अगर दुनिया पर औरतों का राज हो तो...

- डीडी मेयर्स (राजनीतिक विश्लेषक)

Webdunia
गुरुवार, 4 अप्रैल 2013 (13:11 IST)
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बदलते समय ने समाज में महिलाओं की भागीदारी और उनकी भूमिका को लेकर कई नई परिभाषाएं गढ़ी हैं। क्योंकि कुछ समय पहले तक औरतों द्वारा पूरी दुनिया पर राज करने की बातें बेतुकी लगतीं थी।

इसके पीछे कोई विशेष दुराग्रह नहीं बल्कि सिर्फ जीव विज्ञान था। ऐसा माना जाता था कि महिलाओं में नैसर्गिक तौर पर ऐसा बौद्धिक सामर्थ्य कम होता है और मुश्किल परिस्थितियों में फैसला लेने का धैर्य भी कम होता है।

लेकिन ये सब एक गुजरे जमाने की बातें हैं। हाल के दशकों में महिलाओं के प्रति लोगों की सोच में काफी बदलाव आया है। हालांकि इसका मतलब ये नहीं है कि पूरी दुनिया में आगे बढ़ रही और घर की चारदिवारी से बाहर अपनी पहचान बना रही महिलाओं का स्वागत हुआ है।

सकारात्मक बदलाव : तो क्या बदला है? बहुत कुछ। महिलाओं पर किए विभिन्न शोध और अनुभव बताते हैं कि समर्थ महिलाएं काफी कुछ बदल देती हैं। अगर किसी स्थिती को पूरी तरह से बदल नहीं सकतीं तो बेहतर तो कर ही सकतीं हैं।

व्यापार ज्यादा लाभप्रद होते हैं, सरकारें लोगों से जुड़ती हैं, परिवार मजबूत होते हैं और स्वस्थ समाज तैयार होता है। हिंसा कम होती है और शांति, स्थिरता और निरंतरता बढ़ती है।

इसकी वजह, महिलाओं के जिंदगी को देखने का अलग नजरिया है, और यही अनुभव उन्हें परेशानियों को अलग तरीके से हल करने का रास्ता दिखाता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रबंध निदेशक क्रिस्टीन लगार्ड कहती हैं कि विविधता एक बहुत बड़ी ताकत है।

लगार्ड के अनुसार, 'विविधता दुनिया को देखने के नजरिए में कई आयाम लाती है। इससे हम किसी एक मुद्दे की कई तरीकों से विवेचना कर सकते हैं। ये हमारी सोच को प्रभावित करता है।'

हमें अक्सर ये सुनने को मिलता है कि महिलाएं चीजों को पुरुषों से अलग नजरिए से देखती हैं। वे बातें करती हैं, सुनती हैं, बात करने को प्रोत्साहित करती हैं और सर्वसम्मति बनाने की कोशिश करती हैं।

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अलग नजरियां : कई अध्ययनों में भी यह पाया गया कि महिलाओं की नेतृत्व क्षमता पुरुषों से अलग होती है। उनका संपूर्ण नजरिया काफी सहयोगपूर्ण और सबको लेकर चलने वाला होता है।

ये सभी गुण आज की दौड़ती-भागती जिंदगी की सबसे बड़ी जरूरत हैं।

होमलैंड सिक्योरिटी संस्था की अमरीकी सचिव जेनेट नेपोलिटानो के अनुसार, 'मेरे ख्याल से ये कहना सही है कि महिलाएं ना सिर्फ सबको साथ लेकर चलती हैं बल्कि वे समस्याओं को उलझाने के बजाए उन्हें सुलझाने में यकीन रखती हैं।'

आयरलैंड की पूर्व राष्ट्रपति मैरी रॉबिन्सन कहती हैं, 'काम के दौरान कोई भी निर्णय लेने के समय महिलाएं की कई पीढ़ियों को ध्यान में रखती हैं, हमें ऐसे फैसले लेने की जरूरत है जो हमारे बच्चों और उनके बच्चों को सुरक्षित दुनिया प्रदान करेगा और हम ऐसा कर पाने में सक्षम हैं।'

मैरी रॉबिन्सन मानती हैं कि महिलाओं से पुरुषों जैसा व्यवहार करने की उम्मीद की जाती है, लेकिन अब उनका पुरुषों से अलग होना ही ताकत माना जाता है।

अमेरिकी संसद की पहली महिला स्पीकर नैंसी पेलोसी की महिलाओं को राय है, 'आप इकलौती शख्स हैं जो अपना विशिष्ठ योगदान दे सकती हैं। इसलिए खुद को बदले नहीं क्योंकि आपकी मौलिकता ही आपकी ताकत है।'

इसका मतलब ये नहीं है कि महिलाओं को दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता। उनके बारे में राय कायम करने में हमेशा दोहरापन होता है। उनकी उपलब्धियों को कम कर के आंका जाता है और उन्हें गलती करने का अधिकार भी कम होता है।

इसके बावजूद समर्थ महिलाओं का दुनिया के विकास में अहम योगदान है।

शांति दूत : महिलाओं का आत्मनिर्भर और समर्थ होना इसलिए भी जरूरी है कि क्योंकि उनका दुनिया में शांति बनाए रखने में अहम योगदान है। शायद इसलिए महिलाओं की भागदारी के बगैर किए गए आधे शांति समझौते असफल हो जाते हैं।

अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री कोंडिलीजा राइस कहती हैं कि, मैंने अपने अनुभव से सीखा है कि शांति वार्ताओं में महिलाओं को शामिल करना बेहद जरूरी है।

राइस के अनुसार, 'एक तरफ जहां महिलाएं परिवार, गांव, समाज और देश की रक्षा करती हैं तो दूसरी तरफ किसी भी लड़ाई या संकटग्रस्त इलाके में सबसे ज्यादा खतरा भी उन्हीं को होता है। इसलिए अगर हम उनकी मदद करेंगे तो बदले में वे भी समाज को काफी कुछ दे सकेंगी।'

इसलिए महिलाओं को समर्थ करना सिर्फ राजनैतिक बयानबाजी नहीं है ये एक दूरगामी सोच हैं जिसका हमारे समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। ये लड़ाईयों को कम करने, अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और समुदायों को स्वस्थ बनाने का रास्ता है।

समर्थ महिलाओँ का हमारे आसपास होना सिर्फ सही नहीं बल्कि बेहद जरूरी है।

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