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बिहार की शिक्षा पद्धति पर उठते सवाल

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-राकेश कुमार 
बिहार में भी इन दिनों बोर्ड की परीक्षा चल रही है। इस परीक्षा में बैठने वाले छात्र का भविष्य इस बात पर टिका है कि वो इस परीक्षा को अच्छे अंक से पास करें तभी उन्हें किसी अच्छे कॉलेज या कोर्स में दाखिला मिल सकता है। लेकिन, इन दिनों बोर्ड परीक्षा में हो रही नकल ने न सिर्फ नकलची छात्रों बल्कि राज्य के प्रतिभाशाली छात्रों की योग्यता को भी संदेह के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है। हालांकि इस बीच, नकल के मामले में 760 छात्रों को निष्कासित कर दिया है, जबकि 8 पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया गया है। 
 
बोर्ड परीक्षा में चल रही खुलेआम नकल से प्रदेश की शिक्षा प्रणाली पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया है। अब तो लोग सवाल उठाने लगे हैं कि क्या बिहार में लोग ऐसे ही आईएस और आईपीएस बनते हैं? संभवत: 2004 के बाद इतने बड़े पैमाने पर खुलेआम धांधली की रिपोर्ट पहली बार आई है। 2004 में सात दिनों के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने परीक्षा के समय सभी परीक्षा केन्द्रों की वीडियोग्राफी कराने, शिक्षकों को छात्रों के साथ कड़ाई से पेश आने तथा भारी संख्या में पुलिस फोर्स तैनान करने का आदेश दिया था। इसके बाद से ही राज्य में धांधली ना के बराबर हो गई थी। इस बर्ष बोर्ड परीक्षा में हो रही धांधली ने राज्य सरकार की कलई खोल दी है।
 
इन सभी प्रश्नों से बिहारवासियों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। ऊपर से बिहार के शिक्षा मंत्री का यह बेतुका बयान कि सरकार इसे नहीं रोक सकती, हम पुलिस को अपने भाई-बहनों पर तो लाठी नहीं चलवा सकते ना? 
 
जिम्मेदार कौन? : बिहार बोर्ड परीक्षा में हो रही नकल के लिए जिम्मेदार केवल सरकार ही नहीं, बल्कि अभिभावक भी हैं। सभी का सपना होता है कि उनका बच्चा हर परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करे। यह सपना कोई बुरा नहीं है। इस परीक्षा में तो छात्रों के अभिभावक ही नकल करा रहे हैं। छात्र भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं। हालांकि पैसे देने के आरोप तो पहले भी लगते रहे हैं। 
 
शिक्षा प्रणाली  : बिहार में 2005 में सरकार बदली, राजनीति का स्तर बदला, लोगों की सोच बदली मगर जो नहीं बदल सकी वो है हमारी शिक्षा पद्धति। बिहार बोर्ड की परीक्षाएं अब सीबीएसई पैटर्न पर होने लगी है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2005 में नियुक्ति किए गए हाई स्कूल शिक्षकों में से 90 फीसदी शिक्षकों को अपने विषय का ज्ञान ही नहीं है। वहीं पहले से कार्यरत स्कूल शिक्षकों सहित हाई स्कूल के शिक्षकों में से 50 फीसदी शिक्षक सिफारिश पर जॉब कर रहे हैं। दूसरी ओर कुछ अच्छे शिक्षक हैं, वो पढ़ाना नहीं चाहते। ऐसे में वहां कोचिंग संस्थानों की भरमार लगी है, जिनका उद्देश्य सिर्फ पैसा कमाना रह गया है। 
 
बिहार के बारे 2005 से पूर्व कहा जाता था कि यहां कोई भी पैसे व नकल से पास हो सकता है। मगर जैसे ही 2005 में जदयू की पूर्ण सरकार सत्ता में आई, परीक्षा का स्तर बदल गया। 2012 तक तो सबकुछ ठीक चला। मगर जैसे ही बिहार की राजनीति में अस्थिरता आई, वहां की शिक्षा व्यवस्था भी बेकार होती चली गई। शिक्षक अच्छे वेतन की मांग को लेकर धरना करने लगे, परीक्षा केन्द्रों की वीडियोग्राफी करने वाले भी अब केवल नाम के लिए वीडियोग्राफी करने लगे, स्कूल प्रबंधन भी ढीला पड़ गया।  ऐसे में परीक्षा को कदाचार मुक्त बनाने का सरकार का सपना महज सपना बनकर रह गया। आज जो बोर्ड परीक्षा की स्थित है, उसका कारण भी यही है। 
 
अब हम कैसे अपने राज्य सरकार, शिक्षक और अपने अभिभावक पर विश्वास दिलायें कि परीक्षा में दिए जा रहे उनके अकारण सहयोग से हमारे ऊपर उसका क्या प्रभाव पड़ने वाला है? हम कैसे अपने माता-पिता के सपनों को पूरा कर पाएंगे, उसका जवाब हमारे पास भी नहीं है और ना हमारे अभिभावक के पास।  बिहार की शिक्षण प्रणाली पर लगने वाला यह दाग समय रहते नहीं धोया गया तो वो दिन दूर नहीं जब अच्छे संस्थानों में बिहारियों के प्रवेश पर रोक लग जाए और वहां की सरकार की थू-थू हो।
 
 
 

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