जब आए पहला मेहमान...

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Devendra SharmaWD
मातृत्व एक सुखद एहसास है। एक नन्ही जिंदगी का सृजन और फिर उसे हर पल बढ़ते देखने का वर्णन शब्दों से परे है, पर नई-नई मम्मियों के लिए अक्सर स्थिति कुछ असंभव वाली हो जाती है। ऐसे में जरूरत है, कुछ खास बातों का ध्यान रखने की।

जब बच्चा माँ के गर्भ में रहता है तब उसके शरीर का पालन-पोषण माँ के आहार से होता है। इसलिए जो गर्भवती स्त्री पौष्टिक आहार लेती है, वह स्वस्थ सुडौल और निरोग शिशु को जन्म देती है। जन्म के बाद भी शिशु स्वस्थ, निरोग बना रहे और उसका समुचित विकास हो सके- इसके लिए माता को प्रसव के बाद कम से कम छः माह तक अपने खान-पान और आहार का विशेष ध्यान रखना चाहिए। पेश है इसी संबंध में कुछ सुझाव नई मम्मियों के लिए-

* शिशु का आहार माँ के दूध से शुरू होता है। माँ के दूध में शिशु के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व उपलब्ध रहते हैं। अतः शिशु को ऊपर का दूध देने के स्थान पर जहाँ तक हो सके माँ स्वयं का दूध ही पिलाएँ।

*प्रसव के बाद माता के स्तन से गाढ़ा पीला दूध, जिसमें कोलेस्ट्रम होता है, निकलता है इसे शिशु को अवश्य पिलाएँ। इससे शिशु की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी और वह स्वस्थ रहेगा।

* कुछ माताओं की आदत होती है कि जब-जब बच्चा रोता है तब-तब वे उन्हें दूध पिला देती हैं, परंतु यह तरीका ठीक नहीं है। बच्चे के रोने के अन्य कारण भी हो सकते हैं। उन कारणों को दूर करने का प्रयास करें। साथ ही शिशु को दूध पिलाने का एक समय निर्धारित कर दें।

* यदि माता किसी कारण से, बच्चे को स्वयं का दूध पिलाने में असमर्थ है तो उसे गाय का दूध पिलाया जा सकता है। पहली सावधानी तो यह रखना चाहिए कि बोतल से न दूध पिलाकर कटोरी-चम्मच से पिलाएँ। कई बार बोतल की सफाई ठीक से नहीं हो पाती है तो बच्चों को इंफेक्शन होने की पूरी संभावना रहती है। बहुत जरूरी समझें तो ही बोतल से दूध पिलाएँ। दूध पिलाने से पूर्व बोतल को स्टरलाइज्ड अवश्य करें।

* शिशु को दूध पिलाने के बाद उसे एकदम से बिस्तर पर नहीं लेटाएँ। कंधे से लगाकर हाथ से उसकी पीठ पर सहलाएँ। जब बच्चा डकार ले ले तभी उसे बिस्तर पर लेटाएँ। दूध पिलाने के तुरंत बाद यदि आपने शिशु को बिना डकार दिलाए लेटा दिया तो कई बार डकार के साथ दूध निकलकर शिशु की श्वास नलिका से होते हुए फेफड़ों में प्रवेश कर जाता है और शिशु की जान को खतरा हो सकता है।

* हमेशा बच्चों को बिब पहनाना चाहिए। इससे कभी भी बच्चा मुँह से दूध निकाले तो बिब ही गंदा होगा, उसके कपड़े नहीं। इस प्रकार बार-बार उसके कपड़े बदलने के झंझट से भी आप बच जाएँगी। बिब के गंदा होते ही उसे तुरंत बदल दें।

* जब तक शिशु एक वर्ष का न हो जाए तब तक उसे केसर, खारक, जायफल और बादाम को दूध में घिसकर एक चम्मच भर घुट्टी अवश्य
आप काम में व्यस्त हो तो बच्चे को कमरे में बिस्तर पर या झूले में सुलाना अच्छा है। कभी भी जमीन पर बिस्तर लगाकर न सुलाएँ, क्योंकि हो सकता है नीचे कोई कीड़ा-मकोड़ा बच्चे को काट लें
पिलाती रहें।

