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जाने नन्हों का मनोविज्ञान

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स्मृति आदित्य

ND
नन्हें-नन्हें गुलाबी फूल आपकी बगिया में इन दिनों बड़े खिले हुए होंगे। चौंक गए? हम आपके नौनिहालों की बात कर रहे हैं। वे भी तो कच्चे-पक्के गुलाबी फूल ही है न? छुट्‍टियों में उनकी शैतानी और आपकी परेशा‍नियाँ बढ़ गई होगी? आप उन्हें रचनात्मक कार्यों में लगाने की सोच रहे होंगे। हमारी मीठी-सी सलाह है कि इन सुकोमल फूलों को प्रकृति के हवाले कीजिए फिर देखिए ये कितना कुछ सीखते हैं। कम्प्यूटर गेम, वीडियो गेम से कहीं ज्यादा ज्ञान उन्हें महकती मिट्‍टी में मिलेगा।

याद क‍ीजिए अपना बचपन ! धूल-मिट्‍टी में आपूरित होकर घंटों समय बिताने पर ही आपने जाना कि आँगन में कितने और कैसे-कैसे पौधे हैं। छुई-मुई कैसी होती है। घोघें अपना घर सिर पर उठाए घूमते हैं। हाथों के ऊपर रेत और मिट्‍टी चढ़ाकर फिर धीरे से हाथ निकालकर घरौंदे बनाते हुए आपने-अपने घर का महत्व समझा और जब उसे नन्हें शंखों से सजाकर आत्मीयता से थपथपाया तब 'सुंदर' घर की परिभाषा भी जान ली।

गेहूँ, धान और मूँग के इधर-उधर ‍बिखरे दानें भीगकर कैसे अंकुरित हो जाते है, यही प्रस्फुटित अंकुर पहले पौधे और फिर वृक्ष बन जाते हैं। यह सब आपने किताबों में तो बहुत बाद में पढ़ा। आपके भोले और संवेदनाओं से आपुरित बाल मन ने तो पहले ही अनुभूत कर लिया था। चाहे वैज्ञानिक रूप से उस वक्त का समझा पूरी तरह से सत्य और वास्तविक ना हो लेकिन धूल-मिट्‍टी में सनकर प्रकृति से जो अनमोल रिश्ता और संवेगात्मक लगाव आपके दिलों ने उस समय कायम किया था। वह आज भी बरकरार है। मिट्‍टी की वह मीठी और महकती गंध, आज भी शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल है।
  नन्हें-नन्हें गुलाबी फूल आपकी बगिया में इन दिनों बड़े खिले हुए होंगे। चौंक गए? हम आपके नौनिहालों की बात कर रहे हैं। वे भी तो कच्चे-पक्के गुलाबी फूल ही है न? छुट्‍टियों में उनकी शैतानी और आपकी परेशा‍नियाँ बढ़ गई होगी?      


फिर भला हम आज के बचपन को इन सबसे वंचित क्यों कर रहे हैं? आज का बाल मन भी कल्पना के घोड़े दौड़ाता है। तितली की सुंदर चित्रकारी कौन करता है? उसके मन में ऐसे कच्चे प्रश्न उठने दीजिए। घंटों तितली, चिडि़याँ, फूल, मिट्टी, नदियाँ, मछली और आसमान को ताकने दीजिए। कब नन्हें हाथ प्रेरित होकर तूलिका (ब्रश) थाम लेंगे आपको पता भी नहीं चलेगा। किसी हॉबी क्लास में भेजने के बजाय क्यों न घर में ही हो एक ऐसी दीवार जहाँ बच्चे मन चाहे रंग बिखेर सके। मनचाही आकृतियाँ उकेर सके।

जितना चाहे उतना सुंदर रंगों में खो सके। यकीनन आपके घर में वो दीवार नहीं होगी। एक कोना, एक दीवार, एक हिस्सा घर का ऐसा हो। जहाँ कोमल बचपन खुलकर अभिव्यक्त हो सके। आप खुद देखेंगी अपने इन नाजुक बच्चों की आँखों में आकर्षक चमक।

अपने बच्चे का मनोविज्ञान समझे। हँसी-खुशी के लुभावने पलों को उन्हें बटोरने दीजिए। बचपन को बचपन ही बने रहने दीजिए ‍ताकि ये गुलाबी नवांकुर बड़े होने पर मयूरपंखी यादों में ऐसे ही डूब सकें, जैसे अभी-अभी आप डूब गई थीं। इन छुट्‍टियों में आपका आँगन खनकती हँसी और खिलखिलाते ठहाकों से गुलजार रहे। यही कामना है।

टिप्स- नन्हों के लिए
- खूब सारे सुंदर रंग उसे उपहार में दीजिए।
- नई साइकिल लाकर दीजिए।
- बगीचों में पानी डालने दीजिए।
- एक पौधा उसके कोमल हाथों से रोपित करवाएँ देखभाल की जिम्मेदारी भी उसी की।
- किताबें उपहार में दें, पढ़ने के लिए नहीं कहे अगर आकर्षक कवर में होंगी तो वह स्वयं उसे पढ़ेगा।
- और सुझाव आप हमें भेजें कि कैसे व्यस्त रखें इन नटखट शैतानों को छुट्‍टियों में।

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