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नेपाल: 'उसे पानी में डुबोया फिर बिजली के झटके दिए'

- जोआना जॉली (नेपाल)

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हमें फॉलो करें नेपाल गृहयुद्ध
, शनिवार, 16 मार्च 2013 (15:25 IST)
BBC
नेपाल में सरकार और माओवादियों के बीच गृहयुद्ध खत्म हुए छह साल बीत चुके हैं। जब दोनों पक्षों के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे तो हजारों नागरिकों के अपहरण और उन्हें यातना दिए जाने के दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने पर भी समझौता हुआ था।

लेकिन इन वादों पर कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब आम नेपालियों का गुस्सा अपने चरम पर पहुंच गया है। नौ वर्ष पहले देवी सुनुवर की 15 साल की बेटी मैना को नेपाली सैनिक अपने साथ ले गए थे। देवी को लगता है कि मैना के अपहरण का कारण ये था कि वो कथित सैन्य अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठाती थीं।

देवी बताती हैं कि अपहरण के बाद पहले कुछ दिनों तक वो बहुत चिंतित रहीं, लेकिन बाद में उन्होंने सोचा कि अपहरण पर चुप रहना सही नहीं होगा और उन्हें मैना की तलाश करनी चाहिए। मैना उन हजारों लोगों में से एक है जिनकी कहानी पर दुनिया का ध्यान कम ही जाता है। अपनी तस्वीरों में मैना अपनी उम्र से भी कम नजर आती हैं।

नेपाल के गृहयुद्ध में हजारों लोग मारे गए और कईयों का अपहरण हुआ। देवी उन लोगों में से थीं जिन्होंने सेना के कथित अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई। कुछ ही दिनों में कुछ सैनिक उन्हें ढूंढते हुए घर आए।

देवी उस वक्त घर में नहीं थीं, लेकिन उनकी नाबालिक बेटी मैना घर पर थी। देवी एक कमरे की ओर इशारा करके बताती हैं कि उसी कमरे में मैना सो रही थी जब 16 लोग उनके घर पर आए थे।

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दस्तक : देवी बताती हैं, 'दो लोगों ने घर के दरवाजे पर दस्तक दी जबकि बाकियों ने घर को घेर लिया। वो मैना को पास की सड़क पर खड़ी एक कार तक घसीटकर लेकर गए। मैना के हाथ पीछे बंधे हुए थे और वो रो रही थीं। सैनिक उसे पीट रहे थे।'

देवी जब अपनी बेटी की तलाश में सेना के बैरक पहुंची तो उन्हें बताया गया कि मैना वहां नहीं आई।

बाद में एक पुलिसवाले ने देवी से बातचीत में कहा कि हो सकता है कि सैनिकों ने मैना के साथ बलात्कार किया गया हो और उनकी हत्या कर दी हो, लेकिन पुलिसवाले ने कहा कि वो इस बारे में कुछ नहीं कर सकता है क्योंकि सेना बहुत शक्तिशाली है।

मैना के साथ जो कुछ हुआ उसकी जानकारियां सेना की एक रिपोर्ट के लीक होने पर सामने आई हैं। घटना का विवरण बेहद तकलीफदेह है।

रिपोर्ट के मुताबिक सैनिकों ने मैना को पानी के अंदर बार-बार डुबोया। वो भीग गई थीं और सांस नहीं ले पा रही थीं। जब वे मैना से कुछ भी जानकारी नहीं हासिल कर पाए तो बॉबी खत्री के आदेश पर कैप्टन सुनील और अमित ने मैना को बिजली के झटके देने का फैसला किया।

उन्होंने श्रीकृष्ण थापा को ऐसा करने का आदेश दिया। थापा से कहा गया कि मैना के गीले हाथ और पैर के तलवों को बिजली का झटका दिया जाए।

मैना की कलाई से खून निकलने लगा। थापा डर के कारण कुछ कदम पीछे हट गए और मैना को बिजली का झटका देना बंद कर दिया, लेकिन मैना को यातना दिए जाने का सिलसिला बंद नहीं हुआ। दूसरे सैनिकों ने थापा की जगह ले ली। कुछ घंटों के बाद मैना की मौत हो गई।

कुछ ही दूरी पर सैनिकों का वही बैरक है। यहां संयुक्त राष्ट्र के सैनिकों की भी ट्रेनिंग होती है। देवी जब भी अपने गांव जाती हैं तो वो इस ट्रेनिंग सेंटर के नजदीक से होकर गुजरती हैं।

देवी को बैरक के किचन के पास दफनाया गया था। ये एक खाली इलाका है। जब मैना का शरीर जमीन से निकाला गया तो देवी वहां मौजूद थीं। देवी अपनी सुरक्षा को लेकर भी सावधान हैं क्योंकि उन्हें धमकी भरे फोन कॉल आ रहे हैं।

वो कहती हैं, 'मैं इन सैनिकों को बताना चाहती हूं कि मेरे भीतर कितना गुस्सा है।'

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न्याय की मांग : नेपाल के राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस पर मेरी मुलाकात करीब 80 प्रदर्शनकारियों के गुट से हुई। काठमांडू के मध्य से गुजरनेवाले ये लोग न्याय के पक्ष में नारे लगा रहे थे। उन्होंने अपने हाथ में बैनर ले रखे थे।

एक प्रदर्शनकारी के मुताबिक नेपाल के राजतंत्र को लेकर गंभीर चिंताएं हैं।

वो कहते हैं, '23 वर्ष पहले नेपाल में पहली बार बहुदलीय राजतंत्र शुरू हुआ और अभी भी इस दिशा में काफी काम किया जाना बाकी है।'

