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बूते के बाहर का करा देता है 'करो या मरो'

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मनीष शर्मा

IFM
एक बार अकबर ने बीरबल से पूछा कि सबसे बड़ा हथियार कौन-सा है। कुछ सोचकर बीरबल बोले- जहाँपनाह, जो समय पर काम आए। अकबर ने इसे साबित करने को कहा तो बीरबल ने उनसे कुछ समय माँग लिया। बात आई-गई हो गई।

एक दिन अकबर बीरबल के साथ टहल रहे थे कि अचानक उन्हें शोर सुनाई दिया। उन्होंने देखा कि एक पागल हाथी चिंघाड़ता हुआ दौड़ा चला आ रहा है। महावत उसके पीछे से चिल्ला-चिल्लाकर सबको सावधान कर रहा था कि बचो, वर्ना जो भी इसके सामने पड़ेगा, मारा जाएगा।

इस पर वे दोनों तेजी से सुरक्षित स्थान पर जाकर खड़े हो गए। इस बीच एक दुबला-पतला आदमी हाथी के सामने पड़ गया। एक पागल हाथी के सामने निहत्थे खड़े उस आदमी को देखकर सभी सोच रहे थे कि कुछ ही पलों में उसका खेल खत्म हो जाएगा। लेकिन कहते हैं न कि जब 'करो या मरो' की स्थिति होती है, तो व्यक्ति का दिमाग तेजी से चलने लगता है।
  'करो या मरो' का मंत्र सबसे ज्यादा तब काम आता है, जब आपको लगे कि आपकी सफलता की सारी उम्मीदें खत्म हो चुकी हैं। ऐसे में मैदान छोड़ने की बजाय यदि आप 'करो या मरो' मंत्र को याद करेंगे तो इसके प्रभाव से आपके शरीर में नई स्फूर्ति, नई ऊर्जा, का संचार होगा।      


पास खड़े एक कुत्ते को देखकर उसका भी दिमाग चला और उसने आव देखा न ताव, कुत्ते को पिछली टाँगों से पकड़कर घुमाते हुए हाथी पर दे मारा। हाथी के माथे से टकराकर जमीन पर गिरा कुत्ता घायल होकर जोर-जोर से चीखने लगा जिससे हाथी डर गया और पलटकर भाग गया। उस आदमी की जान में जान आई।

इस घटना के साक्षी अकबर ने जब बीरबल की ओर देखा तो वे मुस्करा रहे थे। इसके पहले कि बीरबल कुछ कहते, अकबर बोले- हाँ बीरबल, हम समझ गए कि तुम क्या कहना चाहते हो।

दोस्तो, सही तो कहा था बीरबल ने। वह हथियार ही क्या जो वक्त पड़ने पर आपको बचा ही नहीं पाए। जैसे कि उस आदमी ने जरूरत पड़ने पर कुत्ते को हथियार बनाकर अपनी जान बचाई, वरना उस समय उसके पास तलवार भी होती तो वह हाथी का क्या बिगाड़ लेता। उसे अपनी जान से हाथ धोना ही पड़ता।

इसी तरह यदि आप भी किसी ऐसी विपत्ति में फँस जाएँ, जब आपकी स्थिति भी करो या मरो की हो और आपको कोई उपाय न सूझ रह हो, तो घबराएँ नहीं। घबराकर तो आप उस स्थिति के आगे हथियार ही डाल देंगे और कुछ नहीं कर पाएँगे।

इसके बजाय यदि आप बिना घबराए अपना दिमाग दौड़ाएँगे तो वह कोई न कोई ऐसा उपाय जरूर सुझा देगा जिससे कि आप किसी भी वस्तु, व्यक्ति, घटना या बात को हथियार बनाकर उस विपत्ति से बाहर निकल जाएँगे। वो कहते हैं न कि 'डूबते को तिनके का सहारा।' आपको भी कोई न कोई तिनका मिल ही जाएगा जिसके सहारे आपकी डूबती नैया बच जाएगी।

दूसरी ओर, आज के प्रतिस्पर्धी युग में 'करो या मरो' का मंत्र बहुत ही असरकारक सिद्ध होता है। यह सबसे ज्यादा तब काम आता है, जब आपको लगे कि आपकी सफलता की सारी उम्मीदें खत्म हो चुकी हैं। ऐसे में हिम्मत हारकर मैदान छोड़ने की बजाय यदि आप 'करो या मरो' मंत्र को याद करेंगे तो इसके प्रभाव से आपके शरीर में नई स्फूर्ति, नई ऊर्जा, नई ताकत का संचार होगा और आप कुछ अनोखा कर गुजरेंगे, क्योंकि यदि नहीं करेंगे तो मरना पड़ेगा।

और जब व्यक्ति को सामने से अपना अंत आता हुआ दिखाई देता है, तो वह उससे बचने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाता है। ऐसी स्थिति में भी अगर वह 'करो या मरो' की बजाय आगे-पीछे की सोचने लगेगा तो फिर उसका तो खेल ही खत्म हुआ समझो।

और अंत में, आज 9 अगस्त है। आज ही के दिन 1942 में महात्मा गाँधी ने देश की आजादी के लिए 'भारत छोड़ो आंदोलन' की घोषणा करते हुए कहा था कि मैं आपको एक छोटा-सा मंत्र देता हूँ। आप इसे अपने हृदय पटल पर अंकित कर लीजिए। वह मंत्र है- 'करो या मरो।' या तो हम भारत को आजाद करेंगे या आजादी की कोशिशों में अपने प्राण दे देंगे।

गाँधीजी के इस मंत्र ने समूचे राष्ट्र में एक नई ऊर्जा भर दी। यह मंत्र आज भी हम सभी के लिए प्रेरणादायक है। इसी के सहारे आए दिन कई लोग कुछ ऐसा करके दिखाते रहते हैं, जो उनके लिए उनके बूते से बाहर की बात होती है। आप भी इस मंत्र को अपनाएँ और फिर देखें इसका चमत्कार।

अरे भई, अगर अपना काम समय पर ही कर लेते तो ये 'करो या मरो' की स्थिति आती ही नहीं और तुम्हें यूँ मर-मर के काम नहीं करना पड़ता।

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