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अमेरिका में भूखे सोने को मजबूर लाखों बच्चे

- डंकन वॉकर बीबीसी न्यूज

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, गुरुवार, 7 मार्च 2013 (13:51 IST)
BBC
दुनिया के कुल जीडीपी का करीब एक चौथाई अकेले अमेरिका का है, लेकिन यहां लाखों बच्चे भूख से बिलबिला रहे हैं और इनकी तादाद बढ़ रही है घट नहीं रही।

अमेरिका में आज की तारीख में एक करोड़ सत्तर लाख बच्चे गरीबी की मार झेल रहे हैं। बहुत बड़ी तादाद में बच्चों के लिए भूख एक अनचाहे दोस्त की तरह रोज साथ रहने लगी है।

दस साल की केली हेवुड और उसके 12 साल के भाई टायलर दोनों के दिमाग में हमेशा अगले भोजन के बारे में विचार चलते रहते हैं और बहुत बार वो नहीं मिलता।

आयोवा के एक फूड बैंक से केली की मां केवल 15 चीजें खरीद सकती हैं। वो 15 चीजें कौन सी हों यह तय करना उनकी मां या भाई बहनों के आसान नहीं है।

हर दिन संकट : खाने की ज़रूरी चीज़ों के बाद ऐसी दो चार ही चीजें हैं जो बच्चों की पसंद से ली जा सकती हैं। ऐपल सॉस लिया जाएगा, डिब्बाबंद स्पेगेटी भी होगी, मीट बॉल हो सकती है।

जिस कमरे में वो रहते हैं वहां ऐसी कोई जगह नहीं है जहां खाना पकाया जा सके। अमूमन यह होता है कि केली के परिवार के पास पर्याप्त खाना खरीदने के लिए पैसे नहीं होते।

केली बताती हैं, 'हम दिन में तीन बार नहीं खाते। मतलब नाश्ता, दोपहर का खाना और रात का खाना। जब मुझे भूख लगती हैं तो मैं दुखी होती हूं और कुछ करने का मन नहीं करता।'

केली और उसका भाई टायलर अपनी मां बारबरा के साथ रहते हैं। बारबरा किसी फैक्ट्री में काम किया करती थीं। उनकी नौकरी चली गई जिसके बाद उन्हें बेरोजगारी भत्ते के रूप में 1480 डॉलर मिलते हैं।

एक नजर में देखने में यह पैसा ज्यादा लग सकता है, लेकिन इतने पैसों में अमेरिका में गुजारा चलाना बेहद मुश्किल है।

वो खुद के मकान में रह नहीं सकते क्योंकि वहां रहने का खर्च 1326 डॉलर महीना है। उसे देने के बाद इनके पास खाना खरीदने के लिए कुछ नहीं बचेगा।

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बच्चों की मजदूरी : केली ने परिवार की मदद के लिए रेलवे ट्रैक के आस-पास खाली डिब्बे बीनने शुरू कर दिए हैं। एक डिब्बे की कीमत दो से पांच सेंट मिल जाती है।

टायलर यहां-वहां लोगों के बगीचों की घास काट देता है जिसमें से 'हर घर में से जो चार डॉलर मिलते हैं वो मैं अपनी मां को दे देता हूं ताकि कुछ खाना खरीदा जा सके।'

दुकान की जगह केली के कपड़े पुराने कपड़ों की एक दुकान से आते हैं जहां पर उसे हिदायत है कि वो ऐसे किसी कपड़े की ना सोचे जिसकी कीमत दो डॉलर हो।

अच्छे दिनों में परिवार के पास दो कुत्ते थे जिनमें से एक को दान दे दिया गया ताकि कुछ खाना बचे।

जिस जगह वो रहते हैं उसका किराया करीब 700 डॉलर महीना है, पर इस जगह रहने के बाद परिवार के बजट को चलाना बेहद मुश्किल है। टायलर बताता है, 'जब मैं टीवी पर कहीं फूड शो देखता हूं तो मुझे लगता है कि मैं टीवी में घुस जाऊं और सारा खाना खा लूं।'

अमेरिका में ऐसे चार करोड़ सत्तर लाख परिवार हैं जो खाने के लिए फूड बैंकों पर आश्रित हैं। हर पांच में से एक बच्चा किसी खाद्य सहायता कार्यक्रम के चलते खाना खाता है।

खराब होते हालात : जिस इलाके में केली और टायलर रहते हैं वहां के नजदीकी फूड बैंक वाले बताते हैं कि पिछले कुछ दिनों से वहां सहायता लेने वाले परिवारों की संख्या में इजाफा हुआ है।

इस फूड बैंक में पिछले तीस साल से काम कर रही कारेन लॉगलिन कहती हैं, 'हालात तेजी से बदले हैं खास तौर पर वैश्विक आर्थिक मंदी के बाद। हमारे यहां आने वाले लोगों में कम से कम 30 से 40 फीसदी इजाफा हुआ है।'

कारेन लॉगलिन बताती हैं, 'ऐसा नहीं कि हर आदमी बेरोजगार हो गया हो, लेकिन नौकरी जाने के बाद उन्हें जो रोजगार मिल रहा है उसमें इतने कम पैसे मिल रहे हैं कि आप अपने परिवार को नहीं पाल सकते।'

यूं तो अमेरिकी स्कूलों में खाना मिलता है, लेकिन केली और टायलर स्कूल नहीं जा सकते क्योंकि वो पिछले कुछ ही समय तीन मकान बदल चुके हैं और जहां वो अभी रह रहे हैं वहां भी वो कितने दिन तक और रहेंगे पता नहीं।

इन बच्चों के पिता नहीं हैं और इनकी नानी पास ही रहती हैं और जो भी थोड़ी बहुत मदद वो कर सकती हैं वो करती हैं। केली की मां का मानसिक अवसाद के लिए इलाज भी चल रहा है।

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सरकारी कदम : फरवरी में राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा था कि वो न्यूनतम मजदूरी को बढ़ा कर कम से कम नौ अमेरिकी डॉलर प्रति घंटा कर देंगे।

उनका कहना था कि इस एक कदम से लाखों कामकाजी परिवारों के हालात सुधर जाएंगे। वो खाना खरीद पाएंगे अपने घरों से निकाले नहीं जाएंगे। और आखिरकार तरक्की करेंगे।'

आंकड़ों के मुताबिक करीब एक करोड़ सत्तर लाख अमेरिकी बच्चे ऐसे हैं जिन्हें खाना तो मिल रहा है, लेकिन वो स्वास्थ्यप्रद नहीं है। उनके परिवार ताजा खाना नहीं खरीद सकते सो वो पित्जा या ऐसी ही कुछ चीजें खरीदते हैं जो आगे चल कर उन्हें मोटा कर देती हैं।

इस तरह की समस्या से निपटने के लिए कुछ ऐसे स्कूल ने जहां गरीब बच्चे पढ़ने आते हैं उन्होंने शुक्रवार को बच्चों को शनिवार और रविवार के लिए खाना बांध कर देना शुरू कर दिया है।

इस सबके बीच केली पूरी शिद्दत से स्कूल वापस जाना चाहती है। केली कहती हैं 'मैं स्कूल जाना चाहती हूं क्योंकी अगर पढ़ाई अच्छी नहीं होगी तो अच्छी नौकरी नहीं मिलेगी अच्छा पैसा नहीं मिलेगा। अच्छा पैसा नहीं मिला तो मैं अपने घरवालों पर ही आश्रित रह जाऊंगी।'

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