मोबाइल से होगा पैथोलॉजी टेस्ट!

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तकनीक ने मानव समाज को सभ्यता के कई पायदान ऊपर पहुँचा दिया है। इस बात का एक उदाहरण है कि अब मोबाइल फोन भी पैथोलॉजी लैब की तरह काम करेंगे! अब तक तो इस टेस्ट के लिए आदमी को लैब तक चलकर जाना पड़ता था, पर अब यह आपके मोबाइल स्क्रीन पर ही उपलब्ध हो जाएगी। है न चौंकाने वाली बात!

इस तकनीक के आविष्कार का प्रमुख कारण सुदूर इलाकों के निवासियों को पैथोलॉजी लैब की सुविधा प्रदान करना है। दूर स्थित गाँवों तथा दुर्गम इलाकों में रह रहे लोगों को ऐसा टेस्ट करवाने के लिए लंबा सफर तय करना पड़ता है। यहाँ तक कि विकसित देशों में भी ऐसे दूरस्थ इलाके हैं जहाँ पैथोलॉजी लैब की सुविधा नहीं है, लेकिन मोबाइल फोन लगभग हर जगह पहुँच चुके हैं।

अब बात इस नई तकनीक की। इसमें मोबाइल फोन को एक माइक्रोस्कोप से जोड़ दिया जाता है। माइक्रोस्कोप के जरिए मोबाइल संबंधित नमूने की तस्वीर लेकर उसे मल्टीमीडिया मैसेज (एमएमएस) के रूप में लैब तक भेज देता है। यह सामान्य माइक्रोस्कोप न होकर फ्लूओरेसेंस माइक्रोस्कोप की तरह काम करता है।

फ्लूओरेसेंस माइक्रोस्कोप का उपयोग कोशिका विभाजन और तंत्रिका तंत्र पर नजर रखने के लिए होता है। इसे रोग के कीटाणुओं को देखने के लिए भी काम में लाया जाता है। हालाँकि इसकी कीमत बहुत ज्यादा होती है पर मोबाइल के साथ जोड़ने वाले माइक्रोस्कोप की कीमत काफी कम होगी।

ऐसे काम करता है मोबाइल
ट्यूबनुमा माइक्रोस्कोप के एक सिरे पर रखी स्लाइड के ऊपर जाँच किया जाने वाला नमूना रखा जाता है। इस ट्यूब का दूसरा सिरा मोबाइल से जुड़ा होता है। स्लाइड पर रखे नमूने की तस्वीर मोबाइल के कैमरे से ले ली जाती है और संबंधित लैब में एमएमएस तकनीक के द्वारा भेज दी जाती है। लैब में उसका परीक्षण कर परिणाम दे दिए जाते हैं।

आम तौर पर फ्लुओरेसेंस माइक्रोस्कोप आकार बहुत बड़ा होने के कारण केवल लैब में ही उपयोग किया जा सकता है पर इस नए यंत्र में छोटा माइक्रोस्कोप उपयोग किया जा रहा है जो आसानी से मोबाइल फोन के साथ फिट हो जाता है। इसे 'सेलस्कोप' नाम दिया गया। मोबाइल को इस प्रयोग में आजमाने का एकमात्र कारण है इसकी गाँव-गाँव में पहुँच।

इससे ज्यादा से ज्यादा लोग इसका लाभ उठा सकते हैं। आज दूरसंचार की पहुँच शहरों के ड्रॉइंग रूम से लेकर गाँव के चबूतरे तक हो गई है। इस सुविधा के शुरू हो जाने से दूरस्थ स्थानों में रहने वाले लोग भी इससे लाभान्वित होंगे।

कुछ मुश्किलें बाकी
इस प्रयोग पर अभी भी काम जारी है। यह काम अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में डैन फ्लैचर के निर्देशन में चल रहा है। इस यंत्र में उपयोगी बदलाव कर आकार छोटा करने की कोशिश की जा रही है ताकि यह व्यावसायिक रूप से भी सफल हो। इसमें तकनीकी कठिनाइयाँ तो कम हैं पर परिचालन संबंधी समस्याएँ अधिक हैं। इनमें दो प्रमुख हैं। पहला, इसमें जो चित्र लिए जाते हैं उन्हें इतना छोटा बनाना कि भेजने में आसानी हो और दूसरा, इसे यूजर फ्रेंडली बनाना ताकि कोई भी इसका इस्तेमाल आसानी से कर सके।

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