता के कारण आधुनिक एलोपैथिक चिकित्सा के बर्लिन के दो डॉक्टर एमोगन डालमान और मार्टिन ज़ोडर अपने दवाखाने में अब केवल योगाभ्यास के द्वारा ही रोगियों का उपचार करते हैं। ''आधुनिक चिकित्सा पद्धति के हम डॉक्टरों को अब अपना विचार बदलना होगा'', उनका कहना है, ''क्योंकि आधुनिक चिकित्सा पद्धति केवल बीमारी को देखती है, बीमार व्यक्ति को नहीं।'' 
 
बर्लिन में जर्मनी के सबसे बड़े अस्पताल 'शारिते' सहित कई जगहों पर देखा गया है कि साक्षीभाव जैसी ध्यानसाधना से मस्तिष्क की तंत्रिका-संरचनाओं और क्रियाओं में कुछ ऐसे अनुकूल परिवर्तन लाए जा सकते हैं, जो दवाओं से संभव नहीं हैं। लोग पहले की अपेक्षा बेहतर ढंग से एकाग्र होकर सोचविचार कर सकते हैं और नाकारात्मक विचारों को दूर भगा सकते हैं। 'न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेज़ोनंस टोमोग्राफ़ी' (एनएमआरटी) के द्वारा उनके मस्तिष्क में झांकने से पता चालता है कि दोनों कनपटियों के पीछे स्थित हिपोकैंपस में तंत्रिका कोशिकाओं, उनके शिखातंतुओं (डेंड्राइट्स), तंत्रिका कोशिकाओं और उनके शिखातंतुओं को जोड़ने वाले साइनैप्स इत्यादि को मिलाकर बने तथाकथित ग्रे-मैटर की मात्रा बढ़ जाती है। कुछ सीखने और याद रखने की दृष्टि से हिपोकैंपस बहुत महत्वपू्र्ण है। वहां ग्रे-मैटर के बढ़ जाने का अर्थ है कि ध्यानसाधना से कुछ नई तंत्रिका कोशिकाएं भी बनती हैं और स्मरणशक्ति बढ़ती है।
 
स्वीडन में कुंडलिनी योग का धमाल : स्वीडन की सबसे प्रसिद्ध योग-शिक्षिका किर्स्टन स्तेन्देवाद का कहना है कि हठयोग से आपको जो कुछ 18 वर्षों की साधना के बाद मिल सकता है, कुंडलिनी योग से वह केवल एक ही वर्ष में पाया जा सकता है। उनके कहने के अनुसार, ऐसा इसलिए है, क्योंकि कुंडलिनी योग मस्तिष्क और शरीर के जीवरासायनिक (बायोकेमिस्ट्री) अध्ययन पर आधारित है। लक्ष्य है कुंडलिनी में संचित ऊर्जा को शरीर और मस्तिष्क के कोने-कोने तक पहुंचाना। इसीलिए स्वीडन की डेढ़ सौ से अधिक सबसे बड़ी और प्रसिद्ध कंपनियों, संस्थाओं तथा सरकारी विभागों ने अपने कर्मचारियों और मैनेजरों के लिए किसी न किसी रूप में कुंडलिनी योग सीखने और करने की व्यवस्था की। देश की सभी बड़ी विमान सेवाएं, बैंक, बीमा कंपनियां, भारी उद्योग, टीवी स्टेशन, कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक कंपनियां, अस्पताल, डाक विभाग, स्कूल, इत्यादि इस अभियान में शामिल हुए। 
 
किर्स्टन स्तेन्देवाद का दावा है कि 1998 में उन्हें स्वीडन की संसद से फ़ोन आया कि वे स्वीडन के  सांसदों को भी कुंडलिनी योग सिखाएं। 1999 में उन्होंने क़रीब 30 सांसदों के पहले ग्रुप को 10 सप्ताह तक कुंडलिनी योग सिखाया। सांसदों को यह इतना पसंद आया कि सबने 10 सप्ताहों के लिए एक और बुकिंग करवा ली। विज्ञान के नोबेल पुरस्कार देने वाले स्वीडन के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट ने भी किर्स्टन से संपर्क किया कि वे लोग पुराने पड़ गए कमर के दर्द के इलाज़ में कुंडलिनी योग की उपयोगिता परखना चाहते हैं। 
 
27 रोगियों को छह महीने तक कुंडलिनी योग कराया गया। उनकी वेदना, निद्रा और भावनाओं में काफ़ी बड़ा फ़र्क आया पाया गया। नवंबर 2000 में इसी कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट के मेडिकल कॉलेज ने उनसे पूछा कि क्या वे मेडिकल छात्रों को कुंडलिनी योग से परिचित करा सकती हैं? किर्स्टन स्तेन्देवाद बड़े गर्व के साथ कहती हैं कि स्वीडन के इतिहास में पहली बार उन्होंने, 13 दिसंबर 2000 के दिन, मेडिकल पढ़ाई के अंतिम सत्र के 30 भावी डॉक्टरों को दिखाया और सिखाया कि कुंडलिनी योग क्या है और उसे कैसे करते हैं।  
 
आज स्थिति यह है कि कई विदेशी हवाई अड्डे भी अपने यहां योग और ध्यान के लिए विशेष कमरों की व्यवस्था करने लगे हैं। फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी के वन्ताआ हवाई अड्डे के कमरों में यात्री योगाभ्यास सीख भी सकते हैं। वन्ताआ फ़िनलैंड का सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। वहां 38 डिग्री सेल्ज़िय तापमान में पसीना-पसीना कर देने वाला 'बिक्रम योग' या 'जेटलैग योग' भी सीखा और किया जा सकता है। पाया गया है कि उड़ान से पहले योग-ध्यान करने से चिंता और घबराहट को वश में रखने और उड़ान को सुखद बनाने में सहायता मिलती है।
 
योग और ध्यान के बारे में लगभग सभी दावों की विदेशों में हो रहे शोध और अध्ययन बार-बार पुष्टि ही कर रहे हैं। हम भारतीयों को चाहिये बिना दवा पिये और गोली खाए स्वस्थ रहने की अपनी ही इस स्वदेशी विद्या को हम भी उसी वैज्ञानिक गंभीरता से लें, जिस गंभीरता से पश्चिमी जगत लेने लगा है। हमें हीनता की इस मानसिकता से ऊपर उठना होगा कि हमारा प्रचीन ज्ञान अज्ञान है, विज्ञान तो वही ज्ञान हो सकता है, जो आधुनिक है और पश्चिम से आता है।

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