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इंदौर के लिए समय दें शिवराज : सुमित्रा महाजन

सुमित्रा महाजन से जयदीप कर्णिक की बातचीत

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जयदीप कर्णिक

इंदौर से आठवीं बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहीं श्रीमती सुमित्रा महाजन अपनी जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं। यह भी माना जा रहा है यह उनका आखिरी लोकसभचुनाव भी हसकतहैताई चाहती हैं कि प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान को इंदौर के लिए और अधिक समय देना चाहिए ताकि सपनों का यह शहर अपनी असली शक्ल अख्तियार कर सके।
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पूर्व केन्द्रीय मंत्री और इंदौर लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी सुमित्रा महाजन ने वेबदुनिया के संपादक जयदीप कर्णिक से विस्तृत साक्षात्कार में हर मुद्दे पर चर्चा की। आखिर 16वीं लोकसभा के चुनाव क्यों अलग हैं? इस पर महाजन कहती हैं कि अभी तक आमतौर पर संसद में व्यक्ति भेजने के लिए चुनाव होता था, लेकिन इस बार भाजपा के पीएम उम्मीदवारी नरेन्द्र मोदी ताकतवर शख्सियत बनकर उभरे हैं। हालांकि भाजपा अटलजी को सामने रखकर भी पहले चुनाव लड़ चुकी है। वे कहती हैं कि पहले भी मुख्‍यमंत्री प्रोजेक्ट करके चुनाव लड़े जाते रहे हैं। इस संदर्भ में उनका इशारा भाजपा के बुजुर्ग नेता लालकृष्ण आडवाणी की तरफ था। वे प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह को निशाने पर लेते हुए कहती हैं कि एक ऐसा प्रधानमंत्री हमें मिलता है जो बोलता ही नहीं है। ऐसा लगता है प्रधानमंत्री कोई है, चला कोई और रहा है। ‍जिस तरह का अंडर करंट आपातकाल के दौरान दिखाई दे रहा है, वही स्थितियां आज भी निर्मित हो रही हैं। चारों ओर परिवर्तन की लहर है।

मोदी की तुलना में भाजपा के पिछड़ने के सवाल पर सुमित्रा जी कहती हैं कि आखिर नरेन्द्र मोदी भी तो भाजपा का ही चेहरा हैं। हालांकि केन्द्र सरकार के खिलाफ नकारात्मक माहौल के लिए वे उसे ही जिम्मेदार ठहराती हैं। मोदी की प्रशंसा करते हुए वे कहती हैं कि उन्होंने (मोदी ने) गुजरात को सुदृढ़ बनाने की बात सोची और वे गुजरात ऊंचाई पर ले गए। वहां विकास का स्तर आंखों से दिखाई देता है। नर्मदा का जल उन्होंने कच्छ के रण तक पहुंचा दिया।

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जब बात मध्यप्रदेश की आती है, यहां के लोगों के विस्थापन की आती है तो वे कहती हैं कि पहली बात तो नर्मदा का उपयोग हम सही तरीके से नहीं कर पाए, क्योंकि उस समय दस साल तक कांग्रेस की सरकार थी। दिग्विजयसिंह जैसे व्यक्ति ने कोई प्रयास नहीं किए। बसाहट को लेकर गुजरात सरकार भी मदद के लिए सतत तैयार थी, मगर इनका संवाद ही नहीं था। यह कहीं ना कहीं कांग्रेस की कमजोरी है कि हम नर्मदा का सही उपयोग नहीं कर पाए।

अब तो दोनों तरफ (मध्यप्रदेश और गुजरात) भाजपा की सरकार है? वे कहती हैं कि उसका असर भी दिख रहा है। नर्मदा के बांध का काम भी जल्दी पूरा हो रहा है, साथ ही साथ नर्मदा को हम दूसरी नदियों में मिला रहे हैं। उसमें तो पर्यावरण को कुछ धोखा नहीं है। नर्मदा-क्षिप्रा का मिलन हो चुका है। आप देखो तो पूरा क्षिप्रा का एरिया पानी से तरबतर हो गया है।

जब बात साबरमती की आई तो महाजन ने कहा कि नर्मदा के जल का उपयोग कर गुजरात ने सूखी पड़ी साबरमती को भर दिया और कच्छ के रण तक पानी की समस्या दूर हो गई। ये सब उन्होंने किया। बड़े बांधों के विरोध पर वे कहती हैं कि जो बांध विरोधी हैं, उनसे कई बार मैंने चर्चा की थी। मैं कहती थी कि या तो एक ऐसा नियम बनाओ कि बड़े बांध होना ही नहीं चाहिए हिन्दुस्तान में, लेकिन फिर भी बनते तो जा रहे हैं। आंदोलनकारी बसाहट की भी बात करते हैं, बड़े बांध का विरोध भी करते हैं। दोनों चीजें तो नहीं हो सकती न। काम अधूरा रह जाता है, हमने मध्यप्रदेश में यह भुगता है। इसस विकास अवरुद्ध होता है।

