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साल में संसद की सौ बैठकें हों-मीरा कुमार

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नई दिल्ली (भाषा) , बुधवार, 26 अगस्त 2009 (17:15 IST)
देश की पहली महिला अध्यक्ष के रूप में अपने अनुभवों से संतुष्टि जताते हुए मीरा कुमार ने बुधवार को कहा कि संसद की हर साल कम से कम सौ बैठकें होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि मैं बहुत खुश हूँ कि इस बार 296 नए सदस्य चुनकर आए हैं और उनमें से बड़ी संख्या में नए चेहरे हैं और ऐसा पहली बार है कि इस बार काफी अधिक संख्या में महिलाएँ भी चुनकर आई हैं।

अध्यक्ष ने इस बात पर भी संतोष व्यक्त किया कि लोकसभा प्रश्नकाल के दौरान पूछे जाने वाले प्रश्नों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। औसतन 3.34 प्रश्न प्रतिदिन पूछे गए। मुझे खुशी होगी यदि यह संख्या और बढ़े। मीरा कुमार ने यहाँ महिला पत्रकारों से बातचीत के दौरान इस बात को गलत बताया कि सांसद अपने कार्यों के प्रति गंभीर नहीं है।

उन्होंने कहा कि यह धारणा सही नहीं है क्योंकि मैं उन्हें काम करता देखती हूँ। सांसद इस सत्र में (बजट सत्र में) 30 घंटे अतिरिक्त बैठे। यह पूछे जाने पर कि अनुसूचित जाति-जनजाति कोटा कितने दिन तक और रहेगा, उन्होंने कहा कि लोग मुझसे पूछते रहते हैं कि यह कोटा कब तक चलता रहेगा लेकिन कोई मुझसे यह नहीं पूछता कि जाति व्यवस्था कब तक बनी रहेगी।

पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को पार्टी व्हिप का उल्लंघन किए जाने पर माकपा से निकाले जाने के बारे में पूछे गए सवाल पर मीरा ने कहा कि मेरे पूर्ववर्ती एक कद्दावर व्यक्ति थे और उनमें साहस और निष्ठा थी। अध्यक्ष की तटस्थता के लिए यह जरूरी है।

महिला आरक्षण विधेयक के बारे में पूछे जाने पर लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि उसका क्या होगा, यह इस बात पर निर्भर है कि विभिन्न राजनीतिक दल किस नतीजे पर पहुँचते हैं। उन्होंने कहा कि देश की पहली महिला अध्यक्ष के रूप में उनके अब तक तीन महीने के अनुभव में उन्होंने देखा कि सभी पुरुष सांसद उनके प्रति सद्भावपूर्ण रवैया रखते हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि अकसर जब उन्हें कोई मुद्दा उठाना होता है तो वे उसे बड़ी आक्रामकता से उठाते हैं।

मीरा कुमार ने कहा कि उन्हें (सांसदों को) और उनके दलों को समझना चाहिए कि मुद्दों को उठाने के और भी बेहतर तरीके हैं। संसद की स्थायी समितियों के गठन के बारे में उन्होंने कहा कि कल तक सभी पार्टियों ने अपने नाम नहीं भेजे थे। उन्होंने कहा कि बहरहाल वह इनके गठन के बारे में सलाह मशविरा करेंगी । अध्यक्ष ने यह भी कहा कि वे संसद को विकलांगों के और अधिक अनुकूल बनाने की दिशा में कदम उठाएँगी।

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