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बच्चे को चाहिए पापा दोस्त

हमें फॉलो करें बच्चे को चाहिए पापा दोस्त
- नरेन्द्र देवांग
ND

एक दोस्त, एक मार्गदर्शक और एक आदर्श पिता के रूप में हर बच्चा इन मिले-जुले गुणों वाला पुरुष चाहता है। जिसके साथ वो अपनी वाली धींगा-मुश्ती कर सके, मैथ्स की प्रॉब्लम्स सॉल्व कर सके, अपने कॉलेज के राज बाँट सके और समय पड़ने पर उनके कंधे पर सर रखकर रो भी सके। बदलते समय के साथ पापाओं की भूमिका भी बदल रही है तथा अब बच्चों के साथ उनके रिश्ते की परिभाषा भी।

पिता की भूमिका अहम है बच्चे की जिंदगी में, क्योंकि वो अपनी छाँव तले सहेजता है उसे प्यार से। वहीं बच्चा लौटा लाता है पिता का बचपन। कैसी अनूठी है यह भागीदारी। यह ठीक है कि हर बच्चा ऐसा बने जिस पर पिता को नाज हो। इसके लिए समझदार बच्चे हरसंभव कोशिश भी करते हैं। लेकिन आज के बदलते समय में बच्चों की भी इच्छा होती है कि उन्हें ऐसा मौका जरूर मिले, जब वे अपने पापा पर नाज करें। बदलते परिवेश में जरूरत यह है कि पिता 'आदर्श पिता' की परिभाषा को बदलते हुए दोस्ताना अंदाज में बच्चों के लिए खुद को बदले। आइए, जानें कैसे-

समय दें बच्चों को
शिशु के जन्म के साथ ही माँ उसके लालन-पालन में व्यस्त हो जाती है और पिता उसके सुखद भविष्य के प्रति ज्यादा चिंतित हो जाता है। बच्चे के बड़े होने के साथ-साथ पिता की जिम्मेदारी और बच्चे के साथ उसके संबंध भी ज्यादा मजबूत होने लगते हैं। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक हो जाता है कि पिता ज्यादा समय बच्चों के साथ बिताए।
  पिता की भूमिका अहम है बच्चे की जिंदगी में, क्योंकि वो अपनी छाँव तले सहेजता है उसे प्यार से। वहीं बच्चा लौटा लाता है पिता का बचपन। कैसी अनूठी है यह भागीदारी। यह ठीक है कि हर बच्चा ऐसा बने जिस पर पिता को नाज हो।      


अच्छे पिता बने
अपने बच्चों के प्रति प्यार-दुलार एवं कोमल भावनाएँ पुरुष के पास नहीं होतीं, ऐसा नहीं होता। लेकिन संतान के सामने आदर्श स्थापित करने, उन्हें संस्कारित और योग्य बनाने के लिए उसके द्वारा धारण किया गया कठोर रूप इन कोमल संवेदनाओं को दबाकर रखता है। जब तक बच्चों का अबोध दिल-दिमाग पिता के इस छद्म रूप से परिचित हो, तब तक बच्चों और पिता के बीच एक निश्चित दूरी बन चुकी होती है।

आदर्श पिता साबित होने के इस फेर में पड़ा पुरुष न तो आदर्श पिता ही बन पाता है और न ही उनकी संतान योग्य। संतान योग्य और स्वावलंबी बन सके, इसके लिए जरूरी है कि आदर्श पिता बनने का प्रयास कम और अच्छा पिता बनने का प्रयत्न ज्यादा किया जाए। अर्थात समय-समय पर अपनी भावनाएँ भी प्रदर्शित करते रहें।

पिता बनना एक सुखद अहसास भी है तो नवीन जिम्मेदारियों के प्रति उत्तरदायी और मानसिक रूप से परिपक्व हो जाने का संकेत भी। वह बचपन जो कभी उसने जिया था, वह प्यार और दुलार जो उस पर उड़ेला गया था- उसे दोहराने का अवसर पिता को प्राप्त होता है। इस अवसर को ठुकराइए नहीं। आदर्शों का पालन कीजिए और कठोर भी बनिए लेकिन सीमा में रहकर।

सुरक्षा कवच है पिता
माता-पिता परिवार की आधारशिला होते हैं। वे ऐसे घने वृक्ष के समान होते हैं, जिनकी छत्रछाया में संतान फलती-फूलती है। माँ यदि अपने बच्चों के लिए ममता की मूरत है तो पिता उसका कठोर सुरक्षा कवच है। पिता हर पल अपने घर-परिवार की सहायता व सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध रहते हैं। घर के हर अहम फैसले वही लेते हैं। खासतौर पर पुरुष प्रधान समाजों में पिता यही रोल निभाते हैं। अब समय के साथ बदलाव आए हैं, लेकिन पिता नाम का सुरक्षा कवच अब भी वैसा ही माना जाता है।

न्यू एज डैड्
जब पिता बनें, घर पर काम करना, दोपहर की फुर्सत की झपकियाँ और बाथरूम में चैन से शेव करना भूल जाइए, क्योंकि आपका नन्हा आपके उन प्राइवेट लम्हों का साथी बनने आ धमकता है। यह अनुभव है बिल कॉस्बी के, जिन्होंने फादरहुड नामक किताब में पिता बनने के अपने खट्टे-मीठे अनुभवों को सँजोया है। यह सच है कि माता-पिता बनने से बड़ा समर्पण, अनुभव और जिम्मेदारी कोई नहीं है।

