एक, दो, तीन और चार
गर्मी में तपता बाजार
दो, तीन, चार और पांच
धूप का चश्मा काला कांच।
तीन, चार, पांच और छै
लू का भंगड़ा नाच है।
चार कहे लो छाता साथ
सूरज का देखो उत्पात।
पांच, छै, सात और आठ
हरे वृक्ष अब हो गए काठ।
छ:, सात, आठ और नौ
सारी ठण्डक हो गई खो।
सात, आठ, नौ और दस
राहत देता है खस-खस।
आठ, नौ, दस और ग्यारा
दिन लगता जैसे अंगारा।
नौ और दस की पकड़ो बस
पियो नींबू-पानी रस।
दस के आगे अभी न जाना
बरखा रानी जल्दी आना।