मम्मी-पापा अब तो बदल जाओ

नई पीढ़ी के साथ कदम मिलाएँ

गायत्री शर्मा
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जब कोई बच्चा जन्म लेता है तो सबसे ज्यादा खुशी माँ-बाप को होती है। उन्हें लगता है मानो ईश्वर ने उनकी दुआएँ कबूल करके उनकी झोली खुशियों से भर दी है।

बचपन में बच्चों के बहाने उनके माँ-बाप भी उनके साथ बच्चे बन जाते हैं। बच्चों के साथ बच्चे बनकर खेलना हो या उसकी शरारतों पर ठहाके मारकर हँसना। सब कुछ बच्चों की खुशी के लिए करते हैं।

जब बच्चे बड़े होने लगते हैं तब उन्हें हर काम में माँ-बाप की दखलअंदाजी खलने लगती है। बच्चों के बड़े होने पर भी माँ-बाप उनको बच्चा ही समझकर उनके कार्यों में टोका-टोकी शुरू कर देते हैं जो आज की नई पीढ़ी को नागवार गुजरता है। यहीं से शुरुआत होती है विवादों की।

* जब टोकते हैं माँ-बाप :-
  हर बात में माँ-बाप से 'ना' का जवाब सुनते-सुनते तंग आकर बच्चे उनसे कुछ पूछना ही बंद कर देते हैं। हमेशा नकारात्मक होने की बजाय कभी-कभी बच्चों के साथ 'सकारात्मक रवैया' भी अपनाएँ जिससे बच्चे आपको अपने मन की बात बताने में कोई झिझक या परेशानी महसूस न करें।      
नई पीढ़ी के बच्चे अपना जीवन आजादी से जीना चाहते हैं। उनकी एक अलग लाइफ स्टाइल होती है।

इसका यह अर्थ नहीं कि इस आजादी में उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का अहसास नहीं होता, लेकिन माँ-बाप बच्चों पर इतनी बंदिशें लगा देते हैं कि या तो बच्चा उससे खीझकर माँ-बाप का विरोध करने लग जाता है या फिर चुपचाप सब कुछ सहन कर लेता है।

हर छोटे-बड़े काम में रोज-रोज की दखलअंदाजी बच्चों से आपकी दूरियाँ और भी अधिक बढ़ा सकती हैं। अपने बाल मत कटवाओ, ये मत खाओ, ये मत पहनो आदि छोटी-छोटी बातों पर होने वाले विवाद बच्चों के मन में आपके प्रति अविश्वास पैदा करते हैं।

* हमारी भी सुनो :-
बच्चों को किसी भी बात पर टोकने या स्पष्ट 'ना' कहने से पहले माँ- बाप ने बच्चों की बात को भी सुनना चाहिए। उसके बाद सोच-समझकर किसी भी बात का तर्कपूर्ण जवाब देने से बच्चों को भी सही-गलत का पता चलता है।

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हर बात में माँ-बाप से 'ना' का जवाब सुनते-सुनते तंग आकर बच्चे उनसे कुछ पूछना ही बंद कर देते हैं।

हमेशा नकारात्मक होने की बजाय कभी-कभी बच्चों के साथ 'सकारात्मक रवैया' भी अपनाएँ जिससे बच्चे आपको अपने मन की बात बताने में कोई झिझक या परेशानी महसूस न करें।

* बदल गया है ज़माना :-
कुछ माँ-बाप अक्सर अपने गुजरे जमाने की बातों का उदाहरण बच्चों को देते हैं लेकिन आज के बदलते दौर में उनमें से हर बात प्रासंगिक हो, यह संभव नहीं है। अब जमाना बदल गया है। जिससे लोगों की सोच में भी बदलाव हुआ है।

  माँ-बाप यदि बच्चों के साथ हमेशा दूरी बनाकर चलेंगे तो बच्चों और उनके बीच में दूरी हमेशा बढ़ती ही जाएगी। आजकल के बच्चों को डाँटने वाले माँ-बाप नहीं बल्कि उनको समझने वाले दोस्त की जरूरत होती है।      
आजकल स्कूलों और कॉलेजों में लड़के-लड़कियाँ दोनों ही एक साथ पढ़ते हैं। ऐसे में यदि माँ-बाप चाहें कि उनका लड़का, लड़कियों से या लड़की, लड़कों से बात न करे।

तो शायद यह संभव नहीं है। माँ-बाप को चाहिए कि वे बदलते समय के हिसाब से अपनी सोच को भी बदलें।

* माँ-बाप के साथ ही दोस्त भी बनें :-
माँ-बाप यदि बच्चों के साथ हमेशा दूरी बनाकर चलेंगे तो बच्चों और उनके बीच में दूरी हमेशा बढ़ती ही जाएगी। आजकल के बच्चों को डाँटने वाले माँ-बाप नहीं बल्कि उनको समझने वाले दोस्त की जरूरत होती है।

बच्चों के साथ तालमेल बिठाकर माँ-बाप के साथ बच्चों का एक बेहतर रिश्ता कायम हो सकता है। समय मिलने पर आप बच्चों से उनके अनुभव बाँटें। उनके साथ दोस्त बनकर कहीं बाहर घूमने जाएँ फिर देखिए बच्चे आपका कितना आदर करते हैं।

तो क्यों न आज ही से पुराने दकियानलूसी विचारों को त्यागकर अपने बच्चों के साथ दोस्ती का एक नया रिश्ता कायम करें। ‍एक ऐसा रिश्ता जो प्यार, अपनापन और सामंजस्य की डोर से बँधा हो।
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