निर्माता-निर्देशक : अफज़ल खान संगीत : इस्माईल दरबार कलाकार : संजय दत्त, मनीषा कोईराला, अजय देवगन ‘मेहबूबा’ को देख पन्द्रह वर्ष पहले का समय याद आ जाता है। उस दौर में इस तरह की फिल्में बना करती थीं, जिनमें शानदार सेट, बड़े कलाकार, आँखों को सुकून देने वाली लोकेशन हुआ करती थी। इस तरह की फिल्म बनाने में खूब पैसा खर्च होता था। दु:ख की बात यह है कि ‘मेहबूबा’ आज के समय में प्रदर्शित हुई है, जब इस तरह की फिल्मों को पसंद नहीं किया जाता। ‘साजन’, ‘हम दिल दे चुके सनम’, ‘हम आपके हैं कौन’ जैसी कई फिल्मों की याद ‘मेहबूबा’ देखते समय आती है। अनेक फिल्मों को जोड़-तोड़कर इसे बनाया गया है। ‘मेहबूबा’ कितनी पुरानी है इसका अंदाजा फिल्म के कलाकारों को देखकर लग जाता है। उनकी हेयरस्टाइल, ड्रेस अब बासी हो गए हैं। जिन्हें पाँच इमोशनल सीन, कुछ हास्य दृश्य, 6 गाने, एक आयटम साँग और कुछ ग्लैमर देखना हों, उन्हें यह फिल्म पसंद आ सकती है। लेकिन बड़े शहरों के दर्शक इस फिल्म को शायद ही पसंद करें। फिल्म की कहानी में नयापन नहीं है। कई बार इस तरह का प्रेम त्रिकोण दर्शक सैकड़ों फिल्मों में देख चुके हैं। फिल्म शुरू होने के दस मिनट बाद ही पता चल जाता है कि इस कहानी का अंत क्या होगा। निर्देशक अफज़ल खान ने इस घिसी-पिटी कहानी को परदे पर अच्छे तरीके से पेश किया है। कुछ दृश्य उन्होंने बेहतरीन फिल्माए हैं। जैसे संजय और मनीषा के बीच तकरार का दृश्य और फिल्म का अंत। लेकिन फिल्म की लंबाई पर वे नियंत्रण नहीं रख पाए। लगभग तीन घंटे की फिल्म देखते-देखते ऊब होने लगती है। इस्माईल दरबार के संगीत पर ‘हम दिल दे चुके सनम’ की छाप है। फिर भी कुछ गाने अच्छे हैं। अशोक मेहता ने फिल्म को उम्दा तरीके से फिल्माया है। नितिन देसाई के सेट उल्लेखनीय है।
संजय दत्त और अजय देवगन इस तरह की भूमिकाएँ कई बार निभा चुके हैं, इसलिए उन्हें अभिनय में कुछ विशेष नहीं करना पड़ा। मनीषा सुंदर लगी। कादर खान ने भी इस तरह की भूमिका पहले कई बार निभाई हैं।
कुलमिलाकर ‘मेहबूबा’ गलत समय पर प्रदर्शित हुई है। यदि यह फिल्म पन्द्रह वर्ष पूर्व सिनेमाघरों में आती तो निश्चित रूप से सफल होती।