‘बैक टू बेसिक्स’। जब क्रिकेट खिलाड़ी से रन नहीं बन रहे हों तो वह इस वाक्य का अनुसरण करता है। निर्देशक रामगोपाल वर्मा भी अपनी पिछली कुछ फिल्मों में फॉर्म में नहीं दिखाई दिए क्योंकि असाधारण फिल्म बनाने के चक्कर में वे घटिया फिल्म बना गए। ‘सरकार राज’ के जरिये वे अपनी मजबूत बुनियाद की तरफ फिर लौटे हैं।
आपराधिक, अंडरवर्ल्ड और डरावनी फिल्म बनाने में उन्हें महारत हासिल है। अपनी इसी खूबी को उन्होंने पहचाना और ‘सरकार’ का अगला भाग ‘सरकार राज’ दर्शकों के सम्मुख बखूबी पेश किया।
‘सरकार राज’ महाराष्ट्र के चर्चित एवं विवादास्पद पॉवर प्रोजेक्ट एनरॉन और कथित रूप से ठाकरे परिवार की पृष्ठभूमि पर आधारित है। अपनी शर्तों पर जीने वाले और हमेशा अपने को सही समझने वाले सरकार अपने जोश के दिनों में इस बात का होश खो बैठते हैं कि एक न एक दिन उन्हें अपने तमाम कामों की कीमत इसी जिंदगी में चुकानी होगी। जब उनका अपना बेटा राजनीतिक साजिश का शिकार होकर मार दिया जाता है तब सिवा आँसू बहाने के उनके पास बचता क्या है?
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पॉवर प्लांट स्थापित करने के पीछे ओछी राजनीति, साजिश और खूनी खेल रचे जाते हैं। राजनीति की शतरंज पर सबका इस्तेमाल मोहरे की तरह किया जाता है। यहाँ कोई वफादार नहीं होता और कोई गद्दार नहीं होता। वफादारी और गद्दारी के बीच एक पतली लक्ष्मण रेखा होती है जिसे कभी भी मिटाया जा सकता है।
‘सरकार राज’ में राजनीतिक चालों का घिनौना चेहरा और बैर-बदले की कहानी हत्यारों के माध्यम से चलती है। यहाँ तक कि सरकार अपने बेटे की मौत के बाद अपने रिश्तेदार चीकू को नागपुर से बुलवाकर अगली पीढ़ी तैयार करने की बात करते हैं।
इसे निर्देशक ने खूबसूरती के साथ अंत में दर्शाया है कि जब अनीता यानी ऐश्वर्या राय एक कप चाय लाने का ऑर्डर देती है। इसका मतलब साफ है कि सरकार के समांतर सरकार चलाने वालों के लिए व्यक्ति एक वस्तु से ज्यादा अहमियत नहीं रखता।
‘सत्या’ और ‘कम्पनी’ के बाद रामू ने एक बार फिर फिल्म माध्यम पर अपनी पकड़ मजबूत की है। उन्होंने ‘सरकार राज’ फिल्म की पटकथा कम पात्रों के जरिये कसावट के साथ परदे पर पेश की है। फिल्म में नाच-गाने अथवा मनोरंजन की गुंजाइश न रखते हुए उन्होंने पात्रों के माध्यम से दर्शकों को सवा दो घंटे बाँधे रखा।
फिल्म के संवाद अँगूठी में नगीने की तरह जड़े हुए लगते हैं। संवाद अमिताभ बोल रहे हों या अभिषेक या फिर राव साहब, दर्शकों को जज्बात और साजिश के रंग साफ समझ में आते हैं।
रामगोपाल वर्मा ने किसी भी कलाकार को जरूरत से ज्यादा फुटेज नहीं दिया है। अमिताभ बच्चन, अभिषेक और ऐश्वर्या ने अपने किरदारों के साथ पूरा न्याय किया है। फिल्म के चरित्र कलाकारों दिलीप प्रभावलकर, गोविंद नामदेव, सयाजी शिंदे और रवि काले ने भी बेहतरीन अभिनय किया है।
फिल्म के लेखक प्रशांत पांडे का उल्लेख करना भी जरूरी है, क्योंकि उन्होंने रामगोपाल वर्मा का काम आसान किया है। रामगोपाल वर्मा की फिल्म तकनीकी रूप से हमेशा सशक्त रही है और यही बात इस फिल्म में भी नजर आती है।
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अमित रॉय की सिनेमाटोग्राफी उल्लेखनीय है। लाइट और शेड का उन्होंने उम्दा प्रयोग किया है। आड़े-तिरछे कोणों से फिल्म को शूट कर उन्होंने पात्रों की बेचैनी को परदे पर उतारने की कोशिश की है। अमर मोहिले का बैकग्राउंड म्यूजिक शानदार है और फिल्म का अहम हिस्सा है, हालाँकि कहीं-कहीं वो लाउड हो गया है।
सरकार राज एक फिल्म न होकर एक विचार है, जिसमें व्यवस्था और उसकी विरोधी ताकतें शिद्दत के साथ उभरती हैं।