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शहरयार : एक लाजवाब शायर का जाना

जीना भी एक कारे-जुनूं है इस दुनिया के बीच

हमें फॉलो करें शहरयार : एक लाजवाब शायर का जाना
जावेद आलम
ND
नई हवा के झोंकों की तरह जब आए थे शहरयार तो किसी को अहसास नहीं था कि जाते-जाते वे यूं छा जाएंगे, किसी बरगद के पेड़ की तरह। जिसकी छांव में उदासी ही उदासी ही बिखरी नजर आती है। शहरयार ने जिंदगी को एक जुदा अंदाज में देखा और उसे, उससे भी जुदा व जदीद लहजे में पेश करने में कामयाब रहे। यह जदीद लहजा ही शहरयार की पहचान बना।

इस लहजे में उन्होंने नज्में भी कहीं और बे-इंतिहा खूबसूरत गजलें भी। अब वे हमारे बीच नहीं हैं। सोमवार को शहरयार ने सफरे-आखिरत इख्तियार किया। अब बाकी रहेगी उनकी शायरी और उस शायरी के चाहने वाले। यूं चर्चा में वे आए फिल्म उमराव जान की गजलें मशहूर होने के बाद।

इसे हमारे दौर की विडंबना ही कहना चाहिए कि एक बड़े शायर को शोहरत फिल्मों में इस्तेमाल की गई उनकी गजलों से मिली। जबकि वे गजलें एक अरसे से लिख रहे थे। बहरहाल अच्छा शायर इस शोहरत व नाम की परवाह करता तो शायद कुछ और करता शायरी न करता। शहरयार ने शायरी की और हमारे दौर के दर्द, उदासी, खालीपन समेत अनेक चीजों को उसमें पिरोते गए :

चमन दर चमन पायमाली रहे
हवा तेरा दामन न खाली रहे।
जहां मुअतरिफ हो तेरे कहर का
अबद तक तेरी बेमिसाली रहे।

(पायमाली-बर्बाद हो जाना, मुअतरिफ-प्रशंसक, अबद-अनंत)

यह पूरी गजल कुदरत के गुस्से का बयान करती है और शहरयार अपनी जुबां से कहते हैं कि जैसी जिंदगी हम जीने लगे हैं मुमकिन है उसका अंजाम कुछ ऐसा हो। वैसे इसका आखिरी शेर अलग मिजाज का है :

न मैली हो मेंहदी कभी हाथ की
सदा आंख काजल से काली रहे।

मुहब्बत के ऐसे खूबसूरत अशआर भी शहरयार के यहां मिलते हैं:

तू ही मुझसे अजनबी बनकर मिला हर मोड़ पर
मेरी आंखों में तो था रंगे शनासाई बहुत।

शेर उन्होंने किसी भी मूड के कहे हों उनमें गहरी उदासी का हिस्सा जरूर होता है। देखिए रात का जिक्र वे किस दर्द में डूबकर करते हैं :

पहले नहाई ओस में, फिर आंसुओं में रात
यूं बूंद-बूंद उतरी हमारे घरों में रात।
आंखों को सबकी नींद भी दी, ख्वाब भी दिए
हमको शुमार करती रही दुश्मनों में रात।

रात की ही तरह दीगर अल्फाज को भी नए अर्थ पहनाते हुए शहरयार ने दुनिया को हर कोण, हर जाविए से परखा और फिर बहुत खूबसूरती से हमारे सामने पेश कर दिया। क्या है यह संसार और कैसा है, इस बाबत उनका चिंतन कभी थमा नहीं। तभी तो वे पूछते हैं :

बारहा पूछना चाहा, कभी हिम्मत न हुई
दोस्तों रास तुम्हें आई यह दुनिया कैसे

अपने साथी असअद बदायूंनी की मौत पर जो नज्म उन्होंने लिखी थी उसका एक मिस्रा है :

जीना भी एक कारे-जुनूं है इस दुनिया के बीच
ये दीवानगी का काम करके वे जा चुके। अब उनकी शायरी है और यादें...

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