जब उनसे पूछा गया कि हमारी मेधाजी से भी बात हुई। उनका कहना है कि हम विकास को नहीं रोकते, बल्कि जो बसाहट के दावे किए गए या सिंचाई के माध्यम से हरियाली लाने के दावे किए गए, वे दावे दरअसल सच्चे नहीं हैं? इस पर सुमित्रा जी कहती हैं कि एक बात समझ लो जमीन जितनी है, उतनी ही है। मैं बहुत कठोर सत्य बोल रही हूं आप पृथ्वी को तो बड़ा नहीं कर सकते हैं। मेरी मेधाजी से भी एक ही बार बात हुई। मैंने उनसे कहा कि पहले तो तय करो कि हम क्या चाहते हैं। बसाहट चाहते हैं तो पूरी लड़ाई बसाहट के लिए हो। फिर बड़े बांध का विरोध छोड़ो। उन्होंने मप्र का विकास रोका।

कौन चला रहा है केन्द्र की सरकार...पढ़ें अगले पेज पर...


यदि नरेन्द्र मोदी की सरकार आती है तो क्या वे रिमोट (संघ) से संचालित नहीं होंगे? वे कहती हैं नहीं, बात केवल रिमोट कंट्रोल की नहीं है। सांगठनिक निर्णय और केवल व्यक्ति का रिमोट कंट्रोल दोनों में बहुत फर्क है। भाजपा में निर्णय सांगठनिक होते हैं। संसदीय दल बैठता है, उसमें कई बातें होती है। उसमें कई बार विवाद भी सामने आता है।

वे कहती हैं कि नागपुर में कभी रिमोट कंट्रोल नहीं रहा। एक बात मैं साफ करना चाहूंगी कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक सांस्कृतिक संगठन है। उनका कहना केवल इतना ही है कि भारत के संस्कार, भारत की एकता और एक सांगठनिक शक्ति, इसे आप कभी नकारो मत। आप इसको साथ लेकर भारत को परम वैभव पर पहुंचाओ। बात केवल इतनी है। इसमें प्रशासनिक निर्णय कहीं आहत नहीं होते हैं।

बुजुर्ग नेताओं की उपेक्षा पर महाजन कहती हैं कि इसको हम उपेक्षा नहीं कह सकते हैं। कुछ संगठन की बातें होती हैं, लेकिन किसी व्यक्ति को आगे रखकर हमने प्रादेशिक चुनाव लड़ना प्रारंभ किया, उस समय मैंने भी कहीं कहा था कि ऐसा मत करो। प्रदेश में नेता तय होने दो सरकार के बाद, मगर उस समय वह आवश्यकता महसूस की गई। हमने प्रदेशों में मुख्यमंत्री तय करके चुनाव लड़ना प्रारंभ किया। यह भाजपा नवीन परिपाटी आई, उस समय मोदीजी नहीं थे। उस समय जो भी संगठन के प्रमुख थे, उन्होंने भी यह बातें तय की हैं। उस समय भी विरोध के स्वर थे।

उन्होंने कहा कि हमारी ही पार्टी में एक समय था कि नानाजी देशमुख जो हमारे बहुत ही वरिष्ठ रहे, उन्होंने अपने खुद के लिए स्वयं एक निर्णय लिया और बोला कि 60 के बाद रिटायरमेंट होना चाहिए। उसे माना नहीं गया, लेकिन उन्होंने ले लिया। हालांकि वे कहती हैं कि नई पीढ़ी आगे आती है तो यह बुजुर्गों का अपमान नहीं है। बात केवल इतनी है कि भाजपा में संसदीय दल निर्णय लेता है।

वे कहती हैं कि भाजपा में कांग्रेस जैसी स्थिति नहीं है, जहां सब ‍फैसले हाईकमान के हाथ से होते हैं। संसद की गरिमा बनाए रखने के प्रश्न पर वे कहती हैं कि पूरे राजनीतिक परिदृश्य में ही गिरावट आ रही है। इस संसद ने वह दृश्य भी देखा कि अटलजी ने कहा था कि मैं एक वोट नहीं खरीदूंगा और न ही मुझे मिल रहा है और सरकार गिरती हो तो गिर जाए। मैं अभी इस्तीफा देता हूं, इस ऊंचाई को भी हमने देखा है। इंदिराजी को दुर्गास्वरूप कहने के सवाल पर वे सोनिया पर ही वार कर देती हैं, वे कहती हैं कि यह भी मैंने देखा कि संसद की एक नेता अपने सांसदों को हंगामे के लिए उकसाती हैं, जबकि विपक्ष में बैठे आडवाणी जी कहते है चुप रहो, शांत रहो।

और इंदौर के बारे में क्या बोलीं सुमित्रा महाजन... पढ़ें अगले पेज पर...


इंदौर को औद्योगिक राजधानी माना जाता है। यहां पर लोगों का एक बड़ा दर्द यह है कि सबसे ज्यादा राजस्व हम देते हैं, उसके बावजूद इंदौर का विकास, जिसे नियोजित विकास कहा जाए, नहीं हुआ। आपकी बातों में भी वह दर्द नजर आता है, ऐसी क्या कमी रह गई कि इंदौर हिन्दुस्तान के नक्शे पर वह शहर नहीं बन पाया, जिसमें वह कूवत है? इस पर सुमित्रा महाजन कहती हैं कि मैं ऐसा भी नहीं कहूंगी कि हिन्दुस्तान के नक्शे पर इंदौर वह शहर नहीं बन पाया। ठीक है, मास्टर प्लान का मेरा दर्द था। मास्टर प्लान का जोनल प्लानिंग होना, उसके अनुसार तुरंत कार्रवाई शुरू होनी चाहिए। पुलिस का एक मास्टर प्लान बनना चाहिए, क्योंकि शहर जब बढ़ता है तो पुलिस के लिए भी एक मास्टर प्लान होना चाहिए, यह भी मेरी कल्पना है।

मैंने मुख्यमंत्री को भी लिखा था कि आप इंदौर के कुछ प्रमुख लोगों के साथ बैठकर तय करें कि शहर का विकास कैसे हो। मुख्‍यमंत्री द्वारा इंदौर को सपनों का शहर बताने और उसके लिए समय न निकालने के प्रश्न पर ताई कहती हैं कि हां, यह समय उन्होंने जरूर नहीं दिया। इसके लिए मैंने उन्हें कठोर पत्र भी लिखे हैं, जो सार्वजनिक भी हुए।

वे कहती हैं कि मैंने इंदौर के लिए लड़ाई लड़ी है। इसी का परिणाम है कि यहां दो-दो बार इन्वेस्टर्स समिट हुई। ऐसा नहीं है कि मुख्‍यमंत्री ने मेरी बात नहीं सुनी। कागज पर समझौते ज्यादा हुए और अमल कम हुआ? इस पर महाजन कहती हैं कि मैंने इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने का अपना काम किया। उद्योगपति यह नहीं कह सकते कि हम इंदौर आएं कैसे। एक सांसद के नाते मैंने तो अपना काम पूरा किया। इंटरनेशनल एयरपोर्ट हो, कार्गो सर्विस हो या रेलवे की सुविधा या फिर रोड की, हमने उपलब्ध कराईं। मुख्यमंत्री ने भी प्रयास किए हैं। हालांकि एक बात यह हो सकती है कि प्रशासनिक व्यवस्था सबकी एक जैसी नहीं हो सकती। हो सकता है गुजरात का एक अलग मॉडल हो।

भूमाफिया से जुड़े सवाल पर ताई कहती हैं कि आपने भी देखा होगा कि भू‍माफियाओं के खिलाफ भी लड़ाई मैंने लड़ी है और इसके कारण गरीबों को प्लॉट भी मिले। वे कहती हैं कि मुझे भी सांसद होने के नाते आईडीए से एक प्लॉट मिल रहा था, लेकिन वह मैंने लिया नहीं। मैंने कहा आपके ‍लीज रेंट ही इतने ज्यादा हैं कि कोई मतलब नहीं रह जाता। यह कुछ पॉलिसी मेटर्स हैं, उनमें बदलाव होना चाहिए।

हालांकि वे मानती हैं कि स्थिति इतनी खराब नहीं है। मैं ऐसा नहीं मानती कि नाली या गटर की समस्या है। शहर में काफी काम हुए हैं। मगर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के चलते लोग इंदौर की तरफ ही आकर्षित होते हैं। वोटर ही पांच लाख बढ़ गए हैं, ऐसे में आप अनुमान लगा सकते हैं कि शहर कितना बढ़ा होगा। इसे लेकर कमजोरियां तो दिखती ही रहेंगी।

इंदौर में कमिश्नरी के मुद्दे पर सुमित्रा महाजन कहती हैं कि इस बारे में मैंने कहा है कि इस पर विचार होना चाहिए। मगर उसके पहले जो प्लस-माइनस है, उस पर भी विचार होना चाहिए। इंदौर में राजनीतिक दखल की बात वे सिरे से नकार देती हैं। केन्द्र में मोदी सरकार आने पर क्या इंदौर की समस्याएं दूर हो जाएंगी? महाजन कहती हैं कि काम तो राज्य और केन्द्र सरकार दोनों को मिलकर ही करना है। इंदौर की तीन रेलवे की योजनाएं अटकी पड़ी हैं। योजनाओं के लिए पैसा नहीं मिला है। इन योजनाओं के लिए पर्याप्त पैसा मिलना चाहिए, ताकि वे पूरी हों। इसका असर पूरे प्रदेश पर पड़ेगा। इंटरनेशनल फ्लाइट के मामले में सुधार की जरूरत है। राष्ट्रीय राजमार्ग की स्थिति सुधरेगी तो इंदौर का भी सुधार होगा। मेरी प्राथमिकता हमेशा की तरह है। सुविधाओं के साथ ही इंदौर का जो मास्टर प्लान बना है उस पर ठीक तरह से अमल होना चाहिए।

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