'कयामत' की निशानी है 'बदलता मौसम'
- संदीप सिसोदिया
, मंगलवार, 3 जुलाई 2012 (12:58 IST)
जुलाई महीने में भी उत्तर भारत में गरमी का कहर जारी है। पूर्वोत्तर भारत में भारी बरसात से आई बाढ़ तो बीती सर्दियों में यूरोप की भयानक शीत लहर। बदलता मौसम लगातार इशारा कर रहा है कि धरती के पर्यावरण में अनापेक्षित परिवर्तन हो रहे हैं।
पिछले 10 वर्षों के आंकड़े देखे तो ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे जो बताते हैं कि पृथ्वी की जलवायु बदल रही है। ग्लोबल वॉर्मिंग से बदलता मौसम चक्र पृथ्वी की वनस्पति और प्राणी जगत पर तो असर डाल ही रहा है मानव गतिविधियां भी इससे प्रभावित हो रही हैं। हर साल बदलता मौसम तो 'कयामत या प्रलय' के केवल शुरुआती संकेत ही दे रहा है। मौसम के बदलते मिजाज से ग्लोबल वॉर्मिंग का असर लगभग सभी महाद्वीपों पर साफ देखा जा रहा है।
हालांकि ग्लोबल वॉर्मिंग से सिकुड़ते हिमक्षेत्र की खबरों के बीच पिछले दिनों हिमालय के हिमनदों के बढ़ते फैलाव की खबरें भी सामने आई थीं। लेकिन यह खुशी 5 मई 2012 को दु:स्वप्न में बदल गई जब नेपाल के खूबसूरत पर्यटन स्थल पोखरा के पास स्थित हिमनद से बनी प्राकृतिक झील में दरार पड़ गई और करोड़ों गैलन बर्फीले पानी और मिट्टी के सैलाब ने देखते ही देखते इस खूबसूरत पर्यटक स्थल पर बने रिसॉर्ट सहित कई घर, खेत-खलिहानों को तबाह कर दिया।
अचानक आई इस बाढ़ की चपेट में आने से कई विदेशी पर्यटकों सहित 13 लोग तथा कई दर्जन मवेशी मारे गए। बिना किसी बरसात के तटबंध टूटने या मीलों दूर पहाड़ों में हुई बरसात से अचानक आई ऐसी बाढ़ को फ्लैश फ्लड या आकस्मिक बाढ़ कहा जाता है। इसका एक और कारण होता है अत्यधिक तापमान के चलते ग्लेशियरों का पानी पहाड़ की ढ़लानों पर बनी झीलों में भरने लगता और पानी के बढ़ते दबाव से तटबंध टूट जाता है और बाढ़ आ जाती है।