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न टालें बच्चों की गलतियाँ

हमें फॉलो करें न टालें बच्चों की गलतियाँ
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अक्सर यह देखा जाता है कि माँ-बाप अपने बच्चों की गलती यह कहकर टाल देते हैं कि-छोड़ दो बच्चा है। लेकिन वे भूल जाते हैं कि जो चीजें बच्चे बचपन में सीखते हैं, वही उनका व्यक्तित्व बन जाता है।

कई माता-पिता अनजाने ही गलत कार्यों में अपने बच्चों के मददगार हो जाते हैं। ऐसा करते समय स्वयं उन्हें इस बात का पता नहीं होता है कि वे कुछ गलत कर रहे हैं। दरअसल इसके पीछे पालकों की अपने बच्चों को अत्यधिक प्यार और संरक्षण देने की भावना होती है। जैसे-

कक्षा एक में पढ़ने वाला रोशन न तो स्कूल जाना चाहता है और न ही उसे होमवर्क करना ही पसंद है। यह देखकर उसकी मम्मी अपने उल्टे हाथ से उसका होमवर्क करके (ताकि टीचर हैंडराइटिंग न पहचानें) उसे स्कूल भेज देती हैं। ऐसा करके उसकी मम्मी रोशन को गलत आदत तो डाल ही रही है, साथ ही उसका भविष्य भी बिगाड़ रही है।
कई बार माता-पिता बच्चों के कहने से पड़ोसियों से संबंध खराब कर लेते हैं। बच्चे तो कुछ दिनों पश्चात पुनः दोस्ती कर लेते हैं, किंतु दो परिवारों के मध्य कड़वाहट पैदा हो जाती है। इसी प्रकार बच्चों के कहने पर शिक्षकों को भी अनुचित बातें कहना ठीक नहीं होता है
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आठ वर्षीय नताशा अक्सर अपने हमउम्र बच्चों से मारपीट करती रहती है तथा फिर डाँट-मार के डर से स्वयं ही जोर-जोर से रोने लग जाती है। उसे रोती देखकर माता-पिता किसकी गलती है? यह जानने के स्थान पर उसे चुप करवाने में लग जाते हैं तथा दूसरे बच्चों को अकारण ही डाँट सुननी पड़ती है। इस कारण परिवार, स्कूल और कॉलोनी का कोई भी बच्चा उसके साथ खेलना पसंद नहीं करता। इसी तरह दस साल के निक्कू को अपने से छोटे बच्चों को सताने, जानवरों को पत्थर मारने, उनके कान व पूँछ खींचने, पेड़-पौधों को नोचकर फेंकने तथा बुजुर्गों की हँसी उड़ाने में बहुत आनंद आता है।

उसकी इन आदतों पर रोक लगाने के स्थान पर घर के बड़े सदस्य 'अभी बच्चा है, बाद में अपने आप सुधर जाएगा' जैसे जुमले कहकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। यदि समय रहते निक्कू की इस मनमानी को रोका नहीं गया तो इसकी परिणति बहुत भयानक भी हो सकती है।

हम रोजाना अपने आसपास ऐसे कई उदाहरण देखते हैं, जिनमें माता-पिता अपने बच्चों को गलत पक्ष लेकर या 'बच्चा है' कहकर उनको बिगाड़ने में सहायक सिद्ध होते हैं।

कई बार माता-पिता बच्चों के कहने से पड़ोसियों से संबंध खराब कर लेते हैं। बच्चे तो कुछ दिनों पश्चात पुनः दोस्ती कर लेते हैं, किंतु दो परिवारों के मध्य सदा के लिए कड़वाहट पैदा हो जाती है। इसी प्रकार बच्चों के कहने पर शिक्षकों को भी अनुचित बातें कहना ठीक नहीं होता है। कुछ पालक बच्चों को टॉफी या पैसे का लालच दे-देकर उनसे काम करवाते हैं।

इस प्रकार तो बच्चे लालची और रिश्वतखोर बन जाएँगे और आइंदा बिना कुछ लिए कोई भी कार्य नहीं करेंगे। बच्चों को अच्छे कार्यों के लिए प्रोत्साहन स्वरूप उपहार देना बुरी बात नहीं है, किंतु प्रत्येक कार्य के लिए पैसे या खाने-पीने की चीजों का लालच देना उचित नहीं। कई बार बच्चे सिगरेट या शराब पीने की एक्टिंग या गाली देने की नकल करके दिखाते हैं। इस पर भी पालकों को रोक लगानी चाहिए।

बच्चों का मन आईने की तरह होता है, उस पर बचपन की बातें सदा के लिए अंकित हो जाती है। बचपन में डाले गए संस्कारों के बीज बड़े होकर वृक्ष के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं। अतः बचपन में जैसे बीज बच्चों के मन में डालेंगे वैसे ही फल बड़े होकर उनके जीवनरूपी पेड़ में फलेंगे। इस बात को ध्यान में रखकर बच्चों के साथ व्यवहार करें।

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