इसी भीड़ में एक सबिता श्रेष्ठ भी हैं।

उनके भाई की हत्या कथित तौर पर क्लिक करें माओवादियों ने की थी। पुलिस जांच में इस हत्या के लिए एक वरिष्ठ माओवादी नेता को जिम्मेदार पाया गया। उनके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी होने के बावजूद वो आजाद हैं। उनके एक और भाई की भी हत्या कर दी गई और उनकी बहन ने आत्महत्या कर ली।

वह कहती हैं, 'इस देश में प्रजातंत्र कहां है? इस देश में कानून-व्यवस्था कहां है जब मेरे भाई के हत्यारे अभी भी खुले घूम रहे हैं।'

नेपाल की इस लड़ाई में 17 हजार लोग या तो मारे जा चुके हैं या फिर गायब हो गए। उन्हें निशाना बनाने का कारण या तो निजी रंजिश था या फिर उनका धनी होना। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक ऐसे 70 प्रतिशत मामलों के लिए सेना जिम्मेदार थी।

छह साल पहले दोनों पक्षों के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे। समझौते में एक आयोग बनाने पर भी सहमति बनी, लेकिन उस पर भी कोई कार्यान्वयन नहीं हुआ। ये भी वादा किया गया कि अगर किसी भी पक्ष की ओर से मानवता के विरुद्ध अपराध होगा तो उसकी जांच की जाएगी।

एक वरिष्ठ पत्रकार के मुताबिक अगर नेपाल की तुलना गृहयुद्ध की समस्या से परेशान श्रीलंका जैसे देशों से की जाए तो पता चलेगा कि नेपाल की समस्या यह है कि यहां किसी भी पक्ष की जीत नहीं हुई और दोनों ही पक्ष सरकार का हिस्सा हैं। उनके मुताबिक दोनों पक्षों के बीच गुपचुप समझौता है कि वे एक दूसरे की हिंसक गतिविधियों पर पर्दा डालेंगे।

निष्प्रभावी व्यवस्था? : उधर नेपाल के प्रधानमंत्री रहे बाबूराम भट्टाराई इंकार करते हैं कि उनके देश में न्याय व्यवस्था निष्प्रभावी हो गई है।

वह विश्वास दिलाते हैं कि उनकी सरकार बातचीत और विभिन्न समझौतों के प्रति कटिबद्ध है, हालांकि उनके मुताबिक राजनीतिक मतभेदों के कारण इस कार्य में थोड़ी देरी हो रही है।

लेकिन मानवाधिकार के लिए काम करने वाली मंदिरा शर्मा कहती हैं कि पीड़ितों की चीख-पुकार राजनेताओं के कानों तक नहीं पहुंच रही है। मंदिरा के मुताबिक राजनीतिज्ञ अपनी महत्वाकांक्षाओं के आगे नहीं देख रहे हैं।

वो कहती हैं कि ये दुखद है जो माओवादी पहले गरीबों के अधिकारों की बात करते थे वो अब अपने रास्ते से हट गए हैं। 'मैं उसी थाने में पहुंची जहां के एक अधिकारी ने मैना की हत्या मामले में जांच की थी, लेकिन दोषी गिरफ्तार नहीं किए गए हैं।'

वरिष्ठ पुलिस अधिकारी गीता उप्रेती इसे दर्दनाक घटना और मानवता के खिलाफ अपराध बताती हैं। वह कहती हैं, 'ये मामला हमारे हाथ में नहीं है। अब अदालत के हाथों में हैं और वो पद्धति का अनुसरण करेंगे।'

पुलिस इस मामले में कुछ ज्यादा नहीं कर सकती क्योंकि असली ताकत सेना के हाथ में है जो वर्षों से नेपाल में सबसे मजबूत संस्था रही है। सेना ने मैना के बारे में खुद जांच की थी। सेना प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल सुरेश राज शर्मा इसे दुर्भाग्यपूर्ण घटना बताते हैं, लेकिन ये भी कहते हैं कि उस वक्त और हालात को समझने की जरूरत है।

वह कहते हैं, 'ये घटना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। नेपाल में हमारी संस्कृति है कि हम किसी महिला को नुकसान नहीं पहुंचाते। हम किसी मादा को नहीं खाते। उनकी रक्षा की जाती है।'

लेकिन मैना की किसी ने भी रक्षा नहीं की। उन्हें पहले यातनाएं दी गईं और 24 घंटों के भीतर उनकी हत्या कर दी गई।

ब्रिगेडियर जनरल शर्मा कहते हैं, 'ये बहुत दुखद घटना थी और इसी कारण कोर्ट मार्शल में कुछ कमियां पाई गईं थीं।'

इन ‘कमियों’ के लिए तीन अफसरों पर करीब 500 डॉलर का जुर्माना हुआ, और उन्हें छह महीने तक बैरक में रहने की सजा दी गई। उन्हें मैना के शव को ठीक तरीके से ठिकाने नहीं लगाने के लिए लापरवाही का दोषी पाया गया।

उधर माओवादियों के अत्याचारों पर बात करने हम माओवादियों के प्रवक्ता अग्नि सबकोटा के पास पहुंचे। वह एक सांसद भी हैं। वह अपना काम पार्टी मुख्यालय से संचालित करते हैं।

हमने सबकोटा के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट देखा है, लेकिन उन्हें इसकी चिंता नहीं है। वो कहते हैं कि उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है और उन्हें किसी वारंट के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

कई सैन्य और माओवादी नेताओं के खिलाफ अपराध के मामले होने के बावजूद ये लोग पुलिस के साथ कंधे से कंधा मिलाते नजर आते हैं। ये सभी मामले यही दिखाते हैं कि नेपाल में न्याय की राह बेहद लंबी हैं।

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