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बुजुर्गों को समझें और पूरी तरह देखभाल करें...

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-साधना अग्रवाल
 
नई दिल्ली। हमारे परिजनों के जीवन संध्याकाल में अचानक धीरे-धीरे ऐसा होने लगे कि हमारा बेहद अपना धीरे-धीरे कुछ पलों के लिए ही भले हमें पहचान नहीं पाए, पचासों बरस पहले गुजर चुके अपने मां-बाप की बातें वे ऐसे करे जैसे वो उनके अपने इर्दगिर्द ही हो, लेकिन आज अपने आसपास बैठे अपनों की पहचान गडड-मडड कर दे, खाना कब खाया भूल ही जाए, सब बेहद तकलीफदेह...उनकी बेबसी देख आप कुछ कर नहीं पाए सिर्फ हौले से उन्हें दुलारकर उनकी वो बातें सुनें, उनकी सेवा एक बच्चे की तरह करे। 
 
कुछ समय पूर्व तक बेहद सतर्क और समझदार रहे एक बुजुर्ग को जब अल्जाइमर रोग के शुरुआती लक्षणों से घिरा देखा तो मन बहुत गीला-सा हो गया, लेकिन धीरे-धीरे इस रोग के बारे में जानने-समझने के दौरान, बेबसी के उन लम्हों में कुछ उजली-सी रोशनी भी नजर आने लगीं जी हां...यह कोई ऐसी बीमारी नहीं जो पूरी तरह से लाइलाज है। भले ही अभी इसका पूरा इलाज नहीं ढूंढा गया हो लेकिन अगर चिकित्सक की सलाह से चला जाए और उन बुजुर्गों को प्रेम से समझकर उनकी पूरी देखभाल की जाए तो इस बीमारी को बढ़ने से कुछ हद तक रोका जा सकता है। 
 
अल्जाइमर रोग दिमाग का एक ऐसा रोग है जहां दिमाग से संचालित क्रियाएं धीरे-धीरे अनियंत्रित होने लगती हैं। यह एक तरह की भूलने की बीमारी है, जो सामान्यत: बुजुर्गों में होती है। यह धीरे-धीरे बढ़ती है। अमूमन 60 वर्ष की उम्र के आसपास होने वाली इस बीमारी का फिलहाल कोई स्थाई इलाज नहीं है। हालांकि बीमारी के शुरुआती दौर में नियमित जांच और इलाज से इस पर काबू पाया जा सकता है। 
 
इस बीमारी से पीड़ित मरीज सामान रखकर भूल जाते हैं। यही नहीं, वह लोगों के नाम, पता या नंबर, खाना, अपना ही घर, दैनिक कार्य, बैंक संबंधी कार्य, नित्य क्रिया तक भूलने लगता है, लेकिन अगर चिकित्सक की सलाह से चला जाए और उन बुजुर्गों को प्रेम से समझकर उनकी पूरी देखभाल की जाए तो इस बीमारी को बढ़ने से कुछ हद तक रोका जा सकता है, हालांकि इस रोग पर पूरी तरह से काबू पाने के लिए अभी दवा विकसित नहीं हो पाई है लेकिन इस क्षेत्र में चिकित्सक काफी शोध में जुटे हैं और उम्मीद है इसका इलाज भी ढूंढ ही लिया जाएगा। इसका नाम अलोइस अल्जाइमर पर रखा गया है, जिन्होंने सबसे पहले इसकी जानकारी दी थी। 
 
चिकित्सकों के अनुसार अल्जाइमर बीमारी, डिमेंशिया रोग का एक प्रमुख प्रकार है। डिमेंशिया के अनेक प्रकार होते हैं। इसलिए इसे अल्जाइमर डिमेंशिया भी कहा जाता है। जानेमाने न्यूरो सर्जन डॉक्‍टर एलएन अग्रवाल के अनुसार अल्जाइमर डिमेंशिया प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था में होने वाला एक ऐसा रोग है, जिसमें मरीज की स्मरणशक्ति धीरे-धीरे कमजोर होती जाती है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे यह रोग भी बढ़ता जाता है। याददाश्त क्षीण होने के अलावा रोगी की सोच-समझ, भाषा और व्यवहार पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसके अलावा लोगों के नाम, पता या नंबर, खाना, अपना ही घर, दैनिक कार्य, बैंक संबंधी कार्य, नित्यक्रिया भूलने जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं। 
 
