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श्रेय पर सवार पांडेय, पीछे पड़े कुरैशी

हमें फॉलो करें श्रेय पर सवार पांडेय, पीछे पड़े कुरैशी
- अरुण उपाध्या
भिलाई विधानसभा सीट पर बीते तीन चुनावों के प्रतिद्वंद्वी एक बार फिर आमने-सामने हैं। परिसीमन की काँट-छाँट ने भाजपा और कांग्रेस, दोनों की मुसीबत बढ़ा दी है। दोनों के प्रत्याशियों के परंपरागत गढ़ का काफी हिस्सा अलग होकर वैशालीनगर विधानसभा क्षेत्र में चला गया है। इसकी वजह से पार्टी नेता रणनीति बनाकर वोटों को अपने कब्जे में करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इंटुक की गैरहाजिरी से चुनाव मैदान में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति नहीं बनी और इसी कारण भाजपा प्रत्याशी प्रेमप्रकाश पांडेय व कांग्रेस प्रत्याशी बदरुद्दीन कुरैशी की सीधी टक्कर हो रही है। मुद्दे की जगह विधानसभा क्षेत्र में परिस्थिति के मुताबिक कई समीकरण बन और बिगड़ रहे हैं, यही प्रत्याशी के भाग्य का फैसला करेंगे।

बीते दो चुनावों से इंटुक की भूमिका असरहीन होने और परिसीमन में आए बदलाव की वजह से भिलाई क्षेत्र की परिस्थिति व समीकरण में जबरदस्त बदलाव आ गया है। वोटरों की संख्या पिछले चुनाव में 2 लाख 43 हजार के आसपास थी, जो घटकर अब 1 लाख 61 हजार हो गई है। निश्चित रूप से इससे प्रत्याशियों को मिलने वाले वोटों में परिवर्तन होगा। यदि प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी ने बराबरी का मुकाबला किया, तो लीड का अंतर बेहद कम रहने के आसार हैं। पिछली लीड करीब 15 हजार की थी। इंटुक के समर्थन के कारण इस सीट पर कांग्रेस का हौसला बुलंद रहता था, अब इंटुक दो खेमों में बँट चुका है और किसी पार्टी विशेष पर असर डालने की स्थिति में नहीं है।

भिलाई में पहले चरण में 14 नवंबर को मतदान होना है। कम समय ने भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशियों की बैचेनी बढ़ा दी है। वे खुलकर किसी इलाके को भरपूर समय नहीं दे पा रहे हैं। 8 या 9 नवंबर से बड़ी चुनावी सभाओं का दौर शुरू हो जाएगा, इस कारण दोनों पार्टियॉं इससे पहले जनसंपर्क का दौर खत्म करना चाहती हैं। फिलहाल पांडेय पैदल चलकर घर-घर दस्तक दे रहे हैं, जबकि कुरैशी टोलियों के साथ निकल कर अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। सांसद ताराचंद साहू की एक रैली से भी इस बार दुर्ग का राजनीतिक समीकरण काफी हद तक प्रभावित हो सकता है। माना जा रहा है कि साहू की रैली का लाभ पांडेय को मिल सकता है।

पांडेय के लिए वृहद पेयजल योजना, हुडको की रजिस्ट्री, भिलाई में तकनीकी विवि की स्थापना सहित विकास के तमाम विषय प्रचार का हिस्सा बने हुए हैं। छावनी क्षेत्र में बड़ी संख्या में मजदूर हैं, जिनके लिए उन्होंने स्वास्थ्य योजना लागू करवाई थी। भाजपा को विकास के रास्ते वोट मिलने की उम्मीद है। पार्टी के पास पर्याप्त प्रचार सामग्री है, जिसका नजारा इलाके में दिख रहा है। कांग्रेस कार्यकर्ता छोटी सभाओं और प्रचार के जरिए मतदाता तक पहुँचने की कोशिश कर रहे थे। भिलाई नगर निगम में भाजपा पार्षदों का बहुमत है, इसका लाभ पांडेय को मिल सकता है।

दूसरी ओर कांग्रेस प्रत्याशी कुरैशी भाजपा शासनकाल में हुए विकास कार्यों का श्रेय खुद ले रहे हैं। मतदाताओं के बीच जाकर वे तर्क दे रहे हैं कि जितने काम हुए, वे कांग्रेस के तीन साल के शासन में शुरू किए जा चुके थे। भाजपा ने केवल अंजाम तक पहुँचाया है। पांडेय ने जब- जब उपलब्धियों का बखान किया, कुरैशी कटाक्ष करने से नहीं चूके। कुरैशी भिलाई के महापौर चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी थे और कांग्रेस से ही बगावत कर बृजमोहन सिंह भी प्रत्याशी बन गए थे। इस समीकरण में उलझ कर कुरैशी हार गए थे। विधानसभा चुनाव के लिए टिकट तय किया गया, तब भी उन्हें पार्टी के भीतर संघर्ष करना पड़ा।

संगठन के जिला अध्यक्ष घनाराम साहू खुद गुंडरदेही क्षेत्र से प्रत्याशी हैं, इस वजह से कुरैशी को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ रही है। भिलाई क्षेत्र में बीएसपी की आवास लीज योजना का असर दिख सकता है। मतदाता भाजपा व कांग्रेस से नाराज तो है ही, दूसरे दलों पर भी नाराजगी दिखा सकता है। इसकी छठे चरण की योजना लटकी हुई है। इस्पात मंत्री रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा से धीरेंद्र प्रताप सिंह चुनाव मैदान में हैं। अब ये इस मसले को कैसे सँभालते हैं, यह उनकी रणनीति पर निर्भर है। हुडको में बड़ी संख्या में बीएसपी के पूर्व कर्मियों का निवास है। यहाँ का वोट भी निश्चित रूप से परिणाम को प्रभावित करेगा। बसपा से रामलाल गौतम प्रत्याशी हैं। क्षेत्र में तीसरी शक्ति के रूप में उभर रही इन पार्टियों का फिलहाल प्रभावी असर नजर नहीं आ रहा है।

दोनों के गढ़ खिसके : इलाके में परिवर्तन की दृष्टि से देखें तो मुस्लिम वोटों का गढ़ माने जाने वाला फरीदनगर अब वैशालीनगर विधानसभा क्षेत्र में जुड़ गया है। इस क्षेत्र से कुरैशी का नाता था। इसी तरह पांडेय का समर्थक इलाका माने जाने वाला केम्प क्षेत्र भी वैशालीनगर में जा चुका है। दोनों प्रत्याशियों को इसकी भरपाई की चिंता है। पुरेना क्षेत्र से पिछले चुनाव में भाजपा को 3 हजार और कांग्रेस को 700 वोट मिले थे। यह क्षेत्र भी कटकर दुर्ग ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में जुड़ गया है।

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