गाय बचेगी तो मनुष्य बचेगा - महात्मा गाँधी

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अखिलेश बिल्लौरे

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने कहा था कि- 'गाय बचेगी तो मनुष्य बचेगा। गाय नष्ट होगी तो उसके साथ, हमारी सभ्यता और अहिंसा प्रधान संस्कृति भी नष्ट हो जाएगी और पीछे रह जाएँगे भूखे-नंगे हड्डी के ढाँचे वाले मनुष्य।’

बड़े दु:ख का विषय है कि आज मनुष्य क्रूर होते जा रहा है। करुणा के क्रंदन को ठोकर मारकर पर्यावरण के साथ खिलवाड़ कर संस्कारहीन पीढ़ी बनाने पर हम आमादा हो गए हैं। महात्मा गाँधी की दुहाई देकर देश चलाने वाले उन्हीं के आदर्शों का खून कर रहे हैं। जिन गाँधीजी की तर्ज पर जगह-जगह आंदोलन होते हैं उनमें आम जनता का, जीव दया का हिस्सा कहीं नजर नहीं आता है।

गाँधीजी ने गौमाता को पूजने का आदर्श प्रस्तुत किया था लेकिन इसके विपरीत गौमाता को कत्लखाने भेजा जा रहा है। करोड़ों की कमाई हो रही है। ये उनके सच्चे अनुयायी नहीं हो सकते। सच्चे अनुयायी तो बेचारे न जाने देश के कितने ही हिस्सों में गाँधीजी को याद कर आँसू बहा रहे होंगे।

गाँधीजी ने देश को अँगरेजों से मुक्त करने के लिए अपने आपको तबाह कर दिया, अपने परिवार को स्वाहा कर दिया। न बच्चों की तरफ देखा नही पत्नी की तरफ। केवल देश ही उनके लिए सबकुछ था। देश में शांति रहे, प्रेम रहे, भाईचारा रहे, हिंसा न हो, यही उनका संदेश था। लेकिन आज क्या गाँधीजी जैसी जीवटता कोई दिखा पा रहा है। क्या किसी में इतना साहस है कि मानव हित में, प्राणी हित में उनके जैसा आंदोलन छेड़े? मनुष्य को छोड़ हम प्राणी जगत का उदाहरण लें। पशु-पक्षी सभ्यता की अवहेलना से असमय ही मृत्यु का शिकार हो रहे हैं। इन्हें मृत्यु का ग्रास बनाने वाला और कोई नहीं सभ्यता का रखवाला स्वयं मानव ही है।

यह कैसी विडंबना है कि प्रकृति में रहने वाले पशु-पक्षियों के साथ आदिकाल में फूल-पत्ती भक्षण करने वाला मानव मांस खाने लगा है? जिन प्राणियों की सहायता वह जीवन चलाने में लेता था, उन्हें ही उदरपूर्ति का पदार्थ बनाने लगा है। मांस खाने की वजह से मानव का दिमाग और उसकी मन:स्थिति विकृत हो गई। वह तामसी हो गया है। इस परिवर्तन के कारण सभ्यता के नष्ट होने का खतरा बढ़ गया है।

गाय को माँ और कामधेनु मानने वाला भारतवासी इनको क्रूर तरीकों से वाहनों में लादकर कत्लखानों में भेजने का धंधा कर रहा है। इस प्रकार की दानवी मानसिकता में उसकी संवेदना कहीं गुम हो गई है। स्वार्थी मनुष्य न जाने क्या करेगा? जिस गौवंश के पूजन को आदर्श बनाकर भगवान श्रीकृष्ण ने राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने के लिए गौवंश की महत्ता का प्रतिपादन किया। भगवान शिव ने गले में सर्प को धारण कर विषधर प्राणी तक को स्ने ह क ा संदे श दिय ा और बैल को अपने नजदीक स्थान देकर सम्मान प्रदान किया। उसी गौवंश की दयनीय दशा अहिंसक समाज में नासू र है ।

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