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पर्यटकों की पसंद बना सतरंगी राजस्थान

प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक आते हैं राजस्थान

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दुनिया भर के पर्यटकों के लिए राजस्थान की सतरंगी संस्कृति, बहुरंगी आभा तथा स्थापत्य एवं शिल्प का ऐसा सम्मोहन है कि उसके आकर्षण में बंधकर देश-विदेश के लाखों पर्यटक प्रतिवर्ष राजस्थान की सैर करने आते हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर बिल क्लिंटन ने जब पहली बार भारत का दौरा किया था, तो उनके दौरे में राजस्थान का दौरा भी विशेष रूप से रखा गया था। राजस्थान की खूबियों को उन्होंने अपने जेहन में हमेशा-हमेशा के लिए संजोया था।

राजस्थान की सैर करने आए पर्यटकों का मानना है कि दुनिया के तमाम देशों से भारत आने वाले पर्यटकों में से अधिकांश राजस्थान आते ही आते हैं और यहां की सांस्कृतिक विरासत का अकूत खजाना देखकर अभिभूत हो जाते है। सरकार के प्रयास से राज्य में सुनियोजित एवं योजनाबद्ध प्रयासों से पर्यटन विकास के क्षेत्र में एक नई इबादत लिखी गई है।

राजस्थान मात्र रेगिस्तानी प्रदेश नहीं है बल्कि यहां स्थापत्य एवं शिल्प का ऐसा आकर्षण है कि पर्यटक उसे देखने से खुद को रोक नहीं पाते। स्थापत्य की पहेलियों जैसी यहां की हवेलियां, इन्द्रधनुषी सम्मोहन उत्पत्न करने वाली इन हवेलियों के आकर्षक भित्तिचित्र, अरावली के शिखरों पर सजग प्रहरी से खडे़ तथा साहस और बलिदान की रोचक गाथाओं को अपने आंचल में समेटे दुर्भेद्य दुर्ग।

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बहते झरने, गहरी झीलें और जीवनदायिनी नदियां पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने में कोई कोर-कसर नहीं रखती हैं। कहीं पथरीले पठार तो कहीं दूर तक पसरी रूपहली रेत, कहीं सघन वन प्रांतों में स्वच्छंद विचरण करते वन्य जीव और कलरव करते पक्षी तो कहीं उल्लास से बहती नहरें, पर्यटकों के चित्त को मोहित करने से कतई नहीं चूकते हैं।

राजस्थानवासियों के अनुसार राज्य का जितना वैविध्यपूर्ण प्राकृतिक परिवेश है उतना ही सजीला छबीला है राजस्थान का सांस्कृतिक वैभव। समृद्ध लोक संस्कृति के परिचायक तीज-त्योहार तथा उमंग और उल्लास के प्रतीक यहां के मेले। आस्था के केन्द्र कलात्मक मंदिर और स्थापत्य के अजूबे से खडे़ वैभवशाली राजप्रसाद। यहां के लोकनृत्यों की नूतन छटा तो और भी निराली है। कहीं घूमर की अदाएं तो कहीं फागुन की मस्ती में ‘चंग’ की थाप पर थिरकते पांव। चकरी और भवाई नृत्य के रोमांचक करतब तो कहीं गैर और गींदड नृत्य की धमक। विद्युत गति के साथ तेराताली और कालबेलिया नृत्य तो कहीं नट और बहुरूपिया कला का कमाल।

रंग-रंगीलों राजस्थान के लोक नृत्यों की तरह वाद्यों का आकर्षण भी कम नहीं है। कहीं अलगोजे की मधुर ताल तो कहीं सुरणाई, सारंगी सुरिंदा, कमाचया, खडताल और मोरचंग जैसे अनूठे वाद्यों की मन मोहन स्वर लहरियां। आदिवासी लोक वाद्यों की तो बात ही निराली है। इतना ही नहीं यहां के चटकीले और रंगीले परिधानों का आकर्षण भी कुछ कम नहीं है।

कहीं लहरदार लहरिया तो कहीं बंधेज और चूड़ियों की चमक। छींटदार घाघरे को घेरघुमेर, तो कहीं पीला पोमचा के पल्ले की लटक। जरी और जरदोजी का कमाल तो कहीं कोटा-किनारी का जाल। पेचदार पगडी़ और छैल-छबीली जूतियां। कुल मिलाकर जीवन के विविध रंगों का जीवंत प्रदेश राजस्थान पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है।

प्रदेशवासियों का मानना है कि राजस्थान यूं तो सांस्कृतिक धरोहरों का अकूत खजाना है किन्तु उनमें से कुछ धरोहर तो ऐसी हैं जो विश्व धरोहर बन गई है। गुलाबी नगरी जयपुर के जंतर-मंतर को हाल ही में यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में सम्मिलित किया गया है। करीब तीन सौ वर्ष पूर्व रचा खगोल विद्या का यह अनूठा इतिहास के विश्व धरोहर बन जाने से न केवल इस पुरास्थल को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है, बल्कि पर्यटकों की आवक में भी वृद्धि हुई है।

राज्य के कुछ किलों चित्तौडगढ़, गागरोण, रणथौर, कुशलगढ़ और आमेर के अलावा किराडू मंदिर समूह तथा ऐतिहासिक बावडि़यों को भी यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में सम्मिलित कराने के प्रयास किए जा रहे हैं। यह तो सर्वविदित है कि राजस्थान कालबेलिया नृत्य को यूनेस्को की सूची में विरासत के रूप में घोषित किया जा चुका है। (भाषा)

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