वी.शांताराम : नए प्रयोग के हिमायती
30 अक्तूबर को पुण्यतिथि पर विशेष
हिन्दी फिल्मों के शुरुआती दौर में वी. शांताराम एक ऐसे फिल्मकार थे जिन्होंने हमेशा नए प्रयोग किए और तकनीक एवं कथावस्तु के स्तर पर हमेशा कुछ नया करने का प्रयास किया। इस कारण आज भी उनकी ‘‘दो आँखें बारह हाथ’’, ‘‘ नवरंग ’’ ‘‘डॉ. कोटनीस की अमर कहानी’’ और ‘‘झनक झनक पायल बाजे ’’ जैसी फिल्में सराही जाती हैं।
हिन्दी फिल्मों में पहली बार मूविंग शॉट फिल्माने का श्रेय भी शांताराम को जाता है। उन्होंने बच्चों के लिए रानी साहिबा नाम से 1930 में एक फिल्म बनाई। उन्होंने चंद्रसेना में पहली बार ट्रॉली का प्रयोग किया।
शांताराम की ‘दो आँखें बारह हाथ’ 1957 में प्रदर्शित हुई। यह एक साहसिक जेलर की कहानी है जो छह कैदियों को सुधारता है। इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रपति के स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था। इसे बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में ‘सिल्वर बियर’ और सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म के लिए ‘सैमुअल गोल्डविन’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। इस फिल्म के गीत ‘ऐ मालिक तेरे बंदे हम’ और ‘सैंया झूठों का बड़ा सरताज निकला’ आज भी लोगों को याद हैं।
‘झनक झनक पायल बाजे’ और ‘नवरंग’ शांताराम की बेहद कामयाब फिल्में रहीं। दर्शकों ने इन फिल्मों के गीत और नृत्य को काफी सराहा और फिल्मों को कई बार देखा।
राजाराम वानकुर्दे शांताराम का जन्म 18 नवंबर 1901 को कोल्हापुर में हुआ। किसी तरह की औपचारिक शिक्षा हासिल नहीं करने वाले शांताराम ने 12 साल की उम्र में अप्रेंटिस के तौर पर रेलवे वर्कशॉप में काम करना शुरू किया। इसके बाद उन्होंने बाल गंधर्व की गंधर्व नाटक मंडली में पर्दा खींचने का काम किया।
शांताराम ने फिल्मों की बारीकियाँ बाबूराव पेंटर से सीखी। बाबूराव पेंटर ने उन्हें सवकारी पाश (1925) में किसान की भूमिका भी दी। कुछ ही वर्षों में शांताराम ने फिल्म निर्माण की तमाम बारीकियाँ सीख लीं और निर्देशन की कमान संभाल ली। बतौर निर्देशक उनकी पहली फिल्म ‘नेताजी पालकर’ थी।
इसके बाद उन्होंने वीजी दामले, केआर धाईबर, एम फतेलाल और एसबी कुलकर्णी के साथ मिलकर ‘प्रभात फिल्म’ कंपनी का गठन किया। अपने गुर बाबूराव की ही तरह शांताराम ने शुरुआत में पौराणिक तथा ऐतिहासिक विषयों पर फिल्में बनाईं। लेकिन बाद में जर्मनी की यात्रा से उन्हें एक फिल्मकार के तौर पर नई दृष्टि मिली और उन्होंने 1934 में ‘अमृत मंथन’ फिल्म का निर्माण किया।
शांताराम ने अपने लंबे करियर में कई उम्दा फिल्में बनाईं और उन्होंने मनोरंजन के साथ संदेश को हमेशा प्राथमिकता दी।