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मम्मी ये क्या है... ?

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गायत्री शर्मा

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सूचना प्रौद्योगिकी के इस दौर में जहाँ कम्प्यूटर ने हर घर में अपनी पकड़ बना ली है वहीं इसके दुष्परिणाम से भी लोग अछूते नहीं हैं। बटन पर क्लिक करते ही तमाम जानकारियों का खजाना हमारे सामने होता है। हर कोई आसानी से किसी भी साइट पर जाकर वांछित जानकारी प्राप्त कर सकता है।

इंटरनेट एक ओर हमें दुनियाभर की जानकारियाँ परोस रहा है वहीं दूसरी ओर अश्लील साहित्य परोसने में भी इसका कोई सानी नहीं है, जिसका सर्वाधिक प्रभाव बच्चों पर पड़ रहा है।

इस भागदौड़ की जिंदगी में संस्कार जैसे बीते जमाने की बात बन गए हैं। आज माँ-बाप के पास इतना समय ही नहीं है कि वे अपने बच्चों को अच्छे संस्कार व अच्छा माहौल दें। सुबह होते ही माँ-बाप दफ्तर निकल जाते हैं और अपने बच्चों को छोड़ जाते हैं टी.वी. और इंटरनेट के भरोसे। उनकी इसी लापरवाही व अनदेखी का परिणाम ही है कि परिपक्वता की उम्र से पूर्व ही बच्चे अश्लीलता की बातें करने लगते हैं।
  बच्चे वहीं करते हैं जिसे करने से उन्हें अक्सर मना किया जाता है। दूसरों के सामने उन्हें जो नहीं देखने दिया जाता है वह बच्चे अकेले में देखकर अपने मन की संतुष्टि करते हैं और यहीं से शुरुआत होती है भटकाव की।      


बच्चे ‍कच्ची ‍माटी के समान होते हैं। इस उम्र में उन्हें जैसे संस्कार दिए जाएँगे, वे वैसे ही ढल जाएँगे। इस दुनिया को देखने का उनका एक अलग नजरिया होता है। बहुत सी चीजें ऐसी होती हैं जिनसे वे अनभिज्ञ होते हैं। उनके मन में बहुत सारे सवाल उठते हैं जिनका यदि उचित प्रकार से निराकरण कर दिया जाए तो बच्चे उनका जवाब कहीं और नहीं तलाशेंगे।

बच्चे वहीं करते हैं जिसे करने से उन्हें अक्सर मना किया जाता है। दूसरों के सामने उन्हें जो नहीं देखने दिया जाता है वह बच्चे अकेले में देखकर अपने मन की संतुष्टि करते हैं और यहीं से शुरुआत होती है भटकाव की। इंटरनेट ही नहीं टी.वी. और फिल्मों में भी यही सबकुछ परोसा जाता है बस ढंग अलग-अलग होता है।

इन सभी माध्यमों में सेक्स के सुंदर पक्ष को निरूपित न करते हुए उसे रोमांचक ढंग से प्रस्तुत किया जाता है जिसमें जिस्मफरोशी अधिक होती है प्यार कम। भले ही यह उनकी टीआरपी बढ़ाता है लेकिन इसके साथ-साथ ही बच्चों का भविष्य बिगाड़ने में भी वह कोई कसर नहीं छोड़ता। कामुकता, अश्लीलता का बच्चों के अविकसित ‍मस्तिष्क पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ता है।
  एक तरफ शारीरिक बदलाव और दूसरी तरफ कामुकता को बढ़ाने वाला साहित्य ये सभी बच्चे की सोच पर एक बुरा प्रभाव डालते हैं। जिससे बच्चा इनके बारे में और अधिक जानना चाहता है। उसकी यही जिज्ञासा उसे वयस्कों की दुनिया टटोलने पर विवश कर देती है।      


फिल्म में अश्लील दृश्य को देखकर हर बच्चे के मन में यह सवाल उठता है कि यह क्या हो रहा है। कभी-कभी तो बच्चा हिम्मत करके पूछ ही लेता है कि 'मम्मी ये क्या हो रहा है'। बच्चों के ऐसे प्रश्न पर माँ-बाप या तो चुप्पी साध लेते हैं या बच्चे की पिटाई करने लग जाते हैं। यदि बच्चों की जिज्ञासा का उसी वक्त शमन कर दिया जाए तो दोबारा वे ऐसे प्रश्न नहीं करेंगे। मगर हम हैं कि.... ?

एक तरफ शारीरिक बदलाव और दूसरी तरफ कामुकता को बढ़ाने वाला साहित्य ये सभी बच्चे की सोच पर एक बुरा प्रभाव डालते हैं। जिससे बच्चा इनके बारे में और अधिक जानना चाहता है। उसकी यही जिज्ञासा उसे वयस्कों की दुनिया टटोलने पर विवश कर देती है। अध्ययनों के मुताबिक यौन शोषण के 70 प्रतिशत मामलों में अपराधी बच्चे अश्लील सामग्री देखने के आदी पाए गए।

अपने बच्चों को भटकाव से सही राह पर ले जाना माँ-बाप की जिम्मेदारी है। आपका बच्चा खाली समय में क्या करता है, किससे मिलता है। यह माँ-बाप को बखूबी पता होना चाहिए। मारपीट से आपका बच्चा उग्र हो सकता है अत: उसे प्यार से समझाइए। उसके मन में अपने प्रति विश्वास पैदा करें न कि डर।

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