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हवन से पाएँ सेहत की नियामत

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योगेश मिश्र
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कल तक यज्ञ-हवन को आध्यात्मिक बताकर तमाम नास्तिकों द्वारा सिरे से खारिज कर देने वालों को अब स्वस्थ जीवन और प्रदूषणमुक्त वातावरण के लिए यज्ञ और हवन की शरण में जाना ही पड़ेगा। यह अब केवल ऋग्वेद में उल्लिखित प्राचीन सत्य ही नहीं है बल्कि आधुनिक वैज्ञानिकों ने इसे 21वीं शताब्दी में परिक्षण की कसौटी पर कस कर फायदेमंद साबित कर दिखाया है।

एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने इस सत्य के पक्ष में वर्ष 2007 में तथ्य और प्रमाण जुटाए पर अग्निहोत्र के नाम पर बीते छह दशक से आहुतियों के असर का प्रयोग अनवरत जारी है। दूसरी ओर सिद्धार्थनगर जनपद में वेद विद्यापीठ चला रहे तेजमणि त्रिपाठी एक दशक से लोगों को यज्ञ और हवन से लाभ तो दिला ही रहे हैं साथ ही साथ आहुतियों और हवन के असर का अहसास कराने में जुटे हुए हैं ।

लखनऊ स्थित राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में काफी काम किया है । हरिद्वार के गुरुकुल काँगड़ी फार्मेसी के सहयोग से उन्होंने बीते साल हरिद्वार में हवन कार्य की सहायता से यह निष्कर्ष जुटाने में कामयाबी पाई है कि वायुमंडल में व्याप्त 94 फीसदी जीवाणुओं को सिर्फ हवन द्वारा नष्ट किया जा सकता है। इतना ही नहीं एक बार हवन करने के बाद तीस दिन तक उसका असर रहता है।

एनबीआरआई के वैज्ञानिक चंद्रशेखर नौटियाल कहते हैं, 'हवन के माध्यम से बीमारियों से छुटकारा पाने का जिक्र ऋग्वेद में भी है। करीब दस हजार साल पहले से भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी हवन की परंपरा चली आ रही है जिसके माध्यम से वातावरण को प्रदूषण मुक्त बनाया जा सकता है।'

एनबीआरआई के दो अन्य वैज्ञानिक पुनीत सिंह चौहान और यशवंत लक्ष्मण नेने ने भी डॉ. नौटियाल के साथ हवन के स्वास्थ्य और वातावरण पर प्रभाव पर शोध किया है। इनके लंबे-चौड़े शोध प्रबंध का छह पेज का सार यह बताता है कि हवन में बेल, नीम और आम की लकड़ी, पलाश का पौधा, कलीगंज, देवदार की जड़, गूलर की छाल और पत्ती, पीपल की छाल और तना, बेर, आम की पत्ती और तना, चंदन की लकड़ी, तिल, जामुन की कोमल पत्ती, अश्वगंधा की जड़, तमाल यानि कपूर, लौंग, चावल, जौ, ब्राम्ही, मुलैठी की जड़, बहेड़ा का फल और हर्रे के साथ-साथ तमाम औषधीय और सुगंधित वनस्पतियों को डालकर बंद कमरे में हवन करने से 94 फीसदी जीवाणु मर जाते हैं।

एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने हवन का प्रभाव भले ही दो वर्ष पहले साबित करने में कामयाबी पाई हो लेकिन तकरीबन छह दशकों से अधिक समय से महाराष्ट्र के शिवपुर जिले के वेद विज्ञान अनुसंधान संस्थान के लोग अग्निहोत्र पात्र में हवन को वातावरण को प्रदूषणमुक्त बनाने के साथ-साथ अच्छी सेहत के लिए जरूरी बताते चले आ रहे हैं।

संस्थान के निदेशक डा. पुरुषोत्तम राजिम वाले ने विशेष बातचीत में कहा, 'साठ-सत्तर देशों में हम लोग हवन के फायदे का प्रचार कर चुके हैं। परमसदगुरु श्री गजानन महाराज ने विश्व भर में हवन का महत्व बताने के लिए यह अभियान शुरू किया था लेकिन अब माइक्रोबायलॉजी से जुड़े तमाम वैज्ञानिक ही नहीं कृषि वैज्ञानिक भी अपने शोधों के माध्यम से यह साबित करने में कामयाब हुए हैं कि हवन से सेहत और वातावरण के साथ-साथ कृषि की उपज को भी बढ़ाया जा सकता है।'

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माइक्रोबायलॉजी के वैज्ञानिक डॉ. मोनकर ने हवन के प्रभावों के अध्ययन के बाद यह साबित करने में कामयाबी पाई है कि हवन के बाद जो वातावरण निर्मित होता है उसमें विषैले जीवाणु बहुगुणित नहीं हो पाते और बेअसर हो जाते हैं। एसटाईपी नामक प्राणघातक बैक्टीरिया हवन के बाद के वातावरण में सक्रिय ही नहीं रह पाता।

इतना ही नहीं, वेद विज्ञान अनुसंधान संस्थान के लोगों की मानें तो दिल्ली में रक्षा मंत्रालय के शोध एवं विकास विंग के कर्नल गोनोचा और डॉ. सेलवराज ने भी साबित किया है कि हवन में शामिल लोगों के नशे की लत भी दूर की जा सकती है। मन-मस्तिष्क में सकारात्मक भाव और विचारों का प्रादुर्भाव होता है। पूना विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान के वैज्ञानिक डॉ. भुजबल का कहना है, 'अग्निहोत्र देने से जैविक खेती की उपज बढ़ने के भी प्रमाण मिले हैं।

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