मि. ज़ीरो हैं मि.व्हाइट और मि.ब्लैक
निर्माता : बिपिन शाह
निर्देशक : दीपक शिवदासानी संगीत : जतिन-ललित, शमीर टंडन, तौसिफ अख्तर कलाकार : सुनील शेट्टी, अरशद वारसी, संध्या मृदुल, महिमा मेहता, रश्मि निगम, अनिष्का खोसला, आशीष विद्यार्थी * यू/ए * 16 रीलरेटिंग : 1/5 ’मि.व्हाइट मि. ब्लैक’ चूके हुए लोगों की फिल्म है। दीपक शिवदासानी ने वर्षों पहले कुछ सफल फिल्में बनाई थीं। बदलते दौर के साथ वे अपने आपको नहीं बदल पाए और उनकी यह फिल्म भी उसी दौर की लगती है। फिल्म के नायक सुनील शेट्टी और अरशद वारसी का सफर नायक के रूप में कब का समाप्त हो गया है। इन दिनों वे चरित्र भूमिकाएँ निभाते हैं। इन चूके हुए अभिनेताओं को फिल्म का नायक बनाया गया है। इनकी नायिका कौन बनना चाहेगी? इसलिए कुछ फ्लॉप अभिनेत्रियों को इनके साथ पेश किया गया है। फिल्म के लेखक ने सारे चूके हुए फार्मूलों को फिर से आजमाया है। हँसाने के लिए दो नायक, एक बेवकूफ डॉन, मूर्ख पुलिस ऑफिसर, हीरों की चोरी और कुछ जोकरनुमा चरित्र। इन सभी को लेकर सारे तत्व हँसाने के लिए डाले गए हैं। अफसोस की बात यह है कि उनकी इतनी मेहनत के बावजूद एक बार भी हँसी नहीं आती। किशन (अरशद वारसी) की तलाश में होशियारपुर से गोपी (सुनील शेट्टी) गोवा आता है। वह किशन को होशियारपुर ले जाना चाहता है ताकि उसे जमीन देकर वह अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाए। किशन एक चलता-पुर्जा इंसान है। लोगों को बेवकूफ बनाकर और चोरी कर वह अपना खर्चा चलाता है। वह गोपी के साथ जाने से इंकार कर देता है। केजी रिसोर्ट के मालकिन की बेटी गोपी की अच्छी दोस्त बन जाती है। तीन लड़कियाँ पच्चीस करोड़ रुपए के हीरे चुराकर केजी रिसोर्ट में छिप जाती है। जब यह बात किशन को पता चलती है तो वह उन हीरों को चुराने के लिए केजी रिसोर्ट जाता है और उसके पीछे-पीछे गोपी।कई उपकथाएँ शुरू हो जाती हैं और ढेर सारे चरित्र कहानी में शामिल हो जाते हैं। सभी हीरों के पीछे लग जाते हैं। इस तरह की कहानी हाल ही में परदे पर कई बार दिखाई जा चुकी है। दीपक शिवदासानी की कहानी मध्यांतर के बाद अपना सारा असर खो देती है। दीपक और पटकथा लेखक संजय पंवार और निशिकांत कामत ने ढेर सारे चरित्र कहानी में डाल तो दिए हैं, किंतु बाद में उन्हें समझ में नहीं आया कि इन सबको समेटा कैसे जाए। फिल्म के क्लाइमैक्स में भी नयापन नहीं है। हीरे चुराने वाली लड़कियों की क्या पृष्ठभूमि है? किशन को गोपी होशियारपुर क्यों ले जाना चाहता है, ये स्पष्ट नहीं किया गया। जबकि यह कहानी का अहम हिस्सा है। कहानी और पटकथा ऐसी है कि ढेर सारे प्रश्न दिमाग में आते हैं, जिनका उत्तर देने की जवाबदारी निर्देशक और लेखक महाशय ने नहीं समझी। निर्देशक दीपक शिवदासानी ने फिल्म को स्टाइलिश लुक देने की असफल कोशिश की। कमजोर पटकथा की वजह से भी वे ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। फिल्म चार वर्ष में बनी है और इसका असर नजर आता है। सुनील शेट्टी और अरशद वारसी को भी समझ में आ गया था कि फिल्म में दम नहीं है, इसलिए उन्होंने बेमन से अपना काम किया है। सुनील शेट्टी को ज्यादा अवसर नहीं मिले हैं। शरत सक्सेना, मनोज जोशी, आशीष विद्यार्थी, अतुल काले, उपासना सिंह, सदाशिव अमरापुरकर ने हँसाने की असफल कोशिश की है।
फिल्म की नायिकाएँ (रश्मि निगम, अनिष्का खोसला, महिमा मेहता) न दिखने में सुंदर हैं और न ही उन्हें अभिनय करना आता है। संध्या मृदुल ने पता नहीं क्या सोचकर यह फिल्म में काम करना मंजूर किया। गीत-संगीत औसत है और तकनीकी रूप से फिल्म कमजोर।
कुल मिलाकर ‘मि.व्हाइट और मि. ब्लैक’ मि.जीरो साबित होते हैं।