अब्बास ने यह फिल्म आधुनिक युवा दर्शकों को ध्यान में रखकर बनाई है और नि:संदेह यह वर्ग इस फिल्म को बेहद पसंद करेगा। अब्बास का कहानी कहने का तरीका बेहद उम्दा है। फिल्म का पहला घंटा बेहद मनोरंजक है। इसमें आज की युवा पीढ़ी का उन्होंने हूबहू चित्रण किया है। यह हिस्सा बेहद युथफुल और ऊर्जा से भरा हुआ है। फिल्म कमजोर पड़ती है दूसरे घंटे में। दर्शक चाहते हैं कि जय और अदिति साथ रहें, लेकिन उन्हें दूर-दूर दिखाया गया है और इसे काफी लंबा रखा गया है। उनके बिछड़ने में वो दर्द पैदा नहीं होता, जो होना चाहिए। इस हिस्से में गानों की कमी भी महसूस होती है क्योंकि सभी हिट गीत पहले घंटे में परदे पर पेश कर दिए। फिल्म का अंत बेहद फिल्मी है, इसके बावजूद अच्छा लगता है। फिल्म में कई रिश्तों को बड़ी खूबसूरती से पेश किया गया है। जय और उसकी मम्मी के बीच का रिश्ता, अदिति और उसके भाई अमित का रिश्ता, रोतलू और बॉम्बस का रिश्ता। नसीरूद्दीन शाह और रत्ना शाह की बातचीत बेहतरीन है। अरबाज खान और सोहेल खान का भी निर्देशक ने उम्दा प्रयोग किया है। कास्टिंग डॉयरेक्टर पाखी ने बेहतरीन कलाकारों का चयन किया है। फिल्म के सभी कलाकारों को कम से कम मेकअप में पेश किया है। इससे वे हम जैसे ही लगते हैं। जयंत कृपलानी, किट्टू गिडवानी, अनुराधा पटेल जैसे भूले-बिसरे चेहरे भी इस फिल्म में दिखाई दिए हैं। इमरान खान के व्यक्तित्व पर यह भूमिका बिलकुल फिट है। उनके पास न रफटफ लुक है, न ही मसल्स, लेकिन अपने सधे हुए अभिनय से उन्होंने बाँधकर रखा है। यह देखना रोचक होगा कि आगामी फिल्मों में वे अलग तरह की भूमिकाओं में जँचते हैं या नहीं।
जेनेलिया का भविष्य उज्जवल है। साँवली-सलोनी जेनेलिया की आँखें और मुस्कान बहुत कुछ बोलती है। जेनेलिया की अभिनय क्षमता को देखते हुए निर्देशक ने उन्हें कई दृश्य ऐसे दिए हैं जहाँ उन्हें बिना संवादों के अभिनय करना था।
ए.आर. रहमान का योगदान भी इस फिल्म में अहम है। उनके द्वारा संगीतबद्ध किए सारे गीत हिट हैं और लंबे समय तक डांस पार्टियों में धूम मचाएँगे। तकनीकी रूप से फिल्म सशक्त है।
कुल मिलाकर ‘जाने तू... या जाने ना’ को पसंद करने वालों की संख्या ज्यादा रहेगी।
***** अद्भुत **** शानदार *** बढि़या ** औसत * बेकार