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महिलाओं में पक्षाघात

बचिए इस ब़ढ़ते खतरे से

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- नीता लाल
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वैसे तो 65 वर्ष के बाद महिलाओं में पक्षाघात होने का खतरा बहुत अधिक बढ़ जाता है, लेकिन युवा और मध्य आयु वर्ग पर भी इसका खतरा कम नहीं होता। अंततः किसी व्यक्ति की जीवनशैली से तय होता है कि उस पर पक्षाघात का कितना खतरा है।

उम्र के पाँचवें दशक में पहुँचतीं पत्रकार नीना कथूरिया अपने लैपटॉप पर काम कर रही थीं। इसी बीच उन्हें एहसास हुआ कि पूरा शरीर सुन्न पड़ता जा रहा है। उन्हें अचानक ही बहुत अधिक पसीना आने लगा, आँखों के सामने अँधेरा छा गया और उनके शरीर का बायाँ हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया। वे अपनी कुर्सी पर बेहोश हो गईं और उन्हें तत्काल अस्पताल ले जाया गया। जाँच के बाद डॉक्टरों ने बताया कि उनके दिमाग को फालिज मार गया है जिसका कारण है दिमाग की नस में खून का थक्का जम जाना।

चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक 12 लाख भारतीय हर साल इस जानलेवा बीमारी का शिकार होते हैं। 5 साल पहले यह आँकड़ा कहीं कम यानी 9 लाख भारतीयों का था। 45 से 54 साल के आयु वर्ग की महिलाओं में इस बीमारी ने नाटकीय ढंग से इजाफा किया है। न्यूरोलॉजिस्ट की मानें तो यह अपने आप में गहरी चिंता का विषय है। एक शोध के अनुसार दिमागी फालिज का शिकार इस आयु वर्ग के पुरुषों की तुलना में महिलाएँ दोगुनी ज्यादा होती हैं।

हृदय रोग, कमर का मोटापा और तनाव इसके मुख्य कारण हैं। शोध के लिए 18 वर्ष से ज्यादा की उम्र वाले 17 हजार से ज्यादा लोगों के आँकड़ों का विश्लेषण किया गया था।

इस विषय पर आगे और खोजबीन की जरूरत अभी है, लेकिन मध्य आयु वर्ग की महिलाओं में फालिज के बढ़ते मामले इस बात का संकेत करते हैं कि महिलाओं पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है ताकि इस आयु वर्ग की महिलाओं को फालिज अथवा हृदय के अन्य रोगों से बचाया जा सके।

यह जानना जरूरी है कि आखिर दिमाग का फालिज है क्या? यह हमारे स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है? चिकित्सकों के अनुसार दिमाग की ओर जाने वाले रक्त प्रवाह के रुक जाने से दिमाग की कोशिकाएँ सेकंडों के भीतर मरने लगती हैं जिससे फालिज पड़ता है। प्रमुख रूप से दो तरह के फालिज होते हैं। एक को आइसेमिक कहते हैं। इसमें खून का थक्का मस्तिष्क की किसी रक्त धमनी को अवरुद्ध कर देता है। वहीं हेमोराजिक फालिज में कोई रक्त धमनी टूट जाती है और उससे मस्तिष्क में रक्त बहने लगता है। दोनों ही तरह के फालिज जानलेवा हो सकते हैं।

उच्च रक्तचाप, धूम्रपान, मधुमेह, हृदय और धमनियों से जुड़ी बीमारी, रक्त में बढ़ी हुई कोलेस्ट्रॉल की मात्रा, दिनभर बैठे रहने वाली जीवनशैली और मोटापा आदि पक्षाघात के प्रमुख कारणों में हैं। भारतीय महिलाओं में मध्य आयु वर्ग में फालिज की तेज वृद्धि के अन्य कारणों में गर्भ निरोधक गोलियों का अत्यधिक उपयोग भी शामिल है। गर्भनिरोधक गोलियों से धमनियों के भीतरी अस्तर पर एक परत-सी जम जाती है और धमनियों की यह हालत आघात का कारण बन सकती है।

मोटापा और खासतौर से पेट पर बढ़ने वाली चर्बी भी महिलाओं में मध्य आयु वर्ग में होने वाले पक्षाघात के अन्य सामान्य कारणों में से एक है। इसके अलावा पिछले दशक में महिलाओं में धूम्रपान का चलन बहुत तेजी से बढ़ा है जिसके कारण उनमें फालिज की शिकायत भी बढ़ी है। धूम्रपान से आइसेमिक आघात का जोखिम बढ़ता है, क्योंकि धूम्रपान से खून में निकोटिन की मात्रा बढ़ जाती है।

निकोटिन की बढ़ी हुई मात्रा खराब कोलेस्ट्रॉल यानी कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन बढ़ाती है। इससे धमनियों में कड़ापन बढ़ता है और रक्त का प्रवाह बाधित होता है। ऐसी हालत में खून के थक्के कहीं ज्यादा तेजी से बनते हैं, क्योंकि लसलसा खून सँकरी धमनियों में बहते हुए कभी भी थक्के में तब्दील हो सकता है और धमनी बंद भी हो सकती है। इसके परिणाम भयंकर हो सकते हैं।

सबसे अच्छी बात यह है कि जैसे ही कोई व्यक्ति धूम्रपान की आदत छोड़ देता है, वैसे ही हृदय-धमनी संबंधी बीमारियों की आशंका बहुत कम हो जाती है, बल्कि धूम्रपान छोड़ने के एक साल के भीतर ही इस रोग के होने का खतरा बहुत कम हो जाता है। हालाँकि तब भी धूम्रपान न करने वाली महिला के सामान्य स्तर पर आने में लगभग 10 से 15 साल लग जाते हैं।

वैसे तो 65 वर्ष के बाद महिलाओं में फालिज पड़ने का खतरा बहुत अधिक बढ़ जाता है, लेकिन युवा और मध्य आयु वर्ग पर भी इसका खतरा कम नहीं होता। अंततः किसी व्यक्ति की जीवनशैली से तय होता है कि उस पर फालिज का कितना खतरा है। इसकी रोकथाम का एकमात्रउपाय अनुशासित जीवनशैली है।

रोकथाम के लिए धूम्रपान और शराब से दूर रहना जरूरी है। इस रोग की चपेट में आने से बचने के लिए डॉक्टर फल-सब्जी, साबुत अनाज व दैनिक कसरत की आदत डालने की सलाह देते हैं। हृदय-संस्थान को मजबूत करने वाली कसरतों का खासा महत्व है। इन्हें कम से कम हर हफ्ते180 मिनट किया जाना जरूरी है। अपने रक्तचाप, रक्त शर्करा और हृदय की अवस्था पर गहरी नजर रखना भी फायदेमंद साबित होता है। सेहत के लिए फायदेमंद तौर-तरीकों को जिंदगी की आदतों में शुमार करने से फालिज के खतरे से एक हद तक बचा जा सकता है।

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