फिल्म के रहस्य पर से परदा न उठाते हुए हम यह बताना चाहेंगे कि कहानी में कुछ अविश्वसनीय घटनाएँ रखी गई हैं जो गले नहीं उतरतीं, लेकिन फिल्म की गति इतनी तेज है कि फिल्म देखते समय दर्शक इन बातों के बारे में नहीं सोचता। इसका श्रेय पटकथा लेखक (संजय गुप्ता, एस. फरहान और राजीव गोपाल) को जाना चाहिए कि उन्होंने कहानी की कमियों को बखूबी छिपाया है।निर्देशक हंसल मेहता ने फिल्म को स्टाइलिश लुक दिया है। उनका कहानी को परदे पर पेश करने का तरीका अंग्रेजी फिल्मों जैसा है। उनके उम्दा प्रस्तुतिकरण की वजह से दर्शक की दिलचस्पी कहानी में कमी होने के बावजूद बनी रहती है। फिल्म में सबसे बड़ा व्यवधान गाने पहुँचाते हैं। थ्रिलर फिल्म में यूँ भी गानों की गुंजाइश कम रहती है। गाने इतने मधुर भी नहीं हैं कि सुनने में अच्छे लगें। नील मुकेश के बाद सिकंदर खेर ने भी अपने करियर की शुरुआत नकारात्मक किरदार से की है। ऊँचे-पूरे सिकंदर अपनी उम्र से ज्यादा के दिखाई देते हैं। हंसल मेहता ने अपने कुशल निर्देशन से सिकंदर की अभिनय संबंधी कमजोरियों को छिपाया है। उन्होंने सिकंदर पर छोटे-छोटे शॉट्स फिल्माए हैं, जिससे उनकी अभिनय क्षमता का पता नहीं चलता। सिकंदर की आवाज़ उनकी सबसे बड़ी खूबी है। नेहा ओबेरॉय का अभिनय और खूबसूरती औसत किस्म की है। कुछ कोणों से वे शिल्पा शेट्टी जैसी दिखाई देती हैं। अरबाज़ खान और गुलशन ग्रोवर ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है। संजय दत्त भी दोस्त की फिल्म होने के नाते एक गाने में नजर आए।
विशाल नौलखा का कैमरा वर्क फिल्म के मूड के अनुरूप है। थ्रिलर फिल्मों में पार्श्व संगीत की भूमिका अहम होती है और अमर मोहिले ने अपना काम बखूबी किया है। फिल्म का संपादन बेहद चुस्त है।
‘वुडस्टॉक विला’ उन लोगों के लिए है जो स्टाइलिश और थ्रिलर फिल्म पसंद करते हैं।