Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

कभी कभार झूठ भी चलता है

हमें फॉलो करें कभी कभार झूठ भी चलता है

मनीष शर्मा

ND
एक बार एक राजा के दरबार में एक गरीब व्यक्ति को एक किसान के खेत से शकरकंद चुराने के आरोप में बंदी बनाकर लाया गया। राज्य के नियमानुसार राजा ने उसे मृत्युदंड दे दिया। इस पर वह गिड़गिड़ाते हुए बोला- कई दिनों से भूख से तड़पते अपने बच्चों को न देख पाने के कारण मैंने चोरी की थी। मुझे अपनी करनी पर खेद है।

अपने एक मंत्री से मंत्रणा में व्यस्त रहने के कारण राजा उसकी बातें नहीं सुन पाया, लेकिन उसके एक अन्य मंत्री ने ये सब बातें सुन लीं। राजा को अपने निर्णय पर अटल देख बंदी ने उसे देहाती भाषा में गालियाँ देना शुरू कर दिया।

राजा कुछ-कुछ समझा, लेकिन पूरी तरह से समझ नहीं पाया। उसने बंदी की बात ध्यान से सुन रहे मंत्री से पूछा कि यह क्या कह रहा है, जरा मुझे समझाएँ। इस पर मंत्री बोला- महाराज! यह बंदी आपकी न्यायप्रियता की प्रशंसा करते हुए कह रहा है कि उसके द्वारा की गई गलती को क्षमा करें, क्योंकि क्षमा से बड़ा कोई दान नहीं होता। राजा- तो तुम्हारी क्या राय है?
  एक बार एक राजा के दरबार में एक गरीब व्यक्ति को एक किसान के खेत से शकरकंद चुराने के आरोप में बंदी बनाकर लाया गया। राज्य के नियमानुसार राजा ने उसे मृत्युदंड दे दिया।      


मंत्री- महाराज, आप उसे क्षमादान दे दीजिए, यह कोई पेशेवर चोर नहीं है। परिस्थितिवश मजबूरी में उसने ऐसा किया है। इस पर एक अन्य मंत्री बोल उठा- राजन, क्षमा चाहूँगा, लेकिन मेरे साथी मंत्री ने आपसे झूठ कहा है। वह बंदी आपको गालियाँ दे रहा था। लगता है हमारे साथी मंत्रीजी का बंदी से कोई संबंध है, तभी तो उसका पक्ष ले रहे हैं। आपका मृत्युदंड का निर्णय ही उचित है।

इस पर राजा बोला- मंत्रीजी, कुछ-कुछ बातें मुझे भी समझ में आ रही थीं। लेकिन मुझे आपके सच से आपके सहयोगी मंत्री का झूठ ज्यादा श्रेष्ठ लगा, क्योंकि उनके झूठ में किसी की भलाई छिपी हुई है, जबकि आपका सच तो ईर्ष्या से भरा है। इसलिए हम इस बंदी को तुरंत छोड़ने का आदेश देते हैं।

दोस्तो, सत्य बोलना निःसंदेह उचित है, लेकिन सत्य बोलने से पहले यह भी सोच लेना चाहिए कि सत्य से किसी की भावना को ठेस तो नहीं पहुँच रही? सत्य कहीं हिंसा का कारण तो नहीं बन रहा? एक सत्य से कई लोगों की बलि तो नहीं चढ़ रही?

सत्य से लोगों के बीच घृणा बढ़ने की आशंका तो नहीं है? उदाहरण के लिए यदि डॉक्टर के किसी झूठ से रोगी को राहत मिलती है, तो कभी कभार ऐसा झूठ बोला जा सकता है।

आप किसी अंधे व्यक्ति को अंधा कहेंगे तो न तो उसे अच्छा लगेगा न आपको। महर्षि वेदव्यास ने पाँच स्थितियों में झूठ बोलने को पाप नहीं माना है। विवाह काल में, प्रेम-प्रसंग में, किसी के प्राणों पर संकट आने पर, सर्वस्व लुटते देखकर तथा किसी ज्ञानी या विद्वान व्यक्ति के हित के लिए आवश्यकता होने पर झूठ बोला जा सकता है। लेकिन इसकी भी सीमा है यानी जब स्थिति ऐसी आ जाए कि बिना असत्य बोले काम न चले, तभी असत्य बोलो।

लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो हमेशा ही असत्य बोलते रहते हैं। वे मानते हैं कि आज के जमाने में झूठ के बिना काम ही नहीं चलता। उनकी सोच गलत है। यदि हम कार्य-व्यवसाय की बात करें, तो झूठ बोलकर हो सकता है आप तात्कालिक रूप से भले ही फायदा उठा लें, लेकिन भविष्य में आपको इससे खासा नुकसान उठाना पड़ सकता है। जब झूठ पर से पर्दा उठता है, तब वह किसी न किसी संबंध के पर कतर देता है यानी संबंधों के टूटने का कारण बनता है।

दूसरी ओर, आज के समय में हम सत्य की सत्ता को भूलते जा रहे हैं। हमने झूठ को ही अपनी प्रगति का आधार मान लिया है। झूठ बोलते समय हम यह भी भूल जाते हैं कि एक बार बोला गया झूठ बार-बार झूठ बुलवाता है। हमें अकसर याद रखना पड़ता है कि हमने कब, कहाँ, किससे झूठ बोला, ताकि कहीं भूल न जाएँ और पकड़ा न जाएँ। यानी हम झूठ बोलने के बाद दिमाग पर बोझ डालकर घूमते हैं। बढ़ते तनाव के पीछे एक कारण यह भी है।

और अंत में, आज 'टेल ए लाई डे' है यानी आज आप एक झूठ बोल सकते हैं, बशर्ते उससे किसी का नुकसान न हो। वैसे बहुत जरुरी हो तभी हमें सत्य का साथ छोड़ना चाहिए। कहते भी हैं कि सत्यं ब्रूयात्‌, प्रियं ब्रूयात्‌, न ब्रूयात्‌ सत्यं अप्रियम्‌ यानी 'सत्य बोलें लेकिन प्रिय सत्य बोलें, अप्रिय सत्य नहीं' यानी हमेशा सच बोलना भी ठीक नहीं। अरे भई, झूठ नहीं बोल सकते तो चुप्पी साध लो।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi