निर्माता : कुमार मंगत निर्देशक : गणेश आचार्य कलाकार : गोविंदा, सेलिना जेटली, आफताब शिवदासानी, हंसिका, उपेन पटेल, ईशा देओल, मनोज बाजपेयी, अर्चना पूरन सिंह
डेविड धवन और प्रियदर्शन ने ऐसी हास्य फिल्मों की परंपरा की शुरुआत की जिन्हें देखते समय दिमाग घर पर रखना होता है। इनकी कामयाबी को देखते हुए हर निर्माता-निर्देशक ऐसी फिल्म बनाने लगा और पिछले कुछ समय से तो ऐसी फिल्मों की बाढ़ आ गई।
गणेश आचार्य की ‘मनी है तो हनी है’ भी इसी तरह की फिल्म है। इन फिल्मों में कहानी की उम्मीद करना बेकार है, लेकिन कम से कम दर्शक हँसना जरूर चाहता है। मनोरंजन चाहता है, लेकिन ‘मनी है तो हनी है’ बेहद बोरिंग किस्म की फिल्म है।
अपनी पहली निर्देशित फिल्म ‘स्वामी’ के जरिए गणेश आचार्य ने दर्शाया था कि वे अपना काम अच्छी तरह जानते हैं, लेकिन ‘मनी है तो हनी है’ देखकर लगता ही नहीं कि ये वे ही गणेश हैं।
समझ में नहीं आता कि गणेश आचार्य ने इस पटकथा पर फिल्म बनाने की कैसे सोची? कैसे सारे कलाकार इसमें काम करने के लिए तैयार हो गए? ‘मनी है तो हनी है’ एक ऐसा विमान है जो बिना पायलट के उड़ता है। आपको पता नहीं चलता कि यह कहाँ जाएगा?
फिल्म की कहानी छ: किरदारों के इर्दगिर्द घूमती है। लालाभाई सड़क पर आ गए हैं क्योंकि जो व्यवसाय उन्होंने शुरू किया था, उसमें उन्हें नुकसान हो गया। बॉबी कुछ बनने के लिए घर से भाग खड़ा हुआ।
गौरव एक कॉपी राइटर है, लेकिन उसे नौकरी से निकाल दिया गया है। माणिक एक संघर्षरत मॉडल है, जो एक उम्रदराज महिला फैशन डिजाइनर के साथ इसलिए संबंध बनाए हुए है ताकि उसे आगे बढ़ने का अवसर मिले।
आशिमा कपूर टीवी की जानी-मानी अभिनेत्री है, लेकिन खुश नहीं है। वह फिल्मों में नायिका की भूमिका निभाना चाहती है। श्रुति एक ड्रेस डिजाइनर है, जो फिलहाल संघर्ष कर रही है।
इनकी जिंदगी में मोड़ तब आता है जब सभी को एक एसएमएस मिलता है। इसमें बताया जाता है कि वे एक हजार करोड़ रुपए की कंपनी के मालिक हैं। सभी की खुशी का ठिकाना नहीं रहता। यह खुशी ज्यादा देर नहीं टिकती क्योंकि कंपनी को 1200 करोड़ रुपए की उधारी चुकाना है। सबको यह पैसा भरना है और जब तक यह पैसा नहीं चुकाया जाता तब तक उन्हें एक घर में कैद रहना होगा।
कहानी पेपर पर उम्दा लगती है, लेकिन परदे पर नहीं। फिल्म का पहला हिस्सा इसी को दिखाने में खर्च किया गया है कि सारे किरदार किस तरह संघर्ष के रास्ते पर हैं। फिल्म में कई बेमतलब की उप-कहानियाँ हैं, जो बेहद बोर करती हैं।
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गोविंदा ने जो किरदार निभाया है उसके लिए हीरो की उम्र बीस-बाइस वर्ष होनी चाहिए। उम्र के निशान उनके चेहरे पर दिखाई देने लगे हैं। उनका अभिनय भी ठीक नहीं है। मनोज बाजपेयी का अभिनय फिल्म दर फिल्म गिरता जा रहा है। आफताब शिवदासानी, हंसिका और सेलिना को ज्यादा अवसर नहीं मिले।
कुल मिलाकर ‘मनी है तो हनी है’ बकवास फिल्म है और बॉक्स ऑफिस पर इसका डूबना निश्चित है।