हैप्पी और लकी की एक और मुलाकात होती है। दुश्मनों के हमले में लकी को गोली लगती है। लकी को कंधों पर रखकर हैप्पी उसे अपना हथियार बनाकर लड़ता है और दुश्मनों को मार भगाता है। बेचारे लकी को ऐसी बीमारी हो जाती है कि वह कोई भी हरकत नहीं कर पाता, लेकिन उसे सुनाई सब कुछ देता है। वह अपनी इस बीमारी का जिम्मेदार उँगली उठाकर (ये मत पूछिए कि उँगली उसने कैसे उठा दी) हैप्पी को बताता है और उसकी गैंग में शामिल बेवकूफ लोग समझते हैं कि हैप्पी उनका नया किंग होगा। नया किंग दिल का अच्छा है, गरीबों में पैसे बँटवाता है। बेचारा रंगीला, उसे ऑस्ट्रेलिया में गरीबों को ढूँढने में बहुत मेहनत करना पड़ती है।
किरण खेर ने अपनी बेटी से झूठ बोला था कि वो अमीर है। वो अपने बॉयफ्रेंड के साथ वापस आ रही है, अब किरण अपने झूठ को छिपाए कैसे? घबराइए मत, हैप्पी जो है ना। लकी के गैंग के सदस्यों को हैप्पी माली, बावर्ची, चौकीदार, ड्रायवर बनाकर खुद मैनेजर बन जाता है। किरण की बेटी आती है, पर ये क्या ये तो सोनिया है और वो भी बॉयफ्रेंड (रणवीर शौरी) के साथ।
हैप्पी न केवल लकी और उसकी गैंग का हृदय परिवर्तन करता है, बल्कि लड़ते-लड़ते सोनिया के साथ अनजाने में अग्नि के सात फेरे ले लेता है, पंडितजी इसे शादी घोषित कर देते हैं।
कहानी में दम नहीं है, लेकिन अनीस ने बीच-बीच में हास्य दृश्य डालकर फिल्म को गतिशील और मनोरंजक बनाया है। फिल्म का पहला भाग तेज गति का, घटनाप्रधान और हास्य से भरपूर है, लेकिन दूसरे भाग में फिल्म हाँफने लगती है। फिल्म का अंत संतुष्ट नहीं करता क्योंकि फिल्म अचानक खत्म हो जाती है।
अक्षय और ओमपुरी की कैमेस्ट्री बेहतरीन थी, लेकिन मध्यांतर के बाद निर्देशक ने इस जोड़ी का फायदा नहीं उठाया। अक्षय की दाढ़ी भी पूरी फिल्म में छोटी-बड़ी होती रहती है। निर्देशक अनीस बज्मी ने अपना सारा ध्यान कहानी को छोड़ हास्य दृश्य और अक्षय कुमार पर लगाया है। कुछ दृश्य अच्छे हैं, जैसे- अक्षय का किंग बनना, सोनू सूद का खून उबलना, सोनू का ड्रिंक ट्रॉली की तरह उपयोग करना, यशपाल शर्मा की दु:ख भरी कहानी सुनना।
अक्षय कुमार इस फिल्म की जान है। इस फिल्म से अक्षय को हटा दिया जाए तो कुछ नहीं बचेगा। उनके उम्दा अभिनय के कारण ही फिल्म में रूचि बनी रहती है। अक्षय ने पटकथा से ऊपर उठकर अतिरिक्त प्रयास के जरिए अपने अभिनय को बेहतरीन बनाया है। कैटरीना कैफ को सुंदर और ग्लैमरस लगना था और यह काम उन्होंने बखूबी किया। फिल्म में सहायक अभिनेताओं की टीम अच्छी है। ओमपुरी, किरण खेर, यशपाल शर्मा, मनोज पाहवा, रणवीर शौरी जैसे कलाकारों का काम अच्छा है। जावेद जाफरी द्वारा बोले गए आधे से ज्यादा संवाद तो समझ में ही नहीं आते। किरण खेर का मेकअप बहुत खराब है। फिल्म का संगीत ठीक-ठाक है।
कुल मिलाकर ‘सिंह इज़ किंग’ उन लोगों को पसंद आ सकती है, जो थिएटर में थोड़ी देर तनाव दूर करने के लिए जाते हैं।