मंत्रियों के इलाकों में ज्यादा मतदान

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रायपुर। विधानसभा चुनाव के पहले दौर में मुख्यमंत्री व मंत्रियों के क्षेत्रों में मतदाताओं ने बढ़-चढ़ कर वोट डाले। धुर नक्सली इलाकों में बीते चुनाव की तुलना में कम मतदान हुआ। यह रुझान सत्तारुढ़ भाजपा नेताओं को चिंता में डालने के लिए काफी है। इसके बावजूद उन्हें बढ़त का भरोसा कायम है। कांग्रेस के नेता इसे बदलाव का प्रतीक मान कर चल रहे हैं।

राजनांदगाँव में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की उम्मीदवारी के बावजूद सिर्फ 1.29 फीसदी वोट ज्यादा डाले गए। शहरी सीट का रुझान अमूमन भाजपा के पक्ष में होता है। ऐसे में राजनांदगाँव में पड़े 78 फीसदी वोट से भाजपाई शिविर में डॉ. सिंह की लीड को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। धमतरी जिले की कुरुद सीट में सबसे ज्यादा 86 फीसदी मतदान होने के कारण पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री अजय चंद्राकर दुविधा में पड़ गए हैं।

महिला एवं बाल विकास मंत्री लता उसेंडी की सीट कोण्डागाँव में 78 फीसदी वोट पड़े। धुर नक्सल प्रभावित इलाके नारायणपुर में मतदान का आँकड़ा 36 फीसदी पर सिमट गया। बीते चुनाव में यहाँ 61.32 फीसदी वोट पड़े थे। इस सीट से पीएचई मंत्री केदार कश्यप किस्मत आजमा रहे हैं। इसी तरह दंतेवाड़ा में 15 फीसदी कम वोट पड़े। कुल 45 फीसदी मतदान और त्रिकोणीय संघर्ष के कारण कांग्रेस प्रत्याशी महेन्द्र कर्मा का चिंतित होना स्वाभाविक है।

राजनांदगाँव जिले की सभी छह सीटों पर भाजपा का कब्जा है और वहाँ 75 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ है। इसे भी भाजपाई अपने पक्ष में बता रहे हैं। खैरागढ़ में पड़े 76 फीसदी वोट बताएँगे कि जनता ने इस दफे भाजपा के 'हल' पर दोबारा भरोसा जताया या नहीं। दरअसल, 'महल' अरसे बाद चुनाव मैदान से बाहर रहा। उसकी पसंद पर कांग्रेस ने भी लोधी समाज के मोती जंघेल को मैदान में उतारा। डोंगरगढ़, खुज्जी व मोहला मानपुर में विधायकों के टिकट कटने के बावजूद भाजपा के कार्यकर्ता ज्यादा मतदान कराने में कामयाब रहे। कवर्धा और पंडरिया सीटों में पड़े 70 फीसदी से ज्यादा वोटों ने कांग्रेस विधायकों की चिंता बढ़ा दी है। माना जा रहा है कि दोनों सीटों पर भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग कामयाब रही है।

गाँवों में बंपर पोलिंग को लेकर कई तरह के अनुमान लगाए जा रहे हैं। मसलन, आदिवासी एवं ओबीसी बहुल महासमुंद जिले के लोगों ने 75 फीसदी से ज्यादा मतदान कर अपनी जागरूकता का परिचय दिया है। दुर्ग जिले की पाटन सीट पर 79 फीसदी वोट पड़े। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भारी मतदान और त्रिकोणीय संघर्ष के बावजूद मौजूदा विधायक भूपेश बघेल अपनी सीट बचाने में कामयाब हो पाते हैं या नहीं। जिले की संजारी बालोद सीट पर सबसे ज्यादा 81 फीसदी मतदान हुआ है। शहरी सीटों पर अपेक्षाकृत कम मतदान हुआ। दुर्ग शहर में 64, भिलाईनगर में 63 व वैशाली नगर में 62 फीसदी मतदाताओं ने अपने अधिकार का उपयोग किया।

वहीं अनारक्षित हुई जगदलपुर सीट के सिर्फ 62 फीसदी मतदाताओं ने वोट डाले। जिले में नक्सली दहशत के चलते केशकाल में 57 व चित्रकोट में 55 फीसदी मतदान हुआ। कोंटा में 40 फीसदी मतदान हुआ। इससे मौजूदा कांग्रेस विधायक कवासी लखमा की मुश्किलें और बढ़ती दिख रही है। वहीं बीजापुर में छह फीसदी बढ़ कर 43 फीसदी मतदान हुआ। बीते चुनाव में आरोप लगा था कि नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा बलों की शह पर फर्जी मतदान हुआ है। इस दफे मतदान केन्द्रों की सुरक्षा का जिम्मा केंद्रीय एजेंसियों के पास था। ऐसे में मतदान के आँकड़े गिरने से राजनीतिक हलकों में कई तरह की चर्चाएँ चल पड़ी है। (नईदुनिया)

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