प्‍यार की नई परि‍भाषा

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- पारुल माहेश्वरी और मंजरी खरे

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प्रेम एक शाश्वत भाव, कल भी था आज भी है और कल भी रहेगा। प्रकृति के कण-कण में प्रेम समाया है। प्रेम की ऊर्जा से ही प्रकृति निरंतर पल्लवित, पुष्पित और फलित होती है। युगों से चली आ रही प्रेम कहानियाँ आज भी बदस्तूर जारी हैं। प्रेम की अनुभूति अपने आपमें बिरली, अद्वितीय और बेजोड़ है। किसी से प्यार करना या प्यार में होना दुनिया का सबसे खूबसूरत अहसास है।

अनादिकाल से संत, महात्मा, लेखक, कवि, मनोवैज्ञानिक एवं कलाकार इसकी व्याख्या करते रहे हैं। वे अपनी रचना में, अपने सृजन में गीत, कविता, कहानी, उपन्यास तो कभी कलाकृतियों में प्रेम को व्यक्त करने की कोशिश करते रहे हैं, लेकिन प्रेम तो अपने आपमें है ही अनूठा।

यह क्यों होता है? कैसे होता है? कब होता है? किससे होता है? इन प्रश्नों के सटीक जवाब आज तक कोई नहीं दे पाया है। कभी दुनिया प्रेम करने वालों को सर-आँखों पर बैठा लेती है तो कभी प्रेम में तलवारें खिंच जाती हैं, गोलियाँ चल जाती हैं और खून की नदियाँ बह जाती हैं।

यूँ तो प्रेम के सबके अपने-अपने मायने हैं। प्रेम को लेकर सबकी अपनी सोच है। माना जाता है कि प्रेम का संबंध आत्मा से होता है। प्रेम में समर्पण, विश्वास और वचनबद्धता की दरकार होती है, लेकिन आज समय बदल रहा है। 'ग्लोबलाइजेशन' ने दुनिया को मुट्ठी में भर दिया है। इस बदलते युग में प्रेम भी बदल रहा है, युवक-युवतियों का साथ में घूमना, प्रेम का प्रदर्शन सरेआम करना अब 'फैशन' कहलाने लगा। प्रेम में पहले बरसों इंतजार में गुजार दिए जाते थे, लेकिन अब कोई इंतजार में वक्त 'जाया' नहीं करता।

अब प्रेम के स्वरूप, स्थायित्व और उसे अभिव्यक्त करने के माध्यमों में बदलाव आ रहा है। 'मोबाइल' और 'इंटरनेट' के जरिए गली, मोहल्ले और परिचितों में सिमटे प्रेम के अवसर आज के युवाओं के लिए विश्व-व्यापी हो गए हैं।

आज युवाओं की सोच बदल गई है, सामाजिक मूल्यों में बदलाव आ रहा है। अब प्रेम में भी युवा बहुत 'प्रेक्टिकल' हो चला है। मौसमों के बदलने की तरह उसके 'ब्रेक अप' और 'पैच अप' होते हैं। वह मानता है कि बिना गर्ल फ्रेंड के कॉलेज लाइफ में मजा नहीं है, लेकिन शादी के लिए वह घरवालों से बैर लेने के 'मूड' में नहीं होता और उनकी मर्जी को प्राथमिकता देता है।

भोगवादी संस्कृति में पल रहा युवा भावों की गहराई को समझ ही नहीं पाता। प्रेम के लिए इस तरह की सोच कितनी सही और कितनी गलत है, इसका फैसला भी खुद युवाओं को ही करना होगा।

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