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कांग्रेस के लिए नहीं चली जादू की छड़ी

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, रविवार, 30 दिसंबर 2007 (12:34 IST)
कांग्रेस के लिए वर्ष 2007 अच्छा नहीं रहा। उसकी आँखों की किरकिरी नरेन्द्र मोदी ने गुजरात विधानसभा चुनाव लगातार तीसरी बार जीत कर उसे इतनी जोर का झटका दिया कि सोनिया बेन और राहुल बाबा इस साल को भुलाना ही बेहतर समझेंगें।

दूसरी ओर संप्रग को बाहर से समर्थन देने वाला वाम मोर्चा उसे भारत-अमेरिकी परमाणु समझौते के मुद्दे पर साल भर चकरघिन्नी की तरह घुमाता रहा।

भगवा दल ने हिमाचल में उससे सत्ता छीन कर रही सही कसर भी पूरी कर दी। इससे पूर्व भाजपा और उसके सहयोगी दलों के हाथों कांग्रेस उत्तराखंड और पंजाब पहले ही गँवा चुकी है।

शायद इन बातों का पूर्वाभास होने के कारण ही राहुल गाँधी को अगले लोकसभा चुनाव में केन्द्रीय भूमिका सौंपे जाते वक्त कांग्रेस महाधिवेशन में सोनिया गाँधी ने ताकीद कर दी थीं कि उनके या राहुल के हाथ में जादू की छड़ी नहीं है।

यूँ तो यह पूरा साल ही कांग्रेस के लिए सूखे का रहा। गुजरात हाथ नहीं आया, हिमाचल, पंजाब, उत्तराखंड में सत्ता छिन गई। राजनीतिक रूप से देश के सबसे महत्वपूर्ण उत्तरप्रदेश में सोनिया और राहुल के रोड शो का गाँधी-नेहरू परिवार के प्रभाव क्षेत्र से बाहर कोई असर नहीं रहा।

मुलायम सिंह यादव को सबक सिखाने के लिए उसे बसपा के नीले हाथी से कुचलवाने के प्रयास में कांग्रेस खुद भी उस मस्त गजराज की चपेट में आ गई। गोवा में वह सरकार गिराने के भाजपा प्रयासों को नाकाम करने में सफल हुई।

इस साल की इन बुरी खबरों के बीच कांगेस के लिए सुकून की बात यह है कि अगले साल मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में भाजपा को उसी की भाषा में जवाब देकर परिर्वतन की लहर अपने पक्ष में करने का उसके पास मौका है।

कांग्रेस को इस साल वामपंथियों ने भी खासा सताया। संप्रग सरकार को बाहर से समर्थन देने के बावजूद उसका आचरण विपक्ष जैसा रहा। भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर उसके विरोध के चलते सरकार गिरने तक की नौबत आ गई थी। प्रधानमंत्री ने भी उनके दबाव से आजि आकर घोषणा कर दी कि दुनिया यहीं खत्म नहीं हो जाती। हालाँकि माकपा के नंदीग्राम घटना में फंस जाने के कारण सरकार को कुछ राहत मिली और संप्रग सरकार चौथे साल में प्रवेश पाने में सफल हुई।

मोदी के बढ़ते कद और लालकृष्ण आडवाणी को भाजपा द्वारा प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पेश किए जाने से भी कांग्रेस की मुशिकले बढ़ गई हैं। कांग्रेस अब सोच में पड़ गई है कि मोदी और आडवाणी द्वारा लोकसभा चुनाव के दौरान आक्रामक हिन्दुत्व का प्रचार किए जाने की काट कैसे की जाए।

उत्तरप्रदेश के बाद राहुल को गुजरात, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश आदि में कांग्रेस के भावी नेता के रूप में स्थापित करने की भरपूर कोशिश की गई, लेकिन वे कोई करिश्मा पैदा नहीं कर पाए।

बहरहाल कांगेस के लिए अच्छी खबर यही है कि पश्चिम बंगाल में वामपंथियों की जमीन खिसकती नजर आ रही है और तृणमूल कांग्रेस से मिल कर वह उसका लाभ उठा सकती है। इसके अलावा राजस्थान मध्यप्रदेश कनार्टक और छत्तीसगढ़ सहित जिन दस राज्यों में अगले साल चुनाव होने हैं वहाँ भी वह लाभ की स्थिति में है।

अगर ऐसा हुआ तो वह लोकसभा चुनाव में विश्वास के साथ कूद कर भाजपा के पक्ष में बहती परिर्वतन की लहर को रोक सकती है।

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