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माँ मोटी तो कैसे बचें बच्‍चे !

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बच्चे अपने अभिभावकों विशेषकर माँ से काफी कुछ ग्रहण करते हैं। उनके खान-पान पर माँ की आदतों का खासा असर पड़ता है। इसीलिए उनका आकार-प्रकार भी माँ जैसा ही हो जाता है। जाहिर है, वे खाते-पीते माँ की पसंद के अनुसार हैं, तो उनका शरीर भी उसी के अनुसार ढल जाता है।

जीवनशैली में आ रहे बदलाव से कौन बच पाया है। बच्चे भी इससे अछूते नहीं हैं। यही कारण है कि आज बच्चे तंदुरुस्त होने की जगह बेडौल होते जा रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण खान-पान की उनकी आदतें हैं। ये आदतें घर में विकसित होती हैं। बच्चे बहुत कुछ अपने अभिभावकों से सीखते हैं। खाने-पीने में भी वे उन्हीं का अनुसरण करते हैं। इसीलिए आमतौर से देखने में आता है कि बच्चों का डील-डौल कई बार माँ के डील-डौल से काफी कुछ मिलता-जुलता है। इसका सीधा-सा कारण उनका खान-पान है, जो पूरी तरह माँ पर निर्भर करता है।

हाल ही में हुए एक अध्ययन ने बताया कि शहरी क्षेत्रों के बच्चे तेजी से बेडौल हो रहे हैं। देश के बड़े शहरों में ऐसे बच्चों की तादाद लगातार बढ़ रही है, जिनका वजन सामान्य से ज्यादा है। इसका बहुत बड़ा कारण भोजन की परंपरा में बदलाव है। इन शहरों में ऐसे भोजन का चलन आम हो गया है, जिसमें चिकनाई की मात्रा अच्छी-खासी होती है। साथ ही बच्चों को घर पर अभिभावकों के साथ भोजन करने का समय नहीं मिल पाता, जिसका सीधा असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। माता-पिता के साथ नियमित रूप से भोजन करने वाले बच्चों में यह समस्या कम पाई जाती है।

फोर्टीस द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार दिल्ली के स्कूलों में पढ़ने वाले 40 फीसदी बच्चे मोटे हो चले हैं। इस चिंता में वजन घटाने वाले विशेषज्ञ और इजाफा करते हैं। उनका आकलन है कि यह तादाद और बढ़ सकती है। दिल्ली के लेडी इरविन कॉलेज से संबद्ध डॉ.सीमा पुरी कहती हैं कि हर किसी के पड़ोस में एक मेकडोनाल्ड्स बैठा है। इंटरनेट और टीवी ने क्रिकेट और फुटबॉल जैसे मैदानी खेलों को हमारे जीवन से बाहर कर दिया है। अगर आप अपने बच्चों का वजन कम करना चाहते हैं, तो पूरे परिवार को अपनी जीवनशैली खासतौर से खान-पान की आदतें बदलनी होंगी।

इस बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि माता-पिता के साथ भोजन करने वाले बच्चों में यह समस्या कम पाई जाती है तथा केवल वर्जिश कराने भर से बच्चों का वजन कम नहीं होता, इसके लिए उनके खानपान पर ध्यान देना जरूरी होता है। आहार विशेषज्ञ डॉ. शिखा शर्मा कहती हैंकि बच्चों को बेडौल होते देख माता-पिता उनके खानपान पर नियंत्रण के साथ उन पर वर्जिश करते रहने का दबाव बनाना शुरू कर देते हैं। लेकिन यह तरीका हमेशा कारगर नहीं होता। बच्चों का वजन कम करने के लिए दूसरे तरीके अपनाए जाना चाहिए।