* छोटे शिशुओं के नाखून बहुत तेजी से बढ़ते हैं और उनमें मैल भी जमा हो जाता है। इसलिए शिशु के नाखूनों की सफाई पर भी ध्यान देना जरूरी है। जिस समय शिशु सो रहा हो, उस समय सावधानी से उसके नाखून काट दें।

* प्रतिदिन नहलाने से कुछ समय पूर्व शिशु की किसी बेबी ऑइल से मालिश करना न भूलें। मालिश से उसकी माँसपेशियाँ मजबूत होंगी। रात्रि में भी सोने से पूर्व यदि एक बार और मालिश कर दें तो अति उत्तम। बच्चा रात्रि में गहरी नींद सोएगा।

* गुनगुने पानी से शिशु को नहला कर टॉवेल से उसके बदन को अच्छी तरह पोंछ दें, फिर बेबी पावडर लगा दें। जोड़ वाली जगहों जैसे बगल, जाँघों तथा गले पर अच्छी तरह पावडर लगाएँ।

* बच्चे का टॉवेल तथा साबुन अलग होना चाहिए।

* नवजात शिशु के लिए कपड़े बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि कपड़ा मुलायम हो। जहाँ तक हो सके शिशु को सूती वस्त्र ही पहनाने चाहिए। यह भी ध्यान रखें कि वस्त्र ऐसा हो, जिसे सरलता से पहनाया एवं उतारा जा सके। साथ ही उसके गरम कपड़े भी नरम और आरामदायक हो।

* शिशु के कपड़ों में बटन या हुक के स्थान पर फीते या लूप का इस्तेमाल करें। इसका कारण है कि बच्चे की त्वचा बहुत कोमल होती है। बटन या हुक के होने से उसके गढ़ने का डर रहता है। शिशु के कपड़ों में पिन भूलकर भी नहीं लगाएँ।

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* शिशु के कपड़े एक अलग बक्से में रखें, ताकि उसके कपड़े ढूँढने में आपको परेशान न होना पड़े।

* बगैर डॉक्टर से पूछे बच्चे को कभी भी मन से कोई दवा न दें।

* शिशु की जीभ भी किसी मुलायम कपड़े को गीलाकर साफ करते रहना चाहिए।

* जहाँ तक हो सके बच्चे को चुसनी (निपल) की आदत नहीं डालें, तो ही अच्छा है। शिशुओं को कोई भी वस्तु मुँह में रखकर नहीं सोने देना चाहिए। इसमें उनके दाँत एवं होठों का आकार तो बिगड़ता ही है, दूसरी तकलीफें भी हो सकती हैं।

* शिशु के सोने का स्थान शांत, स्वच्छ तथा वायु प्रवेशक हो। जहाँ तक संभव हो, उसे अपने ही पलंग पर रात में ही नहीं, दिन में भी मच्छरदानी लगाकर सुलाना चाहिए। सोते हुए बच्चे को सहसा नहीं जगाना चाहिए।

* बच्चे का बिस्तर तेज रोशनी की ओर न लगाएँ। तेज प्रकाश का उसकी आँखों पर बुरा असर पड़ सकता है।

* शिशु को मुँह ढँककर नहीं सुलाना चाहिए। एकदम औंधा या एकदम सीधा भी नहीं सुलाना चाहिए, बल्कि नरम तकिए पर सिर रखकर करवट बदल-बदल कर सुलाना चाहिए।

* आप काम में व्यस्त हो तो बच्चे को कमरे में बिस्तर पर या झूले में सुलाना अच्छा है। कभी भी जमीन पर बिस्तर लगाकर न सुलाएँ, क्योंकि हो सकता है नीचे कोई कीड़ा-मकोड़ा बच्चे को काट लें।

* चौथे-पाँचवें महीने से बच्चे को पोषक आहार देना प्रारंभ कर दें। उसके खाने का समय भी निश्चित कर दें।

* छठे-सातवें महीने में शिशु को दाँत निकलने प्रारंभ हो जाते हैं। इसके लिए डॉक्टर से पूछकर उचित तरीका अपनाएँ।
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