पहले इसकी उम्मीद सिर्फ माँ से होती थी और 'माता कुमाता नहीं होती' जैसे अडिग विश्वास ने जन्म लिया, लेकिन अब पिता की तरफ से आते ऐसे ही समर्पण ने उन्हें भी बेहद जिम्मेदार, वात्सल्य से परिपूर्ण और विश्वसनीय बनाया है और जन्म दिया है 'न्यू एज डैड्स' यानी नए युग के पिता को।

न्यू एज डैड्स, बच्चे के लिए 'बेबी सिटिंग' अर्थात देखभाल गर्व से करते हैं। उन्हें दफ्तर से समय निकालकर बच्चे की नैपी बदलनी पड़ रही है या उसे खाना खिलाना पड़ रहा है। यह बताने या दिखाने में उन्हें कोई शर्म महसूस नहीं होती, न ही उन्हें स्कूल जाती बच्ची को टिफिन बनाकर देने या उसकी यूनिफार्म को प्रेस करने में झिझक होती है।

इन जिम्मेदारियों को निभाते लोग पूर्ण पिता हैं, जो समझते हैं बच्चे की तबीयत, उसकी पसंद, उसकी शिक्षा और उसका भविष्य। उनकी बाँहों में पलता बच्चा भी पाता है संतुलित व्यक्तित्व और सुरक्षा का भरपूर अहसास। पिता का प्यार बच्चे के लिए बहुत जरूरी है। इस प्रतियोगिता की दुनिया में पिता की मजबूत बाँह, उनका सही मार्गदर्शन, दोस्ताना साथ और हौसला बच्चों को कामयाबी दिलाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रखता है।

व्यावहारिक पिता
आज के दौर के पिता के लिए और भी जरूरी हो जाता है कि वह उपलब्ध समय में से अपने बच्चों को अधिकतम समय व सामीप्य दे। आदर्शों के बजाय व्यावहारिकता पर जोर दे, उन्हें समय के साथ दौड़ने के काबिल बनाए। समय के यथार्थ से परिचित कराए। क्या सच है और क्या उसके हित में है, बच्चों को खुद अनुभव कराए एक कुशल मित्र और मार्गदर्शक बनकर। पिता का यह नवीनतम रूप निश्चित तौर पर पूरे परिवार, समाज और नवीन सभ्यता की राह में एक नया कदम होगा।

अब मित्रतुल्य पिता का जमाना है, चाहे वह छोटे बच्चों के संदर्भ में हो या किशोरवय बच्चों के। युवाओं के विशेष रूप से लड़कियों के संदर्भ में पिता की भूमिका आज ज्यादा महत्वपूर्ण हो चली है, क्योंकि इस उम्र में उन्हें अच्छे मार्गदर्शक और मित्र की जरूरत होती है।नहीं मिलने पर वे इसे अन्यत्र तलाशने की कोशिश करते हैं। किंतु अधिकतर मामलों में उनकी अपरिपक्व बुद्धि गलत चयन कर बैठती है, जो पथ प्रदर्शन के बजाय उन्हें भुलावे और छलावे में डालती है।

बच्चों की अपनी कुछ आवश्यकताएँ हो सकती हैं, जिनको समझना एक अच्छे पिता का कर्तव्य है। अगर वे पूरी करने लायक हों तो उन्हें किया जाना चाहिए। अन्यथा घर की व्यवस्था, बजट और मर्यादाओं में बच्चों को भागीदार बनाएँ। कहने का तात्पर्य यह है कि बच्चों को आत्मानुशासन सिखाएँ।

अच्छे पिता के रूप
बच्चों को हर बात पर टोकने की आदत अगर आप में हैं तो छोड़ दें। बात-बात पर बच्चों को टोकने से आपकी बात का प्रभाव कम हो जाता है और बच्चे आपके इस व्यवहार को सामान्य रूप से लेने लग जाते हैं। जहाँ जरूरी हो वहीं बच्चों को सही ढंग से समझाएँ।

सदैव अपनी मर्जी न थोपें बच्चों पर
बच्चों की आपस में तुलना कभी न करें। इससे बच्चे का फायदा कम, नुकसान ज्यादा होने की संभावना है। आप बच्चे को मार्गदर्शन दें और जिस बच्चे से आप उसकी तुलना करना चाहते हैं, उसकी स्थितियों, परिस्थितियों और कारणों की समीक्षा कर बच्चे को वैसा बनने में सहयोग दें।

* बच्चे से हुई किसी भूल पर उसे बार-बार शर्मिंदा न करें, क्योंकि ऐसा करने से उसमें हीनभावना घर कर जाती है।
* बच्चों को अच्छे दोस्त बनाने व बनने में सहयोग प्रदान करें।
* बच्चों को पूरा समय दें, उनकी समस्याएँ वे बताएँ उससे पहले आप महसूस करें तो ज्यादा अच्छा होगा। बच्चों से सीधे संवाद स्थापित करें।
* युवा लड़कियों की समस्याओं के संदर्भ में उनकी मम्मी को माध्यम बनाते हुए संवेदनशील रहें।
* अच्छा पिता बनने के लिए यह तय करना जरूरी है कि आप अपने बच्चों के कितना नजदीक, कितनी देर तक रहते हैं।

खास बातें
* आज भी भारत के तकरीबन अस्सी फीसदी पिता बच्चों की परवरिश पर ध्यान नहीं देते।
* समाजविदों का मानना है कि गुनाह के रास्ते पर चलते ज्यादातर बच्चों के पिता या तो जीवित नहीं होते या उन पर ध्यान नहीं देते, इसलिए बच्चे गुनाह का रास्ता अपनाते हैं।
* अमेरिका में पिताओं को सही पितृत्व अपनाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
* शोध बताते हैं कि आठ वर्ष की उम्र से बच्चों, खासकर लड़कों को पिता की जरूरत बहुत ज्यादा महसूस होती है।

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