मरीज चिड़चिड़ा, शक्की हो जाता है, अचानक रोने लगना, भाषा व बातचीत प्रभावित होना अल्ज़ाइमर के लक्षण हैं, लेकिन राहत की बात है कि इस रोग पर अंकुश लगाने के बारे में काफी शोध कार्य हो रहे हैं, उम्मीद है जल्द ही इसका पूरी तरह से निदान ढूंढ ही लिया जाएगा, लेकिन अब भी चिकित्सा कर्मी और रोगी के परिजन मिलकर रोग के फैलाव को कुछ सीमा तक अंकुश लगा सकता है। 
 
इस बीमारी के इलाज में चिकित्सा कर्मियों के साथ मरीज के परिजनों की बहुत अहम भूमिका है, वह रोगी की प्रेम से अगर तीमारदारी करेंगे, उसके साथ प्रेम से रहेंगे तो दवा के साथ प्रेम की डबल डोज से इस बीमारी को तेजी से बढ़ने से रोका जा सकेगा, अभी भी ऐसी काफी दवाएं ऐसी हैं जिससे इस रोक पर इन तमाम उपायों के साथ एक सीमा तक अंकुश लग सकता है। एक अध्ययन से यह भी पता चला है कि समूह में संगीत थैरेपी से अल्जाइमर मरीजों को बेहतर संपर्क स्थापित करने में मदद मिलती है।  
 
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, तीन में से एक अल्जाइमर रोग को रोका जा सकता है। शोध के अनुसार व्यायाम ना करना, तनाव, धूम्रपान और अशिक्षा इसके मुख्य कारण हैं। आंकड़ों के अनुसार भारत में तकरीबन 35-40 लाख लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं, आंकड़ों की मानें तो पूरे विश्व में 80 वर्ष से अधिक उम्र के 10 में से एक व्यक्ति और 90 वर्ष से अधिक उम्र में 4 में से एक व्यक्ति आल्ज़ाइमर की बीमारी से ग्रसित होते हैं।
 
चिकित्सकों के अनुसार, इस रोग के उपचार के लिए रोगी की दिनचर्या को सहज व नियमित बनाएं, समय पर भोजन, नाश्ता, बटन रहित कुर्ता-पजामा, सुरक्षा आदि पर विशेष ध्यान दें। रोगी का कमरा खुला व हवादार हो। रोगी की आवश्यकता की वस्तुएं एक स्थान पर रखें। जानेमाने स्नायु रोग विशेषज्ञ डॉक्‍टर डीसी जैन के अनुसार मरीजों के इलाज के लिए कुछ ऐसी दवाएं उपलब्ध हैं, जिनके सेवन से ऐसे रोगियों की याददाश्त और उनकी सूझबूझ में सुधार होता है। ये दवाएं रोगी के लक्षणों की तीव्रता को कम करने या दूर करने में सहायक होती हैं। इन दवाओं से मस्तिष्क के रसायनों के स्तर में बदलाव आता है और यह बदलाव मरीज की मानसिक स्थिति में सुधार लाता है। 
 
उन्होंने कहा कि अक्सर मरीज के परिजन इस रोग के लक्षणों को वृद्धावस्था की स्वाभाविक परिस्थितियां मानकर उपचार नहीं करवाते। इस कारण से इस रोग का उपचार असाध्य हो जाता है। इसके अलावा इस रोग में मरीजों के परिजनों की काउंसलिंग की भी जरूरत पड़ती है, ताकि वे मरीज की ठीक तरह से देखभाल कर सकें, उन्होंने कहा कि इस रोग के रोगियों के परिजनों को विशेष तौर पर उन्हें खुश रखना चाहिए, उन्हें सुखद स्मृतियों को याद दिलाना चाहिए, उनके मन को समझना, उन्हें स्नेह देना, इन्हें खुशी देता है, इससे बीमारी के बढ़ने की समय सीमा को कुछ हद तक आगे बढ़ाया जा सकता है। (वीएनआई)

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