बच्चों का वजन बड़ों के मुकाबले कुछ धीमी गति से घटता है। साथ ही उनके समुचित विकास को देखते हुए उनके भोजन में कैलोरी की मात्रा एकदम से घटाए जाने की सलाह भी नहीं दी जा सकती। इसका उनके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। आहार विशेषज्ञ कहते हैं कि इसके बजाय अभिभावक उन्हें संतुलित आहार की ओर आकर्षित करने के लिए कुछ तरीके अपना सकते हैं जिससे बच्चों की दिलचस्पी ऐसे भोजन में बढ़ने लगे। डॉ. शिखा शर्मा के मुताबिक स्कूल से लौटने वाले बच्चे की माता घर पर हो तो वह उसे ताजे फल खिला सकती है। मुमकिन है इसके लिए उसे खुद भी बच्चों के साथ रोजाना फल खाने पड़ें। माता-पिता बच्चों के आदर्श होते हैं। इस तरीके का इस्तेमाल कर उनमें रोजाना फल खाने की आदत विकसित की जा सकती है। अगर आप चाहते हैं कि बच्चे संतुलित भोजन के आदी बनें, तो आपको स्वयं संतुलित आहार लेने की आदत डालनी होगी।

टीवी के सामने बैठकर खाना एक और समस्या है। इससे बच्चे खाने की ओर ठीक से ध्यान नहीं दे पाते और कई बार ज्यादा खाना खा लेते हैं। भोजन और भावनाओं में संबंध को रेखांकित करते हुए डॉ. शिखा शर्मा आग्रह करती हैं कि सारा परिवार डिनर टेबल पर एसाथ मौजूद हो, यह सबके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इससे सब स्वस्थ वातावरण में प्रसन्नाचित्त होकर अच्छे से भोजन कर पाते हैं।

बेडौलपन को लेकर हुए एक सर्वे से यह बात भी सामने आई कि बोर्ड की परीक्षा देने की तैयारी कर रहे बच्चों का वजन ज्यादा बढ़ता है,
टीवी के सामने बैठकर खाना एक और समस्या है। इससे बच्चे खाने की ओर ठीक से ध्यान नहीं दे पाते और कई बार ज्यादा खाना खा लेते हैं
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बनिस्बत उन बच्चों के जो सामान्य कक्षाओं की परीक्षा देने वाले होते हैं। स्कूल, ट्यूशंस और खेल के बीच सामंजस्य बिठा पाना उनके लिए एक अलग तरह की चुनौती होती है। इसके अलावा लेडी इरविन कॉलेज द्वारा किया गया सर्वे एक अन्य पक्ष को भी सामने लाता है। इस सर्वे के अनुसार दिल्ली के अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को पार्कों में खेलने नहीं भेजते। क्योंकि उनकी नजर में यह स्थल अब बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं रहे हैं। कॉलोनी की सड़कों पर भी गाड़ियों की भरमार रहती है। ऐसे में बच्चे खो-खो और सितौलिया जैसे खेलों से वंचित हो गए हैं, जो उनसे पहले वाली पीढ़ी में खासे लोकप्रिय थे और जिनमें चलने-फिरने की काफी गुंजाइश थी। डॉ. पुरी कहती हैं, अब माता-पिता अपने बच्चों को टेनिस खेलने भेजते हैं।

ऐसी हालत में माता-पिता को उनकी सलाह है कि वे बच्चों को साथ लेकर पार्कों में जाएँ और उनसे ऐसे खेल खेलने को कहें, जिनसे शरीचुस्त-दुरुस्त रहता है। अगर बच्चों को वहाँ अच्छा लगता हो और वे ऐसे खेलों से आनंदित होते हों, तो उन्हें ऐसे स्थलों पर नियमित रूप से ले जाया जा सकता है। बेडौल होते जा रहे बच्चों के अभिभावकों को वे चेताती हैं कि किसी भी उम्र के बच्चों का वजन लंबाई सामान्य से अधिक है, तो आपको तुरंत उनके खान-पान की ओर ध्यान देना चाहिए।

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