यूपी और बिहार में कई सियासी पार्टियां ऐसी हैं, जिनका एक ही एजेंडा होता है और वो एजेंडा यह कि ऐसे उत्साहियों को ढूंढा जाए जिन्हें चुनाव लड़ाने के नाम पर मूंडा जा सके। मुमकिन है कुछ में ईमानदारी भी हो। लखनऊ से कुल 29 उम्मीदवार मैदान में हैं। 16 लोग किसी न किसी पार्टी से खड़े हुए हैं जबकि 13 निर्दलीय हैं। कई लोग तो इसीलिए ऐसी पार्टियों से चुनाव लड़ बैठते हैं कि ये पेशेवर लोग हैं, पैसा लेंगे, मगर नामांकन वगैरह सब ठीक से करवा देंगे।
इन पार्टियों के नाम भी मज़ेदार हैं और इनकी कल्पना शक्ति के परिचायक भी। कुछ नामों पर आप भी गौर फरमाइए- मानवतावादी समाज पार्टी...भारतीय नव क्रांति पार्टी, स्वराज्य पार्टी...सम्यक परिवर्तन पार्टी...राष्ठ्रीय क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी...नेशनल यूथ पार्टी...उत्तर प्रदेश रिपब्लिकन पार्टी...भारतीय शक्ति चेतना पार्टी...बहुजन क्रांति पार्टी (मार्क्सवादी अंबेडकरवादी)...नागरिक एकता पार्टी...।
अब इनके एजेंडे पर भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है - एक उम्मीदवार कहते हैं कि मैं सरकारी विभागों और सड़क बनाने में होने वाले भ्रष्टाचार को खासतौर पर खत्म करना चाहता हूं। दूसरे सज्जन की नजर केवल सांसद निधि पर है। वे कहते हैं कि मैं सांसद निधि से गरीब लोगों की मदद करना चाहता हूं (और मुझसे गरीब भला कौन होगा?)।
एक अन्य उम्मीदवार जी का वादा है कि वे स्वच्छ वातारवरण बनाएंगे और गलत काम नहीं होने देंगे। दूसरे उम्मीदवार जी को खुन्नस है प्रापर्टी डीलरों से। कहते हैं मैं जीता तो ये प्रापर्टी डीलर नहीं दिखेंगे। एक महिला उम्मीदवार शहर को नशे से मुक्त करना चाहती हैं (लगता है घर में कामयाबी नहीं मिली)। अजीब अजीब नाम, अजीब अजीब लोग, अजीब-अजीब वादे। दुनिया इसीलिए तो मजेदार है कि इसमें सभी तरह के लोग हैं।