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पवित्र रमजान महीने में सैकड़ों बेकसूर लोगों का खून बहा

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खुद को खुदा की राह में समर्पित कर देने का प्रतीक पाक महीना 'माह-ए-रमजान' न सिर्फ रहमतों और बरकतों की बारिश का वकफा है, बल्कि समूची मानव जाति को प्रेम, भाईचारे और इंसानियत का संदेश भी देता है। इस पाक महीने में अल्लाह अपने बंदों पर रहमतों का खजाना लुटाता है और भूखे-प्यासे रहकर खुदा की इबादत करने वालों के गुनाह माफ हो जाते हैं। रमजान में दोजख यानी नरक के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और जन्नत की राह खुल जाती है लेकिन इस बार के इस 'पाक महीने' में दहशतगर्दों ने जितना खून बहाया, उतना तो किसी भी रमजान में नहीं बहा...इंसानियत के दुश्मन वहशियों ने सोमवार को भी धमाके किए और पवित्र मदीना में पैगंबर की मस्जिद को भी नहीं बख्‍शा.. 
 
रमजान के पवित्र महीने में जो बेकसूर मारे गए और खून का जो सैलाब बहा, उसने यह सवाल खड़े कर दिए हैं कि इन दहशतगर्दों का यह कौनसा धर्म है, जो इंसानों की जान लेने पर आमादा है? खूनी दरिदों ने तुर्की से लेकर मदीना तक धमाके किए और सैकड़ों मासूमों की जान ले ली। इस बार का रमजान महीना सैकड़ों परिवारों के दिलों में कालिख पोत गया... 
 
इस्तांबुल से हुई खूनी शुरुआत... 
रमजान महीने में खून की होली खेलने की शुरुआत तुर्की के सबसे खूबसूरत शहर माने जाने वाले इस्तांबुल से हुई। 29 जून का वह मनहूस दिन था, जब अतातुर्क इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर फिदायीन हमले में 41 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 230 लोग घायल हुए थे। एयरपोर्ट पर खूंखार आतंकी संगठन आईएस के तीन आत्मघाती हमलावरों ने धमाका करके खुद को उड़ा लिया था। इस धमाके में 41 लोग घटनास्थल पर ही मारे गए थे। जनवरी 2016 से लेकर 29 जून 2016 तक तुर्की  6 बड़े आतंकी हमले झेल चुका है, जिसमें आम लोगों के साथ-साथ सैनिकों को भी निशाना बनाया गया।
29 जून के दिन रात करीब 10 बजे एयरपोर्ट टर्मिनल के प्रवेश द्वार के निकट हमलावरों ने सुरक्षाकर्मियों पर गोलीबारी शुरू कर दी। इससे दोनों पक्षों के बीच गोलीबारी शुरू हो गई और उसके बाद एक-एक कर आत्‍मघाती हमलावरों ने विस्‍फोट में खुद को उड़ा दिया। सोशल मीडिया पर दो बम धमाके का वीडियो क्लिप हमले की भयावहता को प्रकट कर रहा था। एक क्लिप में टर्मिनल बिल्डिंग के प्रवेश द्वार के निकट एक बड़ा आग का गोला उठते हुए देखा किया जबकि दूसरे वीडियो में एक काले कपड़े पहने हमलावर को बिल्डिंग के भीतर भागने की कोशिश करते देखा गया लेकिन उससे पहले ही सुरक्षाकर्मियों की गोलियों के चलते वह गिर पड़ा और उसने खुद को उड़ा दिया। 
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ब्रुसेल्स एयरपोर्ट पर भी धमाके की गूंज... 
पिछले एक साल में तुर्की में इस तरह के कई आत्‍मघाती बम विस्‍फोट हुए हैं। इनमें कुर्द विद्रोहियों और आतंकी संगठन आईएसआईएस का हाथ होने की आशंका जाहिर की जाती रही है। आईएसआईएस पर इसलिए भी शक पुख्ता हुआ, क्‍योंकि इसी साल मार्च में ब्रुसेल्‍स एयरपोर्ट और शहर के मेट्रो स्‍टेशन पर भी कमोबेश उसने इसी तरह के हमले किए थे, जिनमें 32 लोगों की जानें गई थीं।

बांग्लादेश की राजधानी ढाका में 20 लोगों की गला रेतकर की हत्‍या...  
1 जुलाई को जब रात का अधियारा अपने बांग्लादेश की राजधानी ढाका के उच्च सुरक्षा वाले राजनयिक क्षेत्र के एक लोकप्रिय रेस्तरां होले आर्टिजन बेकरी को अपने आगोश में ले रहा था, तब रेस्तरां के भीतर लोग अपनी खुशियां बांटने में जुटे थे लेकिन उन्हें नहीं मालूम था कि 6 आतंकी नापाक इरादों के साथ भीतर आ रहे हैं और पल भर में उनकी जिंदगी मौत की नींद में सोने जा रही है। 
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कथित रूप से पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के इशारों पर रेस्तरां में घुसे इन 6 दहशतगर्दों ने गोलियां बरसानी शुरु कर दीं और कई लोगों को बंधक बना लिया। लंबे समय तक शूटआउट चलता रहा और रात बीतने के बाद जब सुबह का उजाला हुआ, तब इन हमलावरों ने सिर्फ उन लोगों को बाहर जाने दिया, जिन्होंने कुरान की आयतें सुनाईं...जो लोग दूसरे धर्म के थे, उनका गला बुरी तरह से रेतकर मौत के घाट उतारा गया। इस हमले में 20 निर्दोष लोगों की जानें गईं, जिनमें विदेशी भी थे। यह कैसा धर्म है? यह कैसा इंसाफ है? क्या इस्लाम इस तरह किसी को मारने की इजाजत देता है? 
 
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भी कहा कि यह बहुत भयावह कृत्य है। ये लोग किस तरह के मुसलमान हैं? उनका कोई धर्म नहीं है। आतंकवादियों की मुस्लिम पहचान को लेकर सवाल करते हुए हसीना ने कहा कि उन्होंने रमजान की तरावीह (खास नमाज़) के असल संदेश का उल्लंघन किया और लोगों की हत्या की है। जिस तरह से उन्होंने लोगों की हत्या की वह बर्दाश्त करने योग्य नहीं है। उनका कोई धर्म नहीं है..आतंकवाद ही उनका धर्म है।

बगदाद की जमीन 147 बेकसूरों के खून से हो गई लाल... 
बांग्लादेश की राजधानी ढाका का खूनी मंजर लोगों की आंखों से ओझल भी नहीं हुआ था कि 3 जुलाई को एक बार फिर ईरान की राजधानी बगदाद की जमीन आतंकियों के नापाक मंसूबों से लाल हो गई... यहां पर 3 जुलाई की रात को दो बम विस्फोट हुए जिसमें 147 लोग मारे गए।
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अभी तक 35 लोगों का कोई अता-पता नहीं चल सका है। मृतकों की संख्या में वृद्धि मलबे से और शव निकलने तथा विस्फोट से घायल हुए लोगों की मौत के कारण हुई है। इन 147 लोगों की मौत का सेहरा भी आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट ने अपने सिर बांधा है। 

आतंकियों ने पैगंबर की मस्जिद को भी नहीं बक्शा... 
आतंकी मंसूबो ने 4 जुलाई के दिन अपने इरादे एक बार फिर जगजाहिर कर दिए और सऊदी अरब के कातिफ और मदीना में दो बड़े धमाके कर डाले। मदीना में पैगंबर की मस्जिद के पास एक कार में हमलावर ने खुद को बम से उड़ा लिया। धमाका इतना भीषण हुआ कि आसपास मौजूद लोगों के चीथड़े उड़ गए। हमले में कई लोगों के मारे जाने की आशंका है। हमला स्थानीय समय के अनुसार 4 जुलाई की शाम 7 बजे हुआ। इस वक्त मगरिब की नमाज होती है। इसके चलते काफी लोग आसपास मौजूद थे। आत्मघाती हमले से वहां भगदड़ मच गई।
 
रमजान में मारे गए ज्यादातर मुसलमान... 
पहले इस्तांबुल के हवाई अड्डे पर, फिर ढाका के एक रेस्तरां में और उसके बाद बगदाद के बाजार में आतंकी हमले हुए हैं। ये सभी दुनिया के अलग-अलग कोनों में जरूर हैं लेकिन इन तीनों में एक आम बात है। सभी हमलों की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली है। हालांकि बांग्लादेश ने ढाका हमले के पीछे इस्लामिक स्टेट का हाथ होने की बात को खारिज कर दिया है लेकिन सभी हमले रमजान के महीने में किए गए और सभी में ज्यादातर जानें मुसलमानों की ही गईं हैं, सिवाय ढाका के अपवाद को छोड़कर...इन दहशतगर्दों ने रमज़ान के पवित्र माह को मासूम लोगों के खून से रंग दिया।  

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