अनंत मिश्र
जीवन की सांध्यबेला में
जिन्दगी का हिसाब लगाते हुए
कुछ याद नहीं आता ऐसा
जो दर्ज करने लायक हो,
किसी के काम आया कि नहीं
वह तो वे ही जानते होंगे
पर अपने लिए जुगाड़ने में इज्जत की रोटी
पूरी जिन्दगी खर्च हो गई
चाहता तो यही था
कि सभी को इज्जत की रोटी
जिन्दगी भर मिले
और मरने पर श्रद्धांजलि
पर करना मेरे वश में न था।
अब अपने आसपास देखता हूँ
किसी को दोष दिए बिना
तो इतना भर कह सकता हूँ कि
कोई बहुत अच्छा न लगा ।
यहाँ तक कि जिससे प्रेम किया वह भी
जिससे खिन्न हुआ वह भी
दुश्मनी तो किसी से नहीं पाली
क्योंकि दुश्मन मेरा कोई स्थायी रूप से बना ही नहीं
सभी मित्र थे
यहाँ तक कि पेड़ और पौधे भी
जिनसे कोई बातचीत भाषा में न कर सका।
जिन जीवों की जाने-अनजाने
मुझसे हत्या हो गई
उनसे क्षमा माँगने के अतिरिक्त
मैं क्या कर सकता हूँ?
कुछ चाहिए नहीं
बस यह दुनिया
जितनी भी अच्छी हो सके, हो जाए
तो चैन से मैं मर सकूँगा
इसके लिए ईश्वर से प्रार्थना,
यदि वह सचमुच हो।
साभार : दस्तावेज