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हिन्द महासागर के द्वीप राष्ट्रों का महत्व

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शरद सिंगी

हिन्द महासागर का विस्तार भारत के पश्चिम में अफ्रीका तक है तो पूर्व में इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया की सीमाओं तक। इस क्षेत्र में द्वीप तो अनेक हैं किन्तु राष्ट्र केवल छह द्वीप हैं।  इनमें मेडागास्कर और श्रीलंका बड़े द्वीप हैं वहीं मालदीव, मॉरीशस, सेशल्स और कोमोरोस छोटे द्वीप समूह।
श्रीलंका और मालदीव को छोड़ दें तो शेष चारों राष्ट्र अफ्रीका का हिस्सा माने जाते हैं। रोचक तथ्य यह है कि भारत से मॉरीशस और सेशल्स की दूरी अधिक होने के बावजूद भी उनके संबंध भारत से अधिक नजदीकी रहे हैं बनिस्बत अफ्रीका से। मार्च में प्रधानमंत्री ने तीन द्वीपों की यात्रा की थी इनमे से श्रीलंका की चर्चा हम पिछले अंक में कर चुके हैं। आरम्भ में  चार द्वीपों की यात्रा का कार्यक्रम था किन्तु मालदीव की यात्रा निरस्त कर दी गई। 
 
मालदीव, ब्रिटिश शासन से 1965 में आजाद हुआ था और भारत ने ही सर्वप्रथम मालदीव को सम्प्रभु राष्ट्र की मान्यता  दी थी। मालदीव के विकास में भारत का भरपूर आर्थिक सहयोग रहा है। यहाँ अब्दुल गयूम तीस वर्षों तक राष्ट्रपति रहे। सन 1988 में श्रीलंकाई आतंकवादियों द्वारा गयूम सरकार का तख्ता पलट करने की कोशिश हुई थी जो भारतीय कमांडो की सहायता से नाकाम कर दी गई थी।
 
अब्दुल गयूम का रवैया शुरू से ही तानाशाहीपूर्ण था किन्तु सन् 2008 तक आते आते जनता का सब्र टूटा तो गयूम को राजनैतिक सुधारों की घोषणा करनी पड़ी।  राष्ट्रपति चुनावों में बहुदलीय प्रणाली लागू की गई और तब गयूम अगला ही चुनाव  विपक्षी नेता मोहम्मद नशीद से हार गए। मोहम्मद नशीद चुनाव जीतकर राष्ट्रपति तो बन गए किन्तु लोकतंत्र ज्यादा दिन चल न सका और सन् 2012 तक आते आते नशीद सरकार को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया गया। मार्च के आरम्भ  में मोहम्मद नशीद को तेरह वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई और वह भी आतंक विरोधी कानून के तहत।
 
विशषज्ञों का मानना है कि यह सरकार फिर तानाशाही की ओर अग्रसर है और विपक्ष को कुचला जा रहा है। मोहम्मद नशीद को जेल में डालने का अर्थ विपक्ष को समाप्त करना और 2018 के चुनावों में मोहम्मद नशीद को चुनाव लड़ने का अवसर न देना है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय और मानव अधिकार हनन संस्थाओं ने भी नई सरकार के इस कदम की भर्त्सना की है। अभी तक भारत के हर प्रधानमंत्री ने मालदीव की यात्रा की है और उसी कड़ी में मोदी जी की भी यात्रा होनी थी, किन्तु मोदीजी की यह यात्रा भी इसी वजह से निरस्त कर दी गई थी। 
 
सेशल्स दूसरा ऐसा अफ्रीकी द्वीप राष्ट्र है जिसके साथ भारत के संबंध मधुर हैं। उसे भारत से न केवल आर्थिक क्षेत्र में सहयोग प्राप्त है बल्कि अनेक अन्य क्षेत्रों में भारत सहयोग दे रहा है जिसमें रक्षा भी शामिल है। भारत के कई अधिकारी सैन्य व अन्य क्षेत्रों में प्रशिक्षण देने के लिए वहां तैनात हैं। इतने नज़दीकी संबंध होने के बावजूद भी इंदिरा गांधी के बाद पिछले चौंतीस वर्षों में भारत के किसी प्रधानमंत्री की पहली सेशल्स यात्रा थी। सेशल्स में चार महत्वपूर्ण समझौते हुए जिसमे तटवर्तीय सुरक्षा समझौता भी शामिल है। 
 
सेशल्स से प्रधानमंत्री पहुंचे मॉरीशस। मॉरीशस अपनी आज़ादी से पहले कई हाथों में से गुजरा जिनमे प्रमुख थे पुर्तगाली, डच (नीदरलैंड), फ्रांसीसी और अंत में इंग्लैंड। शिवसागर रामगुलाम के नेतृत्व में इंग्लैंड के विरुद्ध आजादी की लड़ाई लड़ी गयी और सन् 1968 में इंग्लैंड से आजादी पाई। बिहारी मूल एवं भारतीय संस्कृति के पक्षधर सर शिवसागर रामगुलाम मॉरीशस के राष्ट्रपिता माने जाते हैं।
 
बाद में सर अनिरुद्ध जगन्नाथ और विपक्ष के नेता शिवसागर रामगुलाम के पुत्र नवीन रामगुलाम प्रधानमंत्री बनते रहे। यहाँ भी लोकतंत्र मज़बूत नहीं है और नवीन रामगुलाम विभिन्न आरोपों के साथ इस समय जेल में हैं।  प्रधानमंत्री ने 85 वर्षीय अनिरुद्ध जगन्नाथ के साथ पांच समझौते किए और मॉरीशस की आधारभूत परियोजनाओं के लिए पचास करोड़ के रियायती ऋण का प्रस्ताव भी रखा। भारत, मॉरीशस में पेट्रोलियम उत्पादों के भण्डारण के लिए गोदाम बनाने का इच्छुक है। मॉरीशस की रोचक बात यह है कि उसके पास सेना नहीं है। पुलिस ही सेना का काम करती है जैसे तटवर्ती क्षेत्रों की रखवाली करना आदि और यहाँ भी भारत उन्हें प्रशिक्षण देता है।   
 
यह उल्लेखनीय बात है कि राष्ट्र छोटा हो या बड़ा, संयुक्त राष्ट्र संघ में उसके वोट का महत्व एक समान होता है। भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कई ऐसे देशों की मित्रता काम आती है जो लगातार अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भारत का साथ देते रहे हैं। मसलन भारत की संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा समिति में स्थाई सदस्यता का मसला हो या कश्मीर पर पड़ोसी देश का प्रलाप हो, भारत को मित्र देशों का समर्थन चाहिए और ये देश हमारा लगातार समर्थन करते रहे हैं। इस दृष्टि से इनके छोटे आकार से इनकी महत्ता कम नहीं होती।
 
भारत के दक्षिण में हिंद महासागर में एक बहुत छोटा सा द्वीप है डिएगो गार्सिया। यह इंग्लैंड के कब्जे में है और इसे अमेरिका ने वायु और नौ सेना का एक बहुत बड़ा अड्डा बना रखा है। उधर चीन भी हिन्द महासागर में अपना ऐसा ही कोई अड्डा बनाने की ताक में है अतः यह जरुरी है की भारत ऐसी किसी मंशा को सफल न होने दे और अपने आस पास के द्वीपों पर अपनी (मित्रतापूर्ण) पकड़ बनाए रखे। उक्त वर्णित सन्दर्भों में प्रधानमंत्री की हाल की यात्रा का आकलन किया जाना चाहिए। इस लेखक के मत से पड़ोसी राष्ट्रों की ये यात्राएं दूरगामी कूटनीतिक परिणाम देने वाली होंगी इसमें संदेह नहीं